– नीता गुप्ता, बीकानेर
जब गुर्दे में सिकुडऩ होती है, तो इसका अर्थ होता है कि रोगी को गुर्दे की बीमारी (किडनी फेल्योर) है। इस रोग में यूरिया और क्रिएटिनिन बढ़ जाता है और हीमोग्लोबिन कम हो जाता है। गुर्दे की बीमारियों का अगर जल्द पता लग जाये, तो ठीक किया जा सकता है। रोग का सही तरीके से पता लगाने के लिए गुर्दे की बायोप्सी की आवश्यकता होती है। लेकिन जब गुर्दे सिकुड़ चुके हैं, तो बायोप्सी संभव नहीं है और सटीक कारण भी पता लगाना मुश्किल है। पहला प्रयास रोग की प्रगति को कम करने के लिए किया जाना चाहिए। बाद में डायलिसिस और प्रत्यारोपण।
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