मेरा उस्ताद दो डॉयलाग बार-बार बोलता था- ‘सपेरा तो सांप के काटने से ही मरता है और घर बरसात में ही जलते हैं। एक दो अंग्रेज़ी की कहावतें भी कई बार कहता था। उस्ताद बहुत सिम्पल तरीके से रहता था। कभी-कभी घमंड दिखाता, ज़्यादातर विनम्र ही बना रहता। सच्चे गुरु की तरह अपने चरण पीछे कर लेता, जब कोई चेला ‘पांय लागी करने लगता।
मैं और मेरे उस्ताद समकालीन थे, यानी दुखों से भरी इस दुनिया में हम साथ-साथ आए थे। मैंने उस्ताद को कुछ नहीं सिखाया। उस्ताद का दावा था कि उसने मुझे शायरी सिखाई। हम दोनों ने एक ही दफ्तर में एक ही दिन प्रवेश लिया था। उस्ताद विवाहित था। दो बच्चों का बाप था। मैं अभी कुंवारा था। घरवाले शादी को लेकर मेरे पीछे पड़े थे। दफ्तर की एक लड़की मुझे भा गई थी। उस्ताद मुझे सफल प्रेम करने के गुर सिखा रहा था और मैं धीरे-धीरे उस लड़की के प्रेम में पागल होने की प्रक्रिया में अग्रसर हो रहा था। उस लड़की को कानोकान कोई खबर नहीं पहुंची कि कोई उस पर फिदा हो चुका है। उन दिनों देवदास टाइप प्रेम करने का रिवाज था। लड़की के घरवालों को बहुत जल्दी थी। उसके घर रिश्ते आ रहे थे। कोई डॉक्टर, कोई इंजीनियर, कोई सफल व्यवसायी। इधर हमें शादी की कोई जल्दी नहीं थी। हम तो बस उस्ताद शैली से एक-ठौ सफल प्रेम करना चाहते थे। उस्ताद हमारे दिल-रूपी बंजर खेत में दर्द और विरह के कंटीले बीज बो रहा था। हम हर रात यह $फैसला करके सोते कि कल उठते ही लड़की के दूर के चाचा के पास अपनी शादी का प्रस्ताव भिजवा देंगे, मगर अगले दिन कॉफी हाउस में उस्ताद हमारा दिमाग खराब कर देता था।
खैर, दो-तीन महीने की इस एकतर$फा रासलीला में हमें पक्का यकीन हो गया कि $खुदा ने इस लड़की को बड़ी $फुरसत से सिर्फ़ हमारे लिए ही बनाया है। हम प्रेम की चाश्नी में डूबे रहते। हमारे इश्क में शिद्दत आ रही थी। $गज़लों के मिसरों का वज़न ठीक हो रहा था, बहरें रवां हो रही थीं। पहले हमारे शायरी कूड़ा ही थी, अब उसमें उड़ान आने लगी थी। पहले उस्ताद हमारी $गज़ल फड़वा देता था, मगर अब कहने लगा था, ‘अरे, तूने ये क्या गज़ब लिख दिया, बावले। ये तो बीस साल आगे की गज़ल है। हम थे, गज़ल थी और उस लड़की से एकतरफा इश्क था।
एक दिन उस लड़की ने पूरे दफ्तर को अच्छे होटल में बढिय़ा लंच करवाया। उस बावली लड़की ने सब को दावत इसलिए खिलाई थी, क्योंकि उसकी सगाई एक एनआरआई दूल्हे से हुई थी तथा अगले ही ह$फ्ते वह शादी करके हनीमून के लिए विदेश जा रही थी। हम रात भर सो न सके। वैसे उस मनहूस रात को बिजली बार-बार जा रही थी, मच्छर थे और उमस भी बहुत थी।
