आज से ज्यादा नहीं सिर्फ 30-40 साल पहले की ही बात करें, तो शायद ही  किसी को याद आए, कि उसने टेंशन, फ्रस्ट्रेशन, ईगो, स्पेस, एंग्जाईटी या इन सबके भी बड़े भाई डिप्रेशन का नाम कभी सुना हो। आज यह सारे शब्द और इनमें भी खास तौर से एंग्जाईटी और डिप्रेशन शब्द और इनकी गिरफ्त, इतनी आम बात हो चुकी है कि कम से कम नगरों में तो हर सामान्य व्यक्ति इनसे परिचित है ही। ध्यान देने की बात यह है, कि जो देश सुविधाओं, संपन्नता और आधुनिकता की दौड़ में जितना आगे है, उसके लोग उतना ही इन दोनों मानसिक व्याधियों की गिरफ्त में हैं।

क्या है एंग्जाईटी 

आइए पहले एंग्जाईटी की ही बात करते हैं। अंग्रेजी में 3 लगभग समानार्थी शब्द हैं- फियर, एंग्जाईटी और फोबिया। फियर का अर्थ है- सामान्य डर, जो लगभग सभी को कभी-ना-कभी स्वाभाविक रूप से महसूस होता है। फोबिया अत्यंत असामान्य भय है, जिसके पीछे कोई कारण नजर नहीं आता, जैसे- किसी को पानी से डर लगता है, तो किसी को ऊंचाई से, लेकिन एंग्जाइटी डर का वह स्थाई भाव है, जो व्यक्ति के पूरे दैनिक जीवन को प्रभावित करता है। उदाहरण के लिए करियर या जीवन में नाकामयाबी का डर।

क्या कारण है डिप्रेशन यानी अवसाद का 

विषाद का यही डर, जब पूरे व्यक्तित्व का हिस्सा बन जाता है, तो परिणाम स्वरूप हर कार्य में असफलता, फिर भविष्य की चिंता, फिर हीन भावना, यह सब मिलकर, डिप्रेशन जिसे हम अवसाद कहते हैं, को जन्म देते हैं। वैसे तो यह डिप्रेशन थोड़ा बहुत सभी को सताता है, लेकिन जब यह व्यक्तित्व का और जीवन का स्थाई साथी बनने लगता है, तो स्थितियां चिंताजनक होने लगती हैं।

क्या होते हैं डिप्रेशन के लक्षण

व्यर्थ की या बिना किसी ठोस कारण के चिंता, असफलता का भय, निराशा, दु:ख, मन का भटकाव, उदासीनता जैसे मानसिक लक्षणों के अतिरिक्त थकान, अत्यधिक पसीना आना, मुंह का सूखना और कंपकंपी जैसे शारीरिक लक्षण, डिप्रेशन से प्रभावित व्यक्ति में आम तौर पर नजर आते हैं। व्यर्थ क्रोध या जरा-जरा सी बात पर क्रोध, चिड़चिड़ापन, हमेशा नकारात्मक विचार, संदेह आदि डिप्रेशन के स्थाई साइड इफेक्ट्स हैं।

क्या हैं डिप्रेशन के कारण 

सवाल उठता है कि आखिर इस डिप्रेशन के पीछे क्या कारण हो सकते हैं?

विशेषज्ञों के अनुसार थायराइड हार्मोन का लो लेवल, कैंसर या कोई अन्य लंबी बीमारी, परिवार के किसी प्रिय सदस्य की असमय मृत्यु, आर्थिक असंतुलन, प्रेम में असफलता, परीक्षा में फेल हो जाना, एचआईवी एड्स, पाॄकसन आदि डिप्रेशन का कारण बन सकते हैं।

हर समय टीवी न्यूज़ देखना और अखबारों की नकारात्मक सूचनाओं पर ध्यान देना भी एक ऐसा मानसिक वातावरण पैदा कर देता है, जो अपरोक्ष भय स्थापित करता है और यह जब ज्यादा बढ़ जाता है, तब भी डिप्रेशन की समस्या सामने आती है।

कैसे पाएं काबू इस डिप्रेशन पर

अब सवाल तो एक ही है- आखिर इस पर काबू कैसे पाया जाए?

आम तौर पर सामान्य स्तर का डिप्रेशन और एंग्जाईटी का इलाज, स्वयं समय ही कर देता है। स्थितियों-परिस्थितियों का बदलाव स्वयं दवा बन जाता है। नया जॉब मिल जाना, विवाह, संतान का होना आदि जीवन में आए परिवर्तन, इसे आसानी से दूर कर देते हैं, किंतु यदि डिप्रेशन का प्रभाव सीमा से अधिक है, तो उसकी चिकित्सा करना जरूरी  हो जाता है, क्योंकि डिप्रेशन जब सीमा से अधिक बढ़ जाता है, तो रोगी के अंदर अक्सर आत्महत्या की प्रवृत्ति या दूसरों के प्रति आक्रामक भावना बढ़ जाती है।

क्या कहती है एलोपैथी

एलोपैथिक चिकित्सा की दृष्टि से डिप्रेशन और एंग्जाईटी दोनों के विकास में सहायक एक विशेष प्रकार का प्रोटीन बी डीएन पी (Brain derived neurotrophic factor) का नियंत्रण अपने दैनिक जीवन में खान-पान में बदलाव लाकर आसानी से किया जा सकता है और इसमें प्रथम कार्य है चीनी का कम-से-कम उपयोग, दूध और दूध से बने पदार्थों से दूरी एवं अनाज के स्थान पर अधिक से अधिक मौसमी फल, हरी सब्जियां और सीमित मात्रा में नट्स अर्थात मेवे का उपