गर्भावस्था एक रोग नहीं बल्कि जीवन का एक सामान्य अंग है। पहले-पहल दाइयां ही इन परिस्थितियों का सामना पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों के द्वारा करती थी लेकिन अब ये चिकित्सा शाखाएं, पहले से कहीं सक्षम होकर हमारी चिकित्सा पद्धति की पूरक हो गई हैं। यह आपके व आपके परिवार का एक अंग बनती जा रही हैं। इसलिए गर्भवती महिलाओं को पूरक व वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति की मदद लेनी चाहिए। आजकल ये सब पद्धतियां गर्भावस्था व प्रसव के लिए पूरक सिद्ध हो रही हैं। वे हैं‒

एक्यूपंचर :- चीनी हजारों वर्षों से जानते थे कि एक्यूपंचर से गर्भावस्था के कई लक्षणों से मुक्ति पाई जा सकती हैं किंतु पारंपरिक प्रसूति विज्ञान ने कुछ ही समय से इस पर ध्यान देना आरंभ किया है। वैज्ञानिक शोध प्राचीन बुद्धिमता की ओर मुड़ रहा है। शोधकर्ताओं ने पता लगाया है कि एक्यूपंचर की मदद से मस्तिष्क से कई तरह के रसायनों का स्राव होता है,जिससे दर्द के लक्षणों में कमी आती है। ऐसा कैसे होता है? एक्यूपंचर पद्धति के विशेषज्ञ,शरीर के विभिन्न मैरीडियनों में पतली सुइयां चुभोते हैं। प्राचीन परंपरा के अनुसार यह मार्ग ‘चैनल’ हैं, जिनके माध्यम से शरीर की जीवन ऊर्जा ‘ची’ प्रवाहित होती है।

शोधकर्ताओं ने यह भी पता लगाया है कि जब इलैक्ट्रो पंचर तरीके से यह सुइयां चुभोई जाती हैं तो स्नायु उत्तेजित होते हैं। जिससे एंडोरफिन का स्राव बढ़ता है तथा पीठ दर्द, जी मिचलाने, गर्भावस्था के अवसाद व अन्य लक्षणों से छुटकारा मिलता है। इसे प्रसव के समय होने वाले दर्द को घटाने के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है। एक्यूपंचर से बांझपन की समस्या में मदद ली जा सकती है।

एक्यूप्रेशर :- एक्यूप्रेशर या ‘शिएत्सू’ भी एक्यूपंचर के सिद्धांत पर ही काम करता है। इसमें सुइयां चुभोने की बजाय हाथ की अंगुलियों व अंगूठे से दबाव दिया जाता है या फिर अनाज के दानों से दबाव दे कर टेप चिपका दी जाती है। कलाई के भीतरी ओर एक खास बिंदु पर दबाव देने से जी मिचलाने से छुटकारा मिल सकता है। इसी तरह एक्यूप्रेशर में हाथों-पैरों के कई बिंदु होते हैं, जिन्हें किसी प्रोफेशनल की मदद से सीखने के बाद ही आजमाना चाहिए।

बायोफीडबैक :- यह एक ऐसी विधि है,जिसमें रोगियों को सिखाया जाता है कि वे शारीरिक या भावनात्मक तनाव से मुक्ति पाने के लिए अपनी जैविक प्रतिक्रिया का प्रयास कैसे कर सकते हैं। इससे सिरदर्द, पीठ दर्द,शरीर के किसी भी हिस्से में दर्द, अनिद्रा व जी मिचलाना जैसे गर्भावस्था के कई लक्षणों मेें आराम आ सकता है। रक्तस्राव घटाने, अवसाद,उत्तेजना व तनाव से लड़ने के लिए भी बायोफीडबैक का इस्तेमाल कर सकते हैं।

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मालिश :- मालिश से वमन से छुटकारा मिल सकता है, लेकिन कुछ गर्भवती महिलाएं मालिश के बाद ही जी मिचलाने की शिकायत कर सकती हैं। इससे पीठ दर्द, सिर दर्द व सियाटिका से आराम मिलने के साथ-साथ, शरीर की मांसपेशियां प्रसव के लिए भी तैयार होती हैं। प्रसव पीड़ा के दौरान भी इसका इस्तेमाल होता है ताकि मांसपेशियों को आराम मिले व दर्द घट सके। इससे तनाव से भी छुटकारा मिलता है। आप मालिश करवाने से पहले देख लें कि उक्त व्यक्ति प्रसव-पूर्व मालिश के लिए प्रशिक्षित है या नहीं!

