वै से तो हर उम्र के व्यक्ति डिप्रेशन के शिकार हो सकते हैं और यह स्त्री-पुरुष में भेद नहीं करता, लेकिन पुरुषों की तुलना में महिलाएं अधिक डिप्रेज्ड होती हैं। महिलाएं अधिक भावुक होती हैं, इसलिए वे इसकी चपेट में आ जाती हैं। हालांकि महिलाएं अपने डिप्रेशन को स्वीकार कर लेती हैं, जबकि पुरुष इसे स्वीकार करने में संकोच करते हैं।

लक्षण

  • गुमसुम रहना
  • ऊर्जा और उत्साह में भारी कमी
  • अत्यधिक खाना या बहुत कम खाना
  • भीतर से टूट जाना तथा आत्मविश्वास डगमगाना
  • पढ़ाई, नौकरी, काम में मन नहीं लगना
  • सामाजिक मेलमिलाप से कटना
  • अज्ञात भय पैदा होना
  • एकांतप्रिय होना
  • स्वयं अपना ख्याल नहीं रखना
  • स्वभाव में चिड़चिड़ापन या आक्रामकता
  • जीवन के प्रति निराशावादी दृष्टिकोण
  • जिस कार्य में पहले रुचि थी, उससे विमुक्त होना
  • आत्महत्या के विचार मन में आना।

डिप्रेशन के कारण

कोई महिला डिप्रेशन में क्यों आ जाती है, इसके कई कारण हो सकते हैं। महिलाओं में डिप्रेशन के कारण पुरुषों से भिन्न हो सकते हैं। किशोरियां, युवतियां, प्रौढ़ाओं और वृद्धाओं में अवसाद अलग-अलग कारणों से हो सकता है।

किशोरावस्था में हार्मोंस में बदलाव आते हैं, जिसकी वजह से उनके शरीर में परिवर्तन होने लगते हैं। किशोरियों-युवतियों में अवसाद के कारण थोड़े भिन्न होते हैं। उन्हें अपनी पढ़ाई के साथ-साथ करियर बनाने की चिंता भी रहती है। प्यार में धोखा खाने पर भी वे अवसादग्रस्त हो जाती हैं। कामकाजी महिलाओं में डिप्रेशन की कुछ खास वजहें भी हो सकती हैं, जैसे घर और दफ्तर, दोनों मोर्चे को ठीक से संभाल नहीं पाना। दहेज प्रताड़ना, पति व ससुराल वालों का क्रूर व्यवहार तथा पारिवारिक उपेक्षा उन्हें अवसाद में ले जाती है। कुछ महिलाएं इसलिए अवसाद में चली जाती हैं कि वे मां नहीं बन सकतीं और बांझ होने के ताने बर्दाश्त नहीं कर पातीं।

अधिकांश महिलाएं गर्भावस्था तथा प्रसव के दौरान किसी अनिष्ट की आशंका से अवसादग्रस्त हो जाती हैं। यदि किसी महिला के साथ बचपन या किशोरावस्था में शारीरिक शोषण हुआ हो तो वह शादी के बाद भी उसे डिप्रेशन में डाल सकता है। इसी प्रकार किसी विवाहित महिला के साथ हुई ज्यादती भी उसे डिप्रेशन का शिकार बना देती है। बार-बार गर्भपात होना या जन्म के कुछ समय बाद शिशु की मौत हो जाना भी उसे अवसाद में ला देती है। विवाह योग्य लड़के या लड़की का देर तक अविवाहित रह जाना भी डिप्रेशन का कारण बनता है। कुछ आॢथक, सामाजिक और पारिवारिक कारण भी इसके लिए जिम्मेदार होते हैं।

गरीबी, बेरोजगारी और भुखमरी इसके मुख्य कारण हैं। नौकरी का छूटना या व्यापार-व्यवसाय में घाटा होना, किसी प्राकृतिक विपदा के कारण सब-कुछ नष्ट हो जाने आदि से भी महिलाएं डिप्रेशन में आ जाती हैं। ऑफिस में बॉस के साथ तालमेल नहीं बैठ पाना भी इसका एक कारण है। पति-पत्नी के बीच अनबन होना, तलाक होना, पारिवारिक कलह आदि भी डिप्रेशन का कारण बनते हैं। कुछ स्वास्थ्य संबंधी कारण भी डिप्रेशन के लिए जिम्मेदार हैं, जैसे कोई गंभीर या असाध्य बीमारी जिसमें कैंसर, एड्स आदि शामिल हैं। इसके अलावा किसी दुर्घटना में अपाहिज होना भी उन्हें अवसाद में डाल देता है। अवसाद का सबसे बड़ा कारण तनाव है। यह तनाव किसी भी तरह का हो सकता है। चिंता, चिता सजाती है, यानी व्यक्ति को मौत के मुंह में ले जाती है। किसी प्रियजन की मौत का सदमा भी उसे बर्दाश्त नहीं होता। यह प्रियजन कोई भी हो सकता है जैसे- पति, माता-पिता, संतान, भाई, बहन, सहेली आदि।

