……………. सहसा दूसरे कमरे से एक अधेड़ उम्र के पुरुष प्रविष्ट हुए। उनके साथ ही उनकी धर्मपत्नी भी थीं, राधा को समझते देर नहीं लगी कि यही सरोज के माता-पिता हैं। सम्मान में वह झट उठ खड़ी हुई, नमस्ते के लिए हाथ जोड़ दिए तो उन्होंने उसका स्वागत मुस्कराकर करते हुए कहा‒

 ‘बैठिए-बैठिए!’ सरोज की मम्मी बोली और अपनी रेशमी साड़ी को समेटकर स्वयं भी अपने पति के साथ एक सोफ़े पर बैठ गईं।

 बैठते हुए राधा ने गौर किया, रंग-रूप में बिलकुल सरोज, अलग-अलग पहचानना भी कठिन हो जाता। जाने क्यों राधा को अनुमान हुआ मानो उसने इस स्त्री को कहीं देखा है, कहां? किस समय? वह कुछ याद नहीं कर सकी। शायद इसीलिए सरोज को देखकर भी वह यही सोच बैठी थी।

 ‘मैं कमल की मां हूं।’ उसने बात आरंभ की।

 ‘जी हां, नौकर ने अभी-अभी बताया।’ ठाकुर साहब ने कहा‒ ‘आपके लड़के के बारे में सरोज हमें पहले ही बता चुकी है, फिर रात जब हम बाहर से वापस आए तो वह फिर उसी की प्रशंसा करने लगी। उसी ने बताया था कि आज आप अवश्य आएंगी।’

 राधा ने यहां समय से आने के लिए उस घटना को धन्य कहा, जिसके कारण वह दिल्ली वापस चली आई थी। यदि आज वह वहां नहीं पहुंचती तो बहुत बुरा होता, ये बेचारे प्रतीक्षा ही करते रह जाते। कमल ने सरोज से अवश्य कहा होगा कि वह अपनी मां को यहां आज ही के दिन भेजेगा। वह कृतज्ञ होकर बोली‒ ‘आपकी लड़की बहुत सुशील है। भगवान की कृपा से अब कमल भी पैरों पर खड़ा हो चुका है इसलिए मैं चाहती हूं कि अब यह संबंध हो ही जाए।’

 ‘हां-हां, क्यों नहीं, क्यों नहीं।’ ठाकुर साहब ने जेब से सिगार निकाला। होंठों में लगाने से पहले बोले‒ ‘सरोज द्वारा यह जानकर बहुत दुःख हुआ कि कमल के पिता का बचपन में ही स्वर्गवास हो गया। यदि आज वह जीवित होते तो हमारी ख़ूब निभती।’ उनका स्वर गंभीर हो गया।

 राधा का मुखड़ा कुछ गंभीर होने के बज़ाय कुछ परेशान हो गया। कहीं ठाकुर साहब उसके पति की खोजबीन न आरंभ करने लगें? संबंध बनाने से पहले बड़े लोग शरीर के अंदर बहती रक्त की धारा तो देखते ही हैं।

 राधा की परेशानी ठाकुर साहब से छिपी न रह सकी। उनसे सब्र न हो सका तो पूछ ही लेना उचित समझा। इस परेशानी का भेद जाने क्या हो?

 ‘राधा देवी‒’ उन्होंने पूछा, ‘कमल के पिता का भरी जवानी में स्वर्गवास होने का क्या कारण था, मेरा मतलब कोई दुर्घटना, बीमारी या… और कोई कारण!’

 राधा और घबरा उठी। वह मानो अपनी आंखें उनसे चुराने का प्रयत्न करने लगी। उसका दिल और भी बुरी तरह धड़कने लगा।

 ठाकुर साहब का भ्रम विश्वास में बदलने लगा। उन्होंने कहा‒ ‘देखिए राधा देवी! विवाह से पहले हमें यह जानना आवश्यक है कि कमल के पिता कौन थे, किस खानदान का रक्त उनके शरीर में था? तभी हम अपनी लड़की का हाथ आपके बेटे के हाथ में दे सकते हैं।’

 ‘हां बहन।’ सरोज की मम्मी भी राधा की घबराहट से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकीं‒ ‘तुम्हें अपने कमल की सौगंध, इस संबंध में हमें हरगिज़ धोख़ा मत देना।’

