कहीं सिरदर्द ब्रेन ट्यूमर की बड़ी वजह तो नहीं: World Brain Tumor Day
World Brain Tumor Day

World Brain Tumor Day: 14 साल का वासु सुबह स्कूल जाने की तैयारी कर रहा था कि अचानक उसके सिर में तेज दर्द होने लगा। उसके पेरेंट्स ने उसे पेनकिलर मेडिसिन देकर कुछ देर लेटने के लिए कहा। कुछ देर आराम करने पर हालांकि उसका सिरदर्द तो कुछ कम हुआ। लेकिन जैसे ही वह उठने लगा, सिर में दर्द एकाएक बढ़ गया। यहां तक कि आंखों के आगे अंधेरा-सा छा गया और चक्कर आ गया। उसके पेरेंट्स घबरा गए। उसे अस्पताल ले गए। डाॅक्टर ने वासु को ब्रेन ट्यूमर होने का अंदेशा व्यक्त किया और उपयुक्त जांच के लिए न्यूरोसर्जन डाॅक्टर के पास जाने के लिए बोला।  न्यूरोसर्जन ने सिटी स्कैन, एमआरआई करके डायग्नोज किया कि वासु को ब्रेन ट्यूमर है और इंडोस्कोपी सर्जरी करके उसका इलाज किया गया। 

ब्रेन ट्यूमर खतरनाक बीमारी जरूर है, लेकिन लाइलाज नहीं। बशर्ते कि यह सही समय पर पकड़ में आ जाए। सिरदर्द की बार-बार शिकायत होने के बावजूद अक्सर पेनकिलर खा ली जाती है और ब्रेन ट्यूमर की आशंका को नजरअंदाज किया जाता है। कई मामलों में तो मरीज को इसका पता सालों बाद चलता है। लेकिन एक साइलेंट किलर की तरह ब्रेन ट्यूमर धीरे-धीरे बढ़ता जाता है और जानलेवा कैंसर का रूप ले लेता है। जबकि शुरुआत में ही अगर इसका पता चल जाए तो सर्जरी करके गंभीर बीमारी से आसानी से बचा जा सकता है। आंकड़ों की मानें तो भारत मे प्रति एक लाख लोगों में से 8-10 लोग ब्रेन ट्यूमर के शिकार होते हैं। यह किसी को भी हो सकता है लेकिन 3-15 साल के बच्चों और 50 साल की उम्र के व्यस्क मरीज ज्यादा शामिल होते हैं।

क्या है ब्रेन ट्यूमर

आम भाषा में कहें तो ब्रेन में किसी भी तरह गिल्टी या गांठ होना और उसकी वजह से आसपास सूजन होना ब्रेन ट्यूमर है। जिसे वैज्ञानिक भाषा में इंटरा क्राॅल स्पेस-ओक्युपाइंग लेज़न  (आईसीएसओएल) कहा जाता है। यह सूजन जन्मजात भी हो सकती है, लेकिन उसे ट्यूमर नहीं कहा जा सकता। हमारे ब्रेन में विभिन्न तरह के सेल्स और टिशूज के असामान्य विकास प्रमुख कारण होते हैं जो नेचुरल प्रोसेस के कारण बनते-बिगड़ते रहते हैं। डेड होने वाले सेल्स के स्थान पर नए सेल्स बनते रहते हैं। लेकिन जब इस प्रोसेस में किसी भी तरह की बाधा आती है, तो पुराने सेल्स खत्म नही हो पाते और नए सेल्स निरंतर बनते रहते हैं। तब ये पुराने सेल्स इकठे होकर गांठ या ट्यूमर का रूप लेने लगते हैं और समय के साथ बढ़ते जाते हैं। ब्रेन में बनने वाली इस तरह की गाठों को ब्रेन ट्यूमर कहा जाता है।

ये ट्यूमर अपना असर तब दिखाना शुरू करते हैं जब ये गांठें ब्रेन के स्कल या खोपड़ी पर दवाब (इंटराक्रेनियनल प्रेशर)डालना शुरू करती हैं। या फिर जिस क्षेत्र में ये बन रही हैं, उस क्षेत्र की कार्य-प्रणााली को बाधित कर देती हैं। इससे हमें सिरदर्द, चक्कर आना जैसी तमाम तरह की परेशानियां होनी शुरू हो जाती हैं। अगर समय रहते समुचित इलाज नहीं कराया जाता, तो जानलेवा साबित होती हैं।