रिफ्लैक्सोलॉजी :- एक्यूप्रेशर की तरह रिफ्लैक्सोलॉजी में हाथ-पांव व कानों पर हल्का दबाव दिया जाता है ताकि कई तरह के दर्द के लक्षणों से मुक्ति मिल सके। जब भी आप इस चिकित्सा के लिए जाएं तो अपने गर्भवती होने की सूचना दे दें ताकि वे चिकित्सा में पूरी तरह सावधानी बरतते हुए, निश्चित बिंदुओं पर दबाव दें।

कीरोप्रैक्टिक चिकित्सा :- इस चिकित्सा में रीढ़ की हड्डी व अन्य जोड़ों तथा स्नायु सामान्य गति से चलते रहें और शरीर की स्वयं चिकित्सा करने की क्षमता बढ़ सके। कीरोप्रैक्टिक की मदद से गर्भवती महिला को वमन, पीठ-दर्द,जोड़ों के दर्द, शियाटिका व अन्य दर्दों से छुटकारा मिल सकता है। कीरोप्रैक्टर गर्भवती महिलाओं के लिए ऐसे ही तरीके आजमाते हैं जिससे महिलाएं सुरक्षित रहें व उनके पेट के निचले हिस्से पर दबाव न पड़े।

जल चिकित्सा (हाइड्रोथैरपी) :- कई अस्पतालों या बर्थ सेंटरों में भी गर्भवती महिलाओं को गर्म पानी के टब में लिटाया जाता है। कई महिलाएं पानी में ही बच्चे को जन्म देना चाहती हैं।

अरोमाथैरपी :- शरीर, मन व आत्मा के आरोग्य के लिए सुगंधित तेलों का प्रयोग किया जाता है। हालांकि कुछ अरोमा विशेषज्ञों का मानना है कि इस विषय में अपेक्षित सावधानी बरतें क्योंकि कुछ तेल, गर्भवती महिलाओं को नुकसान पहुंचा सकते हैं।

ध्यान, मानसिक चित्रण व रिलैक्सेशन की तकनीकें :- इनकी मदद से गर्भवती महिला को शारीरिक व मानसिक तनावों से छुटकारा दिलाया जा सकता है, जिनमें मॉर्निंग सिकनेस से लेकर,प्रसव पीड़ा तक शामिल हैं। इससे भावी माता की उत्तेजना पर काफी हद तक काबू पाया जा सकता है। आप इस पुस्तक में दिए व्यायाम कर सकती हैं।

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सम्मोहन विधि (हिप्नोथैरेपी) :- सम्मोहन से भी गर्भावस्था के लक्षणों से मुक्ति मिलती है। तनाव घटता है, अनिद्रा रोग से छुटकारा मिलता है।प्रसव-पीड़ा के दौरान दर्द का प्रबंधन करना आता है तथा शिशु का जन्म एक कम दर्द वाली सरल प्रक्रिया में बदला जा सकता है। इस स्थिति में शरीर को गहराई से रिलैक्स कर दिया जाता है ताकि शरीर को दर्द की अनुभूति ही न हो। याद रखें कि यह विधि सबके काम नहीं आ सकती।कुछ लोगों पर ही सम्मोहन के सुझावों का प्रभाव होता है। किसी सम्मोहन विशेषज्ञ की सेवाएं लेने से पहले पता लगा लें कि वह प्रमाणित हो तथा गर्भावस्था थैरेपी का अनुभवी हो।

मॉक्सीबशन :- इस वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति में एक्यूपंचर के साथ-साथ उस्मा को शामिल किया जाता है ताकि ‘ब्रीच बेबी’ को धीरे से पलटा जा सके। यदि आप भी इस तकनीक की मदद लेना चाहें तो किसी अनुभवी एक्यूपंचरिस्ट की मदद लें।

जड़ी बूटियों से उपचार :- सदियों से जड़ी-बूटियां रोगों का उपचार करती आ रही हैं। वे गर्भावस्था के लक्षणों से निबटने में पूरी तरह सक्षम हैं। हालांकि विशेषज्ञ इन्हें पूरी तरह प्रयोग में लाने की सलाह नहीं देते क्योंकि इस विषय में अभी पूरी तरह शोध नहीं हुआ है। हालांकि पूरक और वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति, प्रसूति विज्ञान में प्रवेश कर चुकी हैं। इनके प्रयोग से पहले अपेक्षित सावधानी बरतनी चाहिए व इनकी कमियों को भी ध्यान में रखना चाहिए।

  • अपनी दाई या लेडी डॉक्टर को भी इस बारे में बता दें ताकि आपको संपूर्ण पूरक चिकित्सा मिल सके। इससे आपको व शिशु को पूरी सुरक्षा भी मिलेगी।
  • पूरक दवाओं (जड़ी-बूटियों से तैयार) से आप सुरक्षा के प्रति पूरी तरह आश्वस्त नहीं हो सकते क्योंकि उनकी चिकित्सीय जांच नहीं हुई होती।हालांकि उनके इस्तेमाल में कोई दिक्कत नहीं हैं, बस हम अधिकारिक तौर पर उनके लाभ-हानियों की व्याख्या नहीं कर सकते। जब तक इस विषय में और अधिक जानकारी न मिले, इन दवाओं के प्रयोग से पूर्व अनुभवी विशेषज्ञों की राय अवश्य लें।
  • कई पूरक पद्धतियां ऐसी भी हैं जो यूं तो फायदेमंद है। लेकिन गर्भवती महिलाओं को उनके प्रयोग से पहले सावधानी बरतनी पड़ती है इसलिए अपने डॉक्टर को गर्भावस्था के बारे में बताना न भूलें ।
  •  इन चिकित्सा पद्धतियों के प्रयोग के तरीके पर भी काफी कुछ निर्भर करता है। याद रखें कि प्राकृतिक का मतलब ‘सुरक्षित’ और रसायन का मतलब ‘हानिकारक’ नहीं होता। अपनी पूरक चिकित्सा पद्धतियों को गर्भावस्था के साथ लेकर चलें, पर थोड़ी सावधानी के साथ…।

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