 राधा का मन हुआ वह झल्लाकर कह दे कि कमल की रगों में तो वह रक्त है जिसे पाने के लिए जाने कितनी बार लोगों को जन्म लेना पड़ता है‒ शाही खानदान का ख़ून बह रहा है उसके बेटे की रगों में, परंतु उसके होंठ खुलते-खुलते रह गए। ऐसी नारी का चरित्र ही फिर इनकी दृष्टि में क्या रह जाएगा? यह कैसे विश्वास करेंगे कि वह सत्य कह रही है? और फिर यदि यह सत्य हो भी तो इससे उन पर क्या प्रभाव पड़ेगा? राजाओं-महाराजाओं की संतानें तो सैकड़ों सुंदर लड़कियों द्वारा जन्म लेती ही रहती हैं और फिर सत्य कह देने से तो यह बात कमल तक भी पहुंच जाएगी। फिर उसका सब कुछ बर्बाद हो जाएगा, लुट जाएगा।

वह अपने ही बेटे की दृष्टि में गिर जाएगी, उसका बेटा इस वास्तविकता को सहन नहीं कर सकेगा। उसके होंठ खोल देने से वास्तव में एक पहाड़ टूट पड़ता‒उसके ऊपर तथा उसके बेटे के ऊपर भी। फिर जीवन की सारी तपस्या व्यर्थ चली जाती, अपने होंठ उसने सी लिए। आंसू पोंछकर दिल पर पत्थर रख लिया, और बोली‒ ‘मैं केवल कमल के संबंध के लिए ही आई हूं, उसके पिता के संबंध के लिए नहीं।’

 ‘राधा देवी!’ ठाकुर साहब चीख़ते-चीख़ते रह गए, सिगरेट होंठों में लगाते-लगाते छूटकर गिर पड़ी।

 ‘मुझे क्षमा कीजिए!’ राधा उठकर खड़ी हो गई और बोली, ‘मैं उनके बारे में कुछ भी नहीं बता सकती। यह मेरा निजी मामला है।’

 ‘तो फिर सरोज भी हमारी लड़की है।’ सरोज की मम्मी भी तैश में आकर उठ खड़ी हुईं, बोलीं‒ ‘अपनी बेटी के लिए उस खानदान के बारे में जानने का हमें पूरा अधिकार है, जहां हमारी बेटी बहू बनकर जाएगी। आप जा सकती हैं। हमें नहीं मालूम था कि कमल ऐसी मां का बेटा है जिसके पति का कोई पता नहीं।’

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राधा कोई उत्तर नहीं दे सकी, दिल तड़पकर रह गया, अपनी बदनसीबी के साथ वह अपनी संतान का दुर्भाग्य भी लेकर उत्पन्न हुई है, यह उसे आज बहुत सख्ती के साथ ज्ञात हुआ, आंखें नीची किए वह बाहर निकल गई, बरामदे में उसकी भेंट सरोज से हुई। कोई लड़की उसे अपनी कार में छोड़कर जा रही थी।

सरोज को देखकर वह ठिठकी, सरोज ने उसे देखा तो खिलखिला पड़ी, चाहा कि लपककर उसके चरण छू ले परंतु आंखों में आंसू देखकर उसके पग लड़खड़ा गए, दिल धड़क उठा, राधा से उसने कुछ पूछना चाहा, परंतु उत्तर पहले ही सिसकियों में मिल गया। राधा उसके समीप से होकर बरामदे की सीढ़ियां उतरती हुई बाहरी गेट की ओर चल दी।

सरोज उसी प्रकार खड़ी रही मानो उसकी आंखों के सामने उसके अरमानों का जनाजा जा रहा हो, अचानक ही, अभी और इसी समय, यह सब क्या हो गया? क्या हो गया अचानक ही! वह तो अपने घरवालों को पहले ही राजी कर चुकी थी, फिर अब इस बात में कैसे बिगाड़ उत्पन्न हो गया! पिताजी को तथा मम्मी को केवल एक योग्य वर ही तो अपनी बेटी के लिए चाहिए था! दौलत तो उसके घर में पुश्तों तक खर्च करने को पड़ी है। कंधे झटककर वह अंदर प्रविष्ट हो गई, बहुत तेज पगों के साथ।

 उसके माता-पिता उसी की प्रतीक्षा कर रहे थे।

कमल रामगढ़ वापस लौटा तो दूसरी सुबह ही से उसने सर्वे आरंभ कर दिया। रामगढ़ का एक-एक चप्पा उसने बहुत ध्यान से परखा। ऊबड़-खाबड़ ज़मीन, कहीं चढ़ती हुई तो कहीं उतरती हुई, कहीं ऊंचे ऊबड़-खाबड़ टीले तो कहीं तालाब समान सूखे गड्ढे, कहां से सड़क निकालनी चाहिए, कहां छोेटे-छोटे पुल बना दिए जाएं ताकि सड़क पर पानी न चढ़े! सब कुछ उसने नोट किया, यहां रहने के लिए सुंदर मकान बन सकते हैं, वहां आबादी से हटकर ही फैक्टरी क्षेत्र होना चाहिए, इस भाग में अनाज की उपज अच्छी होगी। इधर शिक्षा केंद्र होना चाहिए, यहां पार्क, खेल के मैदान इत्यादि।

