मानव शरीर का तापमान लगभग 98.6 डिग्री सेन्टीग्रेड रहता है। यदि वाह्य वातावरण का तापमान कम हो तो त्वचा में खून का संचार कम हो जाता है। इस तरह से शरीर की गर्मी बाहर नहीं निकल पाती और बाहर बहुत ठण्ड होने के बावजूद भी शरीर का तापमान सामान्य बना रहता है। यदि वातावरण का तापमान शरीर के तापमान से अधिक हो, तो हमें पसीना आने लगता है। पसीने के सूखने में गर्मी खर्च होती है। जिससे का तापमान सामान्य से अधिक नहीं बढ़ने पाता। वातावरण का तापमान जितना अधिक होगा शरीर का तापमान सामान्य बनाये रखने के लिए उतने ही अधिक पसीने की आवश्यकता होगी। किंतु पसीने का उपयोग तभी है जब वह सूखता रहे। बरसात के मौसम में जब हवा में नमी (अपेक्षित आद्रता) काफी अधिक होती है। तो पसीना सूख नहीं पाता और तब गर्मी बड़ी असहनीय लगने लगती है। पसीने के साथ-साथ नमक भी काफी मात्रा में लेना चाहिए।
यदि गर्मी के मौसम में शरीर में पानी की मात्रा कम हो जाये और पसीना कम आये या पसीना सूखने न पाये तो शरीर का तापमान बढ़ने लगता है, और लू लगने के लक्षण प्रकट होने लगते हैं।
 
ऐसा निम्नलिखित कारणों से हो सकता है
  • वृद्ध मनुष्य जो अकेले रहते हैं और अपनी देखभाल कर पाने में असमर्थ हैं।
  • बहुत छोटे बच्चे।
  • मानसिक रूप से अस्वस्थ मनुष्य
  • दवायें खाने के कारण सुस्त और अर्द्धमूर्छित या पूरी तरह बेहोश व्यक्ति। ठंडी जलवायु के देशों जैसे कश्मीर, इंग्लैण्ड आदि से कुछ ही दिन पहले आये व्यक्ति। तेज चिलचिलाती धूप।
लू लगने के लक्षण निम्नलिखित है
(क) गर्मी के कारण अत्यधिक कमजोरी आना
यह काफी संख्या में होता है। रोगी प्रायः वृद्ध होते हैं और अक्सर वे पेशाब अधिक लगने वाली दवाई खा रहे होते हैं। कमजोरी, चक्कर आना, सिर दर्द, भूख न लगना, मितली आना, उल्टी और खड़ी अवस्था से अचानक गिर पड़ना। इस हालत के प्राथमिक लक्षण हैं। बाद में बेहोशी भी हो सकती है। रोगी का चेहरा पीला पड़ जाता है, खाल ठण्डी और नम हो जाती है, रक्तचाप (ब्लड प्रेशर) कम हो जाता है। शरीर का तापमान सामान्य से कम या सामान्य होता है। ऐसे रोगी को तत्काल ठण्डे स्थान में ले जाना चाहिए ओर लिटा देना चाहिए। ऐसा करने से थोड़ी देर में रोगी स्वस्थ हो जाता है। इस रोग से बचने के लिए काफी मात्रा में पानी व नमक का सेवन हितकर रहता है।
 
(ख) दर्दयुक्त मांसपेशी संकुचन
यह गर्मी के मौसम में कोई मेहनत का काम कसरत या वर्जिश करने के बाद होता है। इसमें टाँगों और हाथों की मांसपेशियों में संकुचन और दर्द होता है। शरीर का तापमान सामान्य भी हो सकता है और कभी-कभी बढ़ा हुआ भी। शरीर में नमक की कमी हो जाने के कारण ऐसा होता है। नमक को पानी के साथ पीना ही इसका इलाज है। इसके लिये निंबू की शिकंजी, उबले आम का रस जिसे बोलचाल भाषा में ‘पना’ कहते हैं। बहुत उपयोगी है। आपने देखा होगा लुहार और बहुत मेहनत करने वाले अन्य लोग प्रायः थोड़ी देर बाद अपने मुॅह में नमक की छोटी सी डली डालकर चूसते रहते हैं। और बीच-बीच में पानी पीते रहते हैं।
 