असमय और आकस्मिक रूप से पति की मृत्यु होने से वैधव्य धारण करने से भी महिलाएं अवसाद का शिकार हो जाती हैं। प्रौढ़ महिलाएं अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों को ठीक से नहीं निभा पातीं या उनमें लाचारी रहती है तो भी वे डिप्रेशन में आ जाती हैं। वृद्धाओं के डिप्रेशन के अपने कारण हैं। पहली बात यह कि उनका शरीर साथ नहीं देता। जब वे लंबे समय तक बीमारी से घिरी रहते हैं तो अवसाद में चली जाती हैं। चूंकि वे अपनी सोच को बदल नहीं पातीं, इसलिए नई पीढ़ी से तालमेल नहीं बिठा पाती हैं और परिवार के वातावरण से उन्हें खिन्नता होती है। परिवार में उनकी पूछ-परख कम होना, सम्मान की बजाय असम्मान और उपेक्षा मिलना आदि भी ऐसे कारण हैं कि वे अवसाद में चली जाती हैं।

चिकित्सा विज्ञान के अनुसार किसी व्यक्ति के अवसाद में आने के कुछ जैविक आनुवांशिक और मनो-सामाजिक कारण भी होते हैं। मुख्य भूमिका बायोकैमिकल असंतुलन की होती है। दिमाग के न्यूरोट्रांसमीटर में कमी इसका कारण है। नेरोपाइनफ्राइन नामक रसायन में असंतुलन सेरोटोनिन का स्तर रक्त में कम होना, एड्रेनिल और होमामाइन हार्मोन के बीच असंतुलन तथा ब्रेन कैमिस्ट्री में पाया असंतुलन भी डिप्रेशन में डाल सकता है। मिशीगन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने 2001 से 2010 के बीच हुए करीब 55 शोधों का अध्ययन करने के बाद यह निष्कर्ष दिया कि डिप्रेशन के लिए हमारे जींस भी जिम्मेदार होते हैं। ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों के अनुसार कम रोशनी में सोने की आदत भी डिप्रेशन का शिकार कर सकती है। नियमित तौर पर हल्की रोशनी में सोने से रासायनिक संतुलन बिगड़ता है और इसका मस्तिष्क पर असर पड़ता है।

डिप्रेशन का उपचार

डिप्रेशन लाइलाज बीमारी नहीं है। यदि पीड़िता पूर्ण उपचार कराए तो इससे पूरी तरह मुक्त हो सकती है। हालांकि इसका इलाज कुछ लंबा चलता है। इलाज में मनोचिकित्सा व दवाओं का इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा कुछ आधुनिक तकनीकों से भी इसका कारगर उपाय हो सकता है। विडंबना यह है कि डिप्रेशन के आधे से अधिक मरीज अपना इलाज अधूरा छोड़ देते हैं। एंटी-डिप्रेशन दवाएं लेने वाली अधिकतर महिलाएं छह महीने से भी कम समय में इन्हें लेना छोड़ देती हैं, जबकि गंभीर रूप से डिप्रेशन से पीड़ित मरीजों के लिए कम से कम छह माह का इलाज जरूरी है।

 

अधिकतर महिलाएं उस वक्त इलाज छोड़ देती हैं, जब डिप्रेशन चरम पर होता है, यानी कि इलाज के पहले महीने में ही। इस वजह से उनका सही इलाज नहीं हो पाता है और वे इससे उभर नहीं पातीं। डिप्रेशन का संबंध चूंकि मन:स्थिति से होता है, इसलिए उसका उपचार साधारण डॉक्टर की बजाय मनोचिकित्सक से कराना चाहिए। साइकोथैरेपी के जरिये वे ठीक हो सकती हैं। इसके अलावा बिहेवियर थैरेपी, ग्रुप थैरेपी तथा कोजेनिटिव थैरेपी भी उन्हें डिप्रेशन से निजात दिलाने में मददगार होती है। जरूरत पड़ने पर डॉक्टर अवसादरोधी दवाएं भी देते हैं। डॉक्टर द्वारा सुझाई गई कोई भी दवा अपने मन से ज्यादा खरीद कर देर तक सेवन न करें। विश्व में पहली बार सर्जरी के जरिये डिप्रेशन का इलाज भी हाल ही में किया गया है। लंबे समय से डिपे्रशन से जूझ रही 62 वर्षीय एक नर्स की न्यूरोसर्जरी की गई।