रेलवे स्टेशन फैक्टरी क्षेत्र के समीप होना चाहिए, सभी आवश्यक बातों को उसने बहुत सावधानी से परखा और निर्माण के लिए नक्शे में स्थान बना दिया। इन सबका विचार रखते हुए उसने हवेली को ज़रा भी महत्त्व नहीं दिया, जिसका भय कंपनी ने प्रकट किया था। फिर शीघ्र ही उसने वापसी पर इसे कंपनी में जमा करा दिया ताकि सरकार से अनुमोदन लिया जा सके। फिर वह बहुत ख़ुशी-ख़ुशी अपने घर पहुंचा, इस आशा में कि मां ने अब तक उसके विवाह की तैयारी आरंभ कर दी होगी। सरोज की ओर से इनकार की कोई संभावना नहीं थी।

परंतु ज्यों ही उसने घर के अंदर कदम रखा, राधा उसे देखते ही फूट-फूटकर रो पड़ी। कमल के पैरों तले धरती निकल गई। मां को संभालते हुए उसने सूटकेस नीचे रखा, फिर उसे सोफ़े पर बिठा दिया। राधा के पास अब अपनी वास्तविकता उगलने के अतिरिक्त कोई चारा नहीं था। वह जानती थी कमल सरोज की ओर से इनकार का कारण पूछेगा। वह छिपाएगी तो वह सरोज से मिलेगा और फिर यह बात स्पष्ट हो जाएगी कि ठाकुर साहब ने अपनी बेटी का हाथ उसके हाथ में देने से क्यों इनकार किया है, बात बहुत आगे बढ़ जाएगी, इसलिए अच्छा है कि वह भगवान पर भरोसा करके स्वयं ही कमल के आगे अपने जीवन की मजबूरियां प्रकट कर दे और इसलिए जब कमल ने उससे पूछा तो वह कुछ भी नहीं छिपा सकी।

उसने उसे अपने जीवन की सारी बातें बता दीं। एक-एक बात, कि किन अवस्थाओं से होकर उसे गुज़रना पड़ा था, राजा विजयभान सिंह ने गांव की सारी लड़कियों की इज्जत ही नहीं लूटी, उन पर बड़े-बड़े अत्याचार भी किए थे, इनमें उसकी मासूम छोटी बहन भी थी, उसका पिता था तथा वह स्वयं भी थी। कैसे उसने उसे जन्म दिया‒कहां जन्म दिया, किन परिस्थितियों में जन्म दिया, यह सब उसने बताया। और फिर अंत में बोली‒ ‘बेटा! यदि फादर जोजफ नहीं होते तो मैं तुम्हें अनाथालय में देकर निश्चय ही आत्महत्या कर लेती। पहले इसलिए नहीं की कि अपनी जान के साथ मैं तेरी जान की हत्या का पाप सहन नहीं कर सकती थी। यदि फादर जोजफ नहीं होते तो हमारा जीवित रहना कठिन हो जाता। यह उन्हीं की कृपा है जो आज तू अपने पैरों पर खड़ा है।

उन्होंने तुझे बचपन से ही पढ़ने-लिखने की सुविधाएं दी हैं, कॉलेज़ इत्यादि में स्कॉलरशिप तुझे इसलिए मिली है कि लोग जानते हैं हम पर उनकी विशेष कृपा थी। अब तू ही बता, मेरी सौगंध खाकर, मैं ठाकुर साहब से अपनी वास्तविकता किस प्रकार प्रकट कर सकती थी? क्या हम उनके आगे और अपमानित नहीं हो जाते? सरोज को भी तुझसे घृणा हो जाती, कौन विश्वास करेगा कि तेरी रगों में शाही ख़ून है और यदि विश्वास कर भी लिया तो इससे क्या अंतर पड़ेगा? ऐसी-ऐसी संतान तो राजाओं-महाराजाओं की अय्याशी के फल में हुआ करती हैं।

यह वास्तविकता तुझसे भी इसी भय से छिपा रखी थी ताकि तू मुझसे घृणा न करने लगे। एक मां हूं ना, कैसे सहन करती कि जिसे मैंने अपनी छाती के दूध के स्थान पर ख़ून पिला-पिलाकर पाला है वही संतान मुझसे घृणा करने लगे। मैं डरती थी कि अपनी वास्तविकता जानकर तू संसार को मुंह दिखाने के बज़ाय कहीं आत्महत्या न कर ले, परंतु बेटे! मेरा इसमें कोई दोष नहीं। मेरे भाग्य ही फूटे थे तो मैं क्या करती? रामगढ़ में जन्म लेने वाली हर सुंदरी का यही परिणाम हुआ होगा जो आज मेरा है।’ राधा सिसक-सिसक रो पड़ी।……………

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