World Diabetes Day: कई सालों से डायबिटीज़ को दो प्रकारों में बांटा गया है-टाइप 1 डायबिटीज़, जिसमें शरीर अपनी ही अग्न्याशय (pancreas) पर हमला करता है और इंसुलिन बनना बंद हो जाता है; और टाइप 2 डायबिटीज़, जिसमें शरीर इंसुलिन का सही उपयोग नहीं कर पाता, जो आमतौर पर जीवनशैली और जेनेटिक कारणों से जुड़ा होता है। लेकिन क्या होता है जब दोनों स्थितियाँ एक साथ दिखाई दें?
अब डॉक्टर “डबल डायबिटीज़” जैसी स्थिति देख रहे हैं। यह कोई आधिकारिक बीमारी का नाम नहीं है, लेकिन इसका मतलब है-टाइप 1 डायबिटीज़ वाला व्यक्ति, जो अब इंसुलिन रेज़िस्टेंस यानी टाइप 2 डायबिटीज़ की तरह की समस्या भी झेल रहा है। डबल डायबिटीज़ के मानवीय पहलू कल्पना कीजिए एक ऐसे व्यक्ति की जो बचपन से ही हर भोजन के कार्बोहाइड्रेट गिनता है, ब्लड शुगर चेक करता है और रोज़ इंसुलिन लेता है। उसने सब कुछ सही किया, फिर भी अब वही इंसुलिन असर नहीं कर रही। ब्लड शुगर बढ़ी रहती है, जबकि जीवनशैली में कुछ भी नहीं बदला। यही “डबल डायबिटीज़” की हकीकत है-शरीर पहले ही इंसुलिन नहीं बना पा रहा था, अब ऊपर से शरीर की कोशिकाएँ (मांसपेशियाँ, चर्बी और लिवर) उस इंजेक्टेड इंसुलिन को भी “नज़रअंदाज़” करने लगी हैं।
ऐसा क्यों हो रहा है?

आज के समय में टाइप 1 डायबिटीज़ वाले लोग पहले से ज़्यादा लंबा और बेहतर जीवन जी रहे हैं। इसलिए अब वे भी वही जीवनशैली अपना रहे हैं, जो दूसरों की होती है-और यही वजह बन रही है इंसुलिन रेज़िस्टेंस की।
मुख्य कारण हैं:
- • पेट के आसपास बढ़ता वजन
- • शारीरिक गतिविधि की कमी
- • प्रोसेस्ड फूड, फैट और शक्कर से भरपूर आधुनिक आहार
मतलब साफ़ है — टाइप 1 डायबिटीज़ वाला व्यक्ति भी टाइप 2 जैसी मेटाबॉलिक समस्याओं से नहीं बचा है।
पूरे शरीर पर असर
यह दोहरी स्थिति शरीर पर बड़ा बोझ डालती है। मरीज को अब पहले से ज़्यादा इंसुलिन की ज़रूरत पड़ती है, जिससे वजन और बढ़ता है — और यह एक कठिन चक्र बन जाता है। इसका असर फेफड़ों और दिल पर भी पड़ता है। वजन बढ़ना और कंट्रोल में न रहने वाला शुगर स्तर, स्लीप एपनिया (नींद में सांस रुकने की समस्या) का ख़तरा बढ़ाता है, जो नींद और हृदय स्वास्थ्य दोनों को प्रभावित करता है। साथ ही, बहुत ज़्यादा ब्लड शुगर इम्यून सिस्टम को कमजोर कर देती है, जिससे फेफड़ों में संक्रमण (जैसे निमोनिया) का खतरा बढ़ जाता है।
आगे का रास्ता-नई सोच

यह स्थिति चुनौतीपूर्ण है, लेकिन निराशा की नहीं — इसे संभाला जा सकता है। अब सिर्फ इंसुलिन बढ़ाना काफी नहीं है। ज़रूरत है नई रणनीति की:
- • लाइफस्टाइल फर्स्ट: दिल के लिए हेल्दी डाइट और नियमित व्यायाम बहुत ज़रूरी हैं। व्यायाम शरीर की कोशिकाओं को फिर से इंसुलिन के प्रति संवेदनशील बनाता है।
- • टीमवर्क: मरीज, चिकित्सक, डाइटीशियन और अन्य विशेषज्ञों के बीच बेहतर सहयोग ज़रूरी है ताकि पूरे शरीर की सेहत पर ध्यान दिया जा सके।
“डबल डायबिटीज़” हमें याद दिलाती है कि इलाज सिर्फ ब्लड शुगर का नहीं, बल्कि पूरे व्यक्ति की सेहत का होना चाहिए। सही जानकारी और सामूहिक प्रयास से इस स्थिति को अच्छी तरह नियंत्रित किया जा सकता है।
डॉ. विनीता टंडन, वरिष्ठ सलाहकार, इंटरनल मेडिसिन, भारतीय स्पाइनल एवं इंजरी सेंटर
