बात उन दिनों की है, जब मैं ढाई- तीन साल की थी। तब मैं अपनी मम्मी को तो मम्मी ही पुकारती थी, लेकिन पापा या किसी भी जेंट्स को पापा कह दिया करती थी। मैं मम्मी के साथ दुकान, मार्केट, लिफ्ट, प्लेग्राउंड आदि जहां भी जाती तो सभी मेल मेम्बर को पापा पुकारने लगती। मां बहुत इम्बेरेसिंग फील करते हुए कहती, ‘बेटा ये पापा नहीं हैं। अंकल या भइया बोलो। लेकिन मेरी समझ में कुछ नहीं आता। एक दिन तो हद ही हो गई। घर में लाइट के स्विच की कुछ प्राब्लम हो जाने के कारण मम्मा ने इलेक्ट्रिशियन को बुलाया। मैं उसे भी पापा- पापा पुकारने लगी। मेरी मां ने फिर समझाया, ‘बेटा ये पापा नहीं हैं, अंकल बोलो। मैं छोटी थी, कुछ समझ ही नहीं आया, मैं चुप हो गई। रात को जब पापा ऑफिस से आए, तब मैं तपाक से बोल पड़ी, ‘पापा आज घर में एक और पापा आए थे। पापा ने मम्मी से पूछा, ‘कौन आया था? मम्मी ने बताया इलेक्ट्रीशियन था। फिर मम्मी-पापा जोर-जोर से खूब हंसने लगे। फिर पापा ने मुझे प्यार से समझाया, ‘बेटा, मैं आपका पापा हूं, बाकी सारे अंकल या भैया आदि हैं। इसके बाद पापा-मम्मी फिर से खूब हंसे।