इस नादानी पर उस समय मम्मी-पापा तो हंस पड़े थे, मगर आज 22 वर्ष बाद भी पिंटू मेरी इस स्वार्थी बात को लेकर मेरी खिंचाई करता है, जिससे मैं शॄमदा हो उठती हूं।

2- जिसने बांधा, वही खोले

बात तब की है, जब मैं तकरीबन तीन-चार साल की थी। मेरे पिताजी रोज सुबह ‘दुर्गा सप्तशती’ का पाठ करके ही ऑफिस जाया करते थे। एक दिन उनकी पूजा के समय मैं बहुत ही जिद कर रही थी। जिस पर उन्होंने गुस्से में मुझे चारपाई के पाये से बांध दिया और खुद पूजा करने लगे। इस पर तो मैंने और भी जोर-जोर से रोना शुरू कर दिया, तो मेरी मम्मी बोली कि अगर अब तुम जिद नहीं करोगी तो मैं तुम्हें खोल देती हूं। मैंने कहा, नहीं आप पीछे हट जाओ, जिसने बांधा वो ही खोले और यही दोहराती रही कि जिसने बांधा खुद ही खोले। ये सुनकर पिताजी मुस्कुराने लगे और उठकर मुझे खोल दिया और गले लगा लिया। आज हमारे पिता जी हमारे बीच नहीं हैं। उनकी कमी आज भी खलती है, ये बात आज भी उनकी याद दिलाती है और कभी-कभी अपनी बचपन की उस नादानी और जिद पर हंसी भी आती है।

 

3- राजस्थान की बूंदी

बात उस समय की है, जब मैं कक्षा चार में पढ़ती थी। मैं पढ़ाई में ठीक-ठीक थी, एक बार सामाजिक विज्ञान के अध्यापक ने क्लास टेस्ट में जिलों के नाम लिखने के लिए दिए। उस वक्त राजस्थान में 31 जिले थे, मैंने 30 जिलों के नाम लिख दिए पर एक याद नहीं आया। यही सोचते-सोचते समय पूरा हो गया। नोटबुक देने के तुरंत बाद ही मुझे उस जिले का नाम भी याद आ गया, पर अब कुछ हो नहीं सकता था। अध्यापक ने मेरी नोटबुक चैक करते हुए पूछ लिया एक जिला कम कैसे? मुझे शरारत सूझी, मैं बोली कि वो जिला तो मेरे पास रखा हुआ है, इसलिए मैंने नहीं लिखा, साथ ही मैंने अपना टिफिन खोलकर उसमें रखी मीठी बूंदी दिखा दी। यह देखकर अध्यापक जी के साथ-साथ पूरी क्लास की हंसी छूट गई। दरअसल बूंदी नाम से राजस्थान का एक जिला है, जिसे मैं लिखना भूल गई थी। आज भी बूंदी का प्रसाद खाते वक्त सब उस बात को याद करके हंसते हैं।

 

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