‘सारे औजार ख़रीदकर ले आए हैं। पत्थर भी ख़रीद लिए हैं, परंतु मूर्ति बनाने का समय ही नहीं मिला। आजकल स्कूल से आने में उन्हें बहुत देर हो जाती है। यदि रात में काम करेंगे तो शोर होगा, शोर होगा तो पड़ोसी फादर से शिकायत करने लगेंगे।’
‘तो फिर बाबा स्कूल का काम छोड़ क्यों नहीं देते?’ राजेश ने अपने मतलब की बात कही‒ ‘मूर्तियां बेचकर तो आप लोगों का अधिक अच्छा गुज़ारा हो सकता है।’
‘ऐसा बाबा कभी नहीं कर सकते।’ राधा झट बोली‒‘और न ही हम उन्हें ऐसा करने की राय देंगे।’
‘मगर क्यों?’
‘इससे फादर को चोट पहुंचेगी, अपने मन में वह सोचेंगे कि हमने इस पर अहसान किया, नौकरी के लिए जगह निकलवाई और अब यही लोग इतनी जल्दी छोड़कर जा रहे हैं।’
‘आपको एतराज़ न हो तो मैं स्वयं उनसे कहलवा दूं कि आप लोग स्वतंत्र हैं, जहां चाहें जा सकते हैं।’
‘नहीं-नहीं, ऐसी बात नहीं होनी चाहिए।’ राधा ने कहा‒‘यह कोई आवश्यक नहीं कि मूर्तियां बेचकर ही हमारा गुज़ारा हो सकता है। हमें गरीबी में जीवन काटने की आदत पड़ चुकी है।’
‘आदत पड़ चुकी है या!’ राजेश ने डरते-डरते उसका दिल टटोला, ‘किसी जालिम ने ऐसी आदत डाल दी है?’
‘ऐसा ही समझ लीजिए।’ राधा ने आह भरी।
‘उस जालिम का नाम मैं जान सकता हूं?’
‘है एक बहुत बड़ा चांडाल। उसका नाम लेकर मैं इन दीवारों को सुनने का अवसर नहीं देना चाहती।’
‘वह चांडाल यदि आपके कदमों में गिरकर क्षमा मांगे तो क्या आप तब भी उसे क्षमा नहीं करेंगी?’
‘अंतिम सांसों तक नहीं।’
राजेश ने एक गहरी सांस ली। फिर रुककर पूछा‒‘और यदि अपने प्यार की ख़ातिर वह अपना कलेजा भी निकालकर आपके कदमों में रख दे तब…?’
‘उसके कलेजे पर मैं मिट्टी का तेल छिड़ककर आग लगा दूंगी।’ राधा दर्द से बोली‒‘जब वह तड़पेगा तो मैं ख़ुशी से नाच उठूंगी। दीवानों के समान ज़ोर-ज़ोर से ठहाके लगाने लगूंगी। ऐसा ही दिन देखने की तो मेरी इच्छा है।’
राजेश के दिल को सख्त चोट पहुंची। अपने आपको संभालने के पश्चात् उसकी आंखें छलक आईं। उसने कहा‒‘राधा देवी! इस संसार में अपने पापों को स्वीकार कर लेना ही एक बहुत बड़ा प्रायश्चित है। फिर प्रायश्चित कर लेने से तो क्षमा हो ही जानी चाहिए। फादर जोजफ ने मुझे शिक्षा दी है कि पापी को क्षमा कर देने से बड़ा कोई पुण्य नहीं।’
‘फादर में और मुझमें बहुत अंतर है राजेश बाबू!’ राधा ने पहली बार उसे उसके नाम से संबोधित किया। ‘आप उस चांडाल को नहीं जानते, जिसने मेरी ही नहीं, मेरी छोटी बहन की ही नहीं, बल्कि गांव की सारी लड़कियों की इज्जत लूटने में भी संकोच नहीं किया। कमबख्त मरेगा तो उसका मांस गिद्ध और कौवे नोच-नोचकर खा डालेंगे।’ राधा की आंखें छलक आईं।
‘यह बच्चा…?’ राजेश ने कहना चाहा।
‘उसी पापी की भेंट है।’
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…………..‘लोग इसके बारे में पूछते हैं, तो क्या उत्तर देती हैं?’
