हमारे घर पर पापा के कुछ दोस्त आए हुए थे तो मम्मी ने तरह-तरह के पकवान बनाए। मैं भी मम्मी का हाथ बंटा रही थी। जब मेहमान खाने पर आए तो वो लोग खाना खाने में सकुचा रहे थे, तो मैंने झट से बोला, इतना खाते हैं… शर्म नहीं आती। सभी मेहमानों का मुंह देखने लायक था। तभी पापा ने बोला, ये बोलना चाह रही है खाइए-खाइए शर्माते क्यों हैं। तब जाकर सभी को समझ आया और सभी ठहाके लगा कर हंसने लगे।
इतना खाते हैं शर्म नहीं आती