यह खबर सुनकर उस्ताद बहुत खुश था। वह बोला, ‘ओए खोते, वह बेवकू$फ लड़की तेरे जैसे जीनियस के इश्क के काबिल नहीं थी। उसका दिल तो सोने-चांदी में रमता था। तुझे तो वह माशूक चाहिए, जो तेेरे हैड को हिट करे। उससे मिलने से पहले क्या था तू। कितना लल्लू था। उस लड़की ने तुझे दर्द के मतलब समझाए, उसका $कर्ज तो तू जि़ंदगी भर नहीं उतार सकता। शादी तो आदमी किसी से भी कर ले, मगर इश्क हर किसी से नहीं किया जा सकता। ये वो नगमा है जो हर साज़ पे गाया नहीं जाता।
उस्ताद की बातों ने हमेशा की तरह एक बार फिर हमारा दिल जीत लिया। उस्ताद ठीक कहता था कि प्रेम के कारोबार में हज़ार नुक्ते हैं। $गज़लों के मिसरों की मात्राएं बराबर करते-करते तीन चार साल और बीत गए, मगर तब तक हमें इश्क करने लायक कोई लड़की नहीं मिली। एक असंतुष्ट विवाहित महिला जरूर हमारे प्रेम रूपी कारोबार में आई। अब हमारे आशारों में रूह के दर्द के स्थान पर जिस्म की छटपटाहट झलकने लगी थी।
उस्ताद तब भी खुश था। बोला, ‘ऊंचे पाये का शायर बनने के लिए तुझे कई प्रयोग करने होंगे। कई दायरे तोडऩे होंगे। जि़ंदगी टूट के बिखरी तो संवर जाएगी। वाकई वह टूटने वाला मोड़ आ ही गया। घरवालों ने हमें शादी के बंधन में ऐसा पिरोया कि दस साल तक हमने कोई गज़ल नहीं लिखी। क्या करते, सब कुछ छूट गया था। कॉफी बहुत महंगी हो गई थी। बच्चों के स्कूल की फीसें बहुत बढ़ गई थीं। हमारी शायरी दम तोड़ चुकी थी। हम $गज़ल लिखने की लाख कोशिश करते, मगर दर्द कहां से लाते। प्रेरणा रूपी सारी नदियां व झरने सूख चुके थे।
हम रोज़ाना गुहार लगाते, ‘जाग, दर्दे-इश्क जाग, दिल को बेकरार कर। अब ज़्यादा देर हो चुकी थी। सारे बाल सफेद हो चुके थे। सीमित चुनाव ही हमारे सामने था। साथ ही हमजोली व हमउम्र स्त्रियां बाल रंगने लगी थीं, दादी-नानी बन चुकी थीं, हमारी $गज़ल की प्रेरणा क्या बनतीं। जवान लड़कियां हमें घास क्यूं डालतीं।
उस्ताद होता तो कोई नई राह दिखाता। हमने फिर पढऩा शुरू किया। वहीं से हज़ारों नुक्ते हमारी पकड़ में आने लगे। उस्ताद ठीक कहता था कि हारा हुआ खिलाड़ी बहुत अच्छा कोच बनता है। हम मन ही मन जवान चेहरों से एकतरफा इश्क करने लगे। दो-तीन परी-चेहरे अब हर वक्त हमारे तसुव्वर में रहते हैं। आज भी हम अपना बाइस कैरेट दिल न्योछावर करने के लिए तत्पर हैं। दिल के सारे दरवाजे खोलकर सोते हैं, मगर कोई तलबगार हसीना हमारे दिल की गली की तरफ रुख करे, तब न।
यह भी पढ़ें –जुनून कुत्ता पालने का – गृहलक्ष्मी कहानियां
-आपको यह कहानी कैसी लगी? अपनी प्रतिक्रियाएं जरुर भेजें। प्रतिक्रियाओं के साथ ही आप अपनी कहानियां भी हमें ई-मेल कर सकते हैं-Editor@grehlakshmi.com
-डायमंड पॉकेट बुक्स की अन्य रोचक कहानियों और प्रसिद्ध साहित्यकारों की रचनाओं को खरीदने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें-https://bit.ly/39Vn1ji