‘इसका बाप पैदा होते ही मर गया।’ राधा ने कहा‒‘और आपको भी मैं यही बताती, परंतु आपने बात ही ऐसे ढंग से शुरू कर दी कि वास्तविकता छिपाने का अवसर नहीं मिला। मेरी वास्तविकता केवल फादर जोजफ तथा फादर फ्रांसिस के अतिरिक्त किसी को नहीं मालूम। राधा ने फादर जोजफ और फादर फ्रांसिस का उच्चारण अपने अशिक्षित ढंग से किया‒‘यहां के लोगों को किसी की निजी बातों से कोई मतलब भी नहीं, इसलिए तो हम इस जगह को छोड़कर और कहीं नहीं जाएंगे।’
‘और यदि आपका बच्चा बड़ा होकर पूछेगा…।’
‘उसके दिमाग में भी यही बात भर दूंगी कि उसका पिता पहले ही मर गया…’ राधा ने बहुत घृणित ढंग से कहा‒‘इसी में उसकी भलाई भी है।’ राधा का स्वर भीग चला था। अचानक वह चौंकी। उसने पूछा‒‘परंतु राजेश बाबू! आप मुझसे ये सारी बातें क्यों कह रहे थे कि मैं उसे क्षमा कर दूं?’
‘क्योंकि ऐसा करने से दिल को एक सच्ची शांति का आभास होता है।’ राजेश ने अपनी अवस्था संभाली।
‘नहीं।’ राधा अडिग मन से बोली‒‘बल्कि मेरी सच्ची शांति तो यही है कि उसे मैं तो क्या, भगवान भी कभी क्षमा न करें। मेरी सांसें उसे डस लें। मेरी आहें उसके तन-बदन में आग लगा दें, वह कहीं का भी न रहे।’
राजेश कुछ न बोला। दिल छलनी हुआ जा रहा था। फिर भी बर्दाश्त करता रहा। एक उम्मीद थी दिल के अंदर, एक किरण थी आंखों के अंधकार में, उसकी भलाई का फल कभी तो उसे मिलेगा! कभी तो उसका निःस्वार्थ प्रेम रंग लाएगा! कभी तो उसका पश्चाताप उसे दया योग्य बनायेगा! कभी तो राधा के दिल में उसके प्रति सहानुभूति की कलियां फूट निकलेंगी! हां कभी तो ऐसा समय अवश्य ही आना चाहिए, यदि उसका यह प्यार राधा के प्रति दिल की गहराई से है! इस प्रकार के प्यार को सार्थक होना ही पड़ेगा।
सहसा किसी ने आंगन का दरवाज़ा खटखटाया तो राधा चौंक पड़ी। अपने आंसुओं को पोंछकर उसने उसे देखा।
‘शायद बाबा आ गए हैं।’ राजेश ने अनुमान लगाया।
‘बाबा उधर से कभी नहीं आते। मैंने मना कर रखा है।’ राधा कुछ घबराई-सी बोली।
‘क्यों?’
‘आप भी इस ओर से मत आया कीजिए।’ राधा ने कहा‒‘आंगन का दरवाज़ा खोलने में मुझे भय लगा रहता है।’
‘मगर क्यों?’