ब्रिटेन की रहने वाली इस महिला को इतना ज्यादा डिप्रेशन था कि उन्हें हमेशा खुदकुशी के ही ख्याल आते थे। उन पर डिप्रेशन की गोलियों का असर भी नहीं हो रहा था। इसे देखते हुए डॉक्टरों ने ब्रिस्टल के एक अस्पताल में उनकी सर्जरी की। उन पर डीप ब्रेन रिटक्लेशन (डीबीएस) किया गया। इसमें पतले वायरों को दिमाग में डाला जाता है और लगातार इलेक्ट्रिक स्टिम्लेशन दिया जाता है। रूस में यूनिवॢसटी मेडिकल सेंटर के मनोचिकित्सकों ने डिप्रेशन के इलाज का एक नया तरीका खोजा है। इसे टांसक्रेनियल मैग्नेटिक स्टिमुलेशन (टीएमएस) थैरेपी नाम दिया गया है। इसके जरिये मस्तिष्क के एक खास हिस्से को चुंबकीय क्षेत्र पल्सेस के संपर्क में लाया जाता है, ताकि डिप्रेशन से जुड़ा दिमाग का हिस्सा सक्रिय हो सके। टीएमएस को अमेरिकी फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन की अनुमति मिल चुकी है। यह डिप्रेशन का सुरक्षित और प्रभावी इलाज है।

परिवार की भूमिका

यदि किसी परिवार की कोई महिला डिप्रेशन में है तो परिजनों की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण होती है। परिजन ही लक्षणों को देखकर उनके अवसाद में होनेका पता लगा सकते हैं। उनसे आत्मीयता के साथ पेश आएं। उनके स्वभाव में आए परिवर्तन को अन्यथा न लें। अपने घर-परिवार का माहौल खुशनुमा बनाएं। यदि वह किसी अपराधबोध की वजह से डिप्रेशन में हैं तो उनका अपराध बोध दूर करें। उन्हें अकेला न छोड़ें। उन्हें इस बात का एहसास कराएं कि पूरा परिवार उनके साथ है। उनकी समस्याओं और परेशानियों को जानने की कोशिश करें तथा उनमें आत्मविश्वास पैदा करें। जीवन के प्रति उनमें आशा जगाएं।

परिजनों को चाहिए कि वे रोगी को किसी अच्छे मनोचिकित्सक को दिखाएं तथा उनकी सलाह पर पूर्ण उपचार कराएं। डिप्रेशन को आप साधारण बात समझकर नजरअंदाज न करें, क्योंकि इसका हश्र अच्छा नहीं होता। यह तन और मन दोनों को बीमार कर देता है। यह हृदय रोग के खतरे को चार गुना बढ़ा देता है। इसके अलावा इससे हड्डियां कमजोर होने लगती हैं तथा ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा बढ़ जाता है।

डिप्रेशन जानवेला भी हो सकता है, क्योंकि अवसादग्रस्त व्यक्ति आत्महत्या भी कर सकता है। उन्हें यह विश्वास दिलाएं कि वे जल्द ही पूरी तरह ठीक हो जाएंगी। उन्हें उपेक्षा की नहीं, सहानुभूति की जरूरत है। पीड़िता अपने उपचार से मना कर सकती है या उसमें कोताही बरत सकती है, लेकिन घर के किसी जिम्मेदार सदस्य को उसकी दवाओं की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। परिजनों को थोड़ा धैर्य रखना चाहिए।

डिप्रेशन को आप साधारण बात समझकर नजरअंदाज न करें, क्योंकि इसका हश्र अच्छा नहीं होता। यह तन और मन दोनों को बीमार कर देता है। यह हृदय रोग के खतरे को चार गुना बढ़ा देता है। इसके अलावा इससे हड्डियां कमजोर होने लगती हैं तथा ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा बढ़ जाता है। डिप्रेशन जानवेला भी हो सकता है।

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