ब्रेन ट्यूमर के प्रकार

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ब्रेन ट्यूमर दो प्रकार के होता है-बिनाइन या नाॅन-कैंसरस और मेलिग्नेंट या कैंसरस। बिनाइन ट्यूमर धीरे-धीरे बढ़ता है और ब्रेन के दूसरे हिस्से में नहीं फैलता। इस ट्यूमर के सेल्स को मेडिसिन या सर्जरी से हटाया जा सकता है। इनके दोबारा होने की संभावनाएं कम होती हैं। जबकि मेलिग्नेंट ट्यूमर के कैंसरस सेल्स काफी तेजी से फैलते है। ये ब्रेन के दूसरे हिस्सों, यहां तक कि रीढ़ की हड्डी, ब्रेस्ट, लंग्स और दूसरे अंगों तक फैल जाते हैं। सर्जरी उपचार के बाद भी इनके दोबारा होने की संभावना रहती है। इन सेल्स को मेटास्टेटिक ब्रेन ट्यूमर सेल्स भी कहा जाता है।

ब्रेन ट्यूमर के मामले में सबसे बड़ी परेशाानी यह है कि शुरूआती दिनों में इसका आसानी से पता नहीं लग पाता। एक सर्वे के आधार पर आधे मरीजों को इसका पता साल भर बाद लग पाता है। करीब 10-15 प्रतिशत मरीज 5 साल तक और करीब 20 प्रतिशत मरीज 10-10 साल तक इस बीमारी से अंजान रहते हैं। ऐसे मरीज ब्रेन ट्यूमर की एडवांस स्टेज में ही डाॅक्टर के पास जाते हैं और इनमें से तकरीबन 5 प्रतिशत मरीज मुश्किल से ही बच पाते हैं। जबकि मेडिकल साइंस ने इतनी तरक्की कर ली है कि अगर सही समय पर ब्र्र्रेन ट्यूमर डायग्नोज हो जाए, तो काफी मरीज इस बीमारी से बच सकते हैं।

 क्या है कारण   

  • रेडिएशन या एक्स-रे के संपर्क में रहना। जैसे- कैंसर जैसी बीमारी की वजह से रेडिएशन थेरेपी देने पर।
  • ब्रेन या सिर में किसी तरह की सर्जरी में डैमेज हुए सेल्स आगे चलकर ट्यूमर का रूप ले सकते हैं।
  • इलेक्ट्रोमैग्नेटिक उपकरण खासकर मोबाइल फोन के ज्यादा इस्तेमाल से निकलने वाली रेज़ के कारण।
  • वातावरण में मौजूद वायरस।
  • आनुवांशिक या फिर हमारे द्वारा बरती जाने वाली लापरवाही।
  • लकड़ी या कोयला जलाकर धुंए में पकाई जाने वाली चीजों को खाने से।

क्या है लक्षण

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ब्रेन ट्यूमर के कुछ आम लक्षण इस तरह के होते हैं कि जिसका अंदाज आराम से लगाया जा सकता है और बिना किसी देरी किए डाॅक्टर को कंसल्ट कर सकते हैं- 

  • सुबह के समय सिर में तेज दर्द होना और कुछ समय बाद बराबर दर्द रहना।
  • सुबह के समय जी मितलाना, उल्टियां आना, कमजोरी महसूस होना।
  • शरीर मेें संतुलन बनाने में परेशाानी होना, चलते समय लड़खडा जाना, चक्कर आना।
  • हाथ-पैर का बार-बार सो जाना या संवेदना शून्य होना, हाथ-पैर की मसल्स में ऐंठन होना।
  • कम या धुंधला दिखाई देना, कलर ब्लाइंडनेस होना।
  • बोलने-सुनने में परेशानी होना। कानों में हमेशा ही कुछ आवाजे सुनाई देना।
  • दौरे पड़ना, बेहोश हो जाना।
  • स्वभाव में परिवर्तन होना, चिडचिड़ापन आना, उदासी आना।
  • खाने-पीने में परेशानी।
  • याददाश्त का कमजोर होना।