‘वह…वह…’ राधा कहने में झिझकने लगी‒‘इस मोहल्ले का एक बहुत बड़ा गुंडा है। जबसे उसकी नज़र मुझ पर पड़ी है पीछा ही नहीं छोड़ता। एक पल को भी चैन से सांस नहीं लेने देता। मुझे विधवा जानकर भी आवाजें कसता है। एक बार तो आंगन में भी कूद गया था। वह तो बाबा ने शोर मचा दिया वरना…।’
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……अचानक दरवाजे पर खटखटाहट हुई।
‘अब वह यहां क्या लेने आया है?’ मुट्ठियां भींचकर राजेश ने सख्ती से पूछा।
‘उसे पता है कि बाबा नहीं हैं, बस इसलिए चला आया है। मैं दरवाजे पर जाकर पूछूंगी कि कौन है तो वह उधर ही से बहुत कुछ कहता रहेगा। दरवाज़ा खोल दूं तो गज़ब ही हो जाए।’
‘क्या नाम है इस गुंडे का?’ राजेश ने पूछा।
‘बृजभूषण’, राधा बोली‒‘बहुत बड़े घर का बिगड़ा हुआ लड़का है। हमारे कहने पर फादर ने इसकी रिपोर्ट दो बार पुलिस को की, परंतु इस बदमाश का कुछ बिगड़ता ही नहीं। सुना है इसके रिश्तेदार में कोई नेता है, इसलिए पुलिस वाले भी इससे भय खाते हैं।’
सहसा दरवाजे पर फिर खटखटाहट हुई। इस बार कुछ अधिक ही शोर के साथ।
‘आप दरवाज़ा खोलिए।’ अपनी जेब से एक नोटबुक निकालकर उस पर बृजभूषण लिखते हुए राजेश ने लापरवाही से कहा।
‘लेकिन…’
‘आप दरवाज़ा खोलिए, मैं यहां हूं।’ राजेश ने नोटबुक जेब में रखी और खड़ा हो गया।
राधा आंगन में पहुंची, राजेश उसके पीछे हो लिया। राधा ने एक बार पलटकर राजेश को देखा, फिर कांपते हुए दरवाज़ा खोल दिया।
सामने बृजभूषण खड़ा था‒अपने चौड़े होंठों को बुलडॉग के समान फैलाए, होंठों के दोनों किनारों से पान की पीक चू रही थी। आंखों में इस बेवक्त भी शराब की लाली थी, भरा-भरा शरीर, चौड़ा सीना, ऊंचा कद, वास्तव में वह एक सफ़ल गुंडा था।
‘किससे बातें कर रही थी? तेरा बाबा तो बाहर गया हुआ है।’ उसने झूमकर पग रखा तो राधा डरकर पीछे हट गई, उसके आते ही आंगन में शराब की भभक फैल गई। उसने कुछ और कहना चाहा, परंतु तभी राजेश को देखकर ठिठक गया। बोला‒‘यह रंगरूट कौन है? और मेरी आज्ञा बिना इस मोहल्ले में तो आया ही, तेरे घर में भी कैसे चला आया?’
‘शटअप यू इडियट!’ राजेश क्रोध से चीख़ा, ‘एण्ड गेटआउट फ्राम हियर।’
‘वाह! यह तो कोई अंग्रेज़ मालूम पड़ता है।’ अपने हाथों को नचाकर बृजभूषण ने दो कदम आगे बढ़कर कहा, फिर राधा को देखा, ‘कौन है यह? तेरा खसम? क्या कब्र में से उठकर आ गया है?’
राजेश ने अपने सारे जीवन में आज तक किसी की भी कोई बात कभी सहन नहीं की थी, सदा लोग ही उसकी सुनते आए थे। कई दिनों से उसकी बॉक्सिंग छूटी हुई थी, तलवार नहीं थामी थी, कुश्ती का अभ्यास नहीं किया था, घुड़सवारी भी छूटी हुई थी। उसके शरीर का रक्त उबल गया। झट उसका एक हाथ हवा में लहराया और बृजभूषण के जबड़े पर इस प्रकार पड़ा कि चकराकर वह पीछे दीवार से जा टकराया, टकराते ही वह नीचे लुढ़क गया। आंगन की दीवारों की जड़ में कीचड़ एकत्र था, उसका चेहरा इसमें सनकर लथपथ हो गया। संभलकर वह उठा, घूरकर उसने राजेश को देखा, परंतु तभी राजेश फिर आगे बढ़ा। बृजभूषण के होश उड़ गए। सरपट वह इस प्रकार भागा कि इन दोनों के अतिरिक्त यदि कोई और उसे देखता तो हंसते-हंसते पेट में बल पड़ जाते।
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