(ग) परिश्रमजनित गर्मी का दुष्प्रभाव
यह उन व्यक्तियों को होता है गर्म और काफी नमी वाले वातावरण में लगातार कड़ी मेहनत करते हैं, जैसे लंबी दौड़ दौड़ने वाले धावक जिन्हें गर्मी में दौड़ने का कम अभ्यास हो या जिन्होंने दौड़ से पहले और दौड के बीच में उचित मात्रा में पानी न पिया हो। मोटापा और बड़ी उम्र इस रोग के होने में अन्य सहायक कारण हैं। इन रोगियों को पसीना खूब आता है और उनके शरीर का तापमान 102-104 डिग्री फारेनहाइट रहता है। सिर दर्द, छाती और हाथ के रोंगटे खड़े होना, ठंड लगना, तेज सांस चलना मितली और उल्टी आना, मांसपेशियां संकुचित होना, लड़खड़ाना और अण्ट-सण्ट बकना इस रोग के प्रमुख लक्षण हैं। कुछ रोगी बेहोश भी हो सकते हैं। नाड़ी की गति तेज हो जाती है। और रक्तचाप कम हो जाता है। यदि उचित समय पर इलाज न हो तो गुर्दे खराब हो सकते हैं। पेशाब आना बंद हो सकता है, और नाक मुॅह से खून आ सकता है।
रोगी के शरीर तत्काल ठण्डे पानी की पट्टियां रखनी चाहिये ताकि षरीर का तापमान कम किया जा सके है। भुजाओं और टांगों की मालिश करनी चाहिए। रोगी को अस्पताल में भर्ती कर देना चाहिए ताकि उसे नस द्वारा ग्लूकोज-नमक का पानी चढ़ाया जा सके। इस रोग से बचने के लिए धावकों को चाहिए कि वह सुबह 6 बजे से पहले जब गर्मी क हो, दौड़ने से पहले एक गिलास पानी पी लें और दौड़ के दरमियान भी हर तीन चार किलोमीटर पर एक-एक गिलास पानी पीते रहें।
 
(घ) गर्मीजनित मूच्र्छा या बेहोशी
यह रोग वृद्धावस्था में जब व्यक्ति को अन्य पुरानी बीमारियाँ भी हों, अधिक होता है। ह्दय की कमजोरी, मधुमेह, (डायबिटीज) और षराब की लत वाले रोगियों को विशेषकर यह रोग होने का डर रहता है।
एक खास बात यह है कि इसमें रोगी को पसीना आना बिल्कुल बंद हो जाता है। सिर दर्द, चक्कर आना, गश खाकर गिर पड़ना, पेट में दर्द, बड़बडाना, तेज साँस लेना और बाद में बेहोश इस रोग के प्रमुख लक्षण हैं। कई बार अचानक बेहोशी आना पहला लक्षण हो सकता है। शरीर का तापमान अक्सर 106 डिग्री से अधिक होता है, और कभी-कभी 112-113 डिग्री तक पहुँच सकता है। त्वचा गर्म और खुष्क रहती है। मांसपेशियां शिथिल पड़ जाती हैं। नाड़ी की गति तेज हो जाती है।
हीट स्ट्रोक एक बहुत ही खतरनाक रोग है, और रोगी केवल कुछ घण्टे में ही मर सकता है। हीट स्ट्रोक के रोगी की तत्काल या बाद में गुर्दे खराब होने, हार्ट अटैक होने या निमानिया होने से मर सकता है। हीट स्ट्रोक के रोगी की तत्काल विशेष चिकित्सा होनी चाहिए। ऐसे रोगी के लिए एक-एक मिनट मूल्यवान होता है। रोगी को तत्काल एक ठण्डे कमरे में जहाँ ताजी हवा का आना जाना काफी हेा, लिटा देना चाहिए।
जितनी जल्दी संभव हो तो रोगी को बर्फ के पानी के टब या बड़े बर्तन में गर्दन तक डुबो देना चाहिए। यह सबसे अधिक प्रभावशाली इलाज है। रोगी को एक नर्स या डाॅक्टर या अन्य अनुभवी व्यक्ति द्वारा लगातार देखभाल की जानी चाहिए।
जब रोगी का तापमान लगभग 101 डिग्री तक आ जाये तब उसे बर्फ के पानी से निकालना चाहिए। यदि दुबारा बुखार बढ़े तो फिर बर्फ के पानी में डुबो देना चाहिए। यदि बर्फ के पानी में डुबोना संभव न हो सके तो रोगी के शरीर को गीली ठण्डी तौलियों से ढक कर पूरी रफ्तार में पंखा चला दें। हाथ पैरों की मालिश करते रहें। अधिकतर रोगियों को नस द्वारा पतला ग्लूकोज का पानी चढ़ाने की आवश्यकता  होती है। और जो लू लगने से पहले पूर्ण स्वस्थ थे, ठीक हो सकते है।
सारांश में यही कहा जा सकता है कि हमारे देश में लू के हानिकारक प्रभावों के कारण बहुत सी मौतें हो जाती हैं जिन्हे थोड़ी सी सावधानी से बचाया जा सकता है। यदि जनसाधारण को इसके काराणों, मुख्य लक्षणों, प्राथमिक चिकित्सा और बचाव के उपयों की कुछ जानकारी हो।