कैसे होती है जांच

आनुवांशिक बीमारी होने का पता लगाने के लिए डाॅक्टर सबसे पहले मरीज की फैमिली हिस्ट्री जानते हैं। मरीज का मेडिकल चैकअप करके उसके स्वास्थ्य की जांच की जाती है जैसे- मरीज का चेतना स्तर, देखने-सुनने और बोलने की क्षमता पर असर पड़ना, खाने-पीने में दिक्कत, शारीरिक संतुलन। ब्रेन ट्यूमर की स्थिति को डायग्नोज करने के लिए सिटी स्कैन, एमआरआई, एमआर स्पेक्ट्रोस्कोपी, एंजियोग्राफी, स्पाइनल टेप, बाॅयोप्सी की जाती है। इन से ट्यूमर की स्टेज के साथ यह भी पता चल जाता है कि ट्यूमर निकालना संभव है या नहीं। 

क्या है उपचार

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ब्रेन ट्यूमर का स्थाई उपचार सिर्फ सर्जरी हैै। डायग्नेाज की रिपोर्ट के आधार पर डाॅक्टर निर्धारित करता है कि ब्रेन ट्यूमर के इलाज के लिए कौन सी तकनीक अपनाए। जरूरत पड़ने पर एक से ज्यादा तकनीक का इस्तेमाल भी किया जाता है। उपचार मरीज के अलावा ब्रेन ट्यूमर की स्थिति पर भी निर्भर करता है। यानी ट्यूमर किस तरह का है, दिमाग के किस हिस्से में है, किस स्टेज में है और कितना बड़ा है। ब्रेन ट्यूमर का उपचार इंडोस्कोपिक सर्जरी, रेडिएशन थेरेपी और कीमोथेरेपी से किया जाता है। अब कंप्यूटर आधारित स्टीरियोटैक्टिक और रोबोटिक सर्जरी जैसी नवीनतम तकनीके भी इस्तेमाल में लाई जा रही हैं। 

इनमें इंडोस्कोपिक सर्जरी बेहतर और सुरक्षित है। बिनाइन ट्यूमर के लिए इंडोस्कोपिक सर्जरी पूरी तरह कामयाब रहती है। इसमें मरीज को सर्जरी के बाद फोलोअप करना पड़ता है। जिसमें नियमित चैकअप किया जाता है। कई बार सर्जरी के बाद भी ब्रेन ट्यूमर के सेल्स शरीर में रह जाते हैं जिसके लिए रेडिएशन थेरेपी दी जाती है। मेलिग्नेंट ट्यूमर के इलाज के लिए सर्जरी के बाद रेडिएशन और कीमोथेरेपी भी दी जाती हैं। दो तरह की रेडिएशन थेरेपी अपनाई जाती हैं- एक्सटर्नल और इंटरनल। इनमें एक्सटर्नल रेडिएशन थेरेपी ज्यादा प्रचलित है। ट्यूमर सेल्स को खत्म करने के लिए पेशंट का इलाज कीमोथेरेपी से भी किया जाता है। इसमें मरीज को ओरल या इंजेक्शन के माध्यम से दवाई दी जाती हैं जो खून में मिलकर अपना असर दिखाती हैं।

बचाव के उपाय

इससे बचाव के लिए शारीरिक और मानसिक व्यायाम करना चाहिए। प्राणायाम जैसे योगासन करना फायेदमंद है। इससे ब्रेन को ऑक्सीजन की आपूर्ति सुचारू रूप से होती है। इसके अलावा इन बातों का भी ध्यान रखना चाहिए-नींद पूरी लें, तनाव से दूर रहें, नशा, एल्कोहल या ड्रग्स न लें, पौष्टिक और संतुलित आहार लें, जंक फूड से दूर रहें, ज्यादा से ज्यादा पानी पिएं, अधिक से अधिक सक्रिय रहें।

(डाॅ दिनेश कुमार सती, न्यूरोसर्जन स्पेशलिस्ट, गुरु तेग बहादुर अस्पताल, नई दिल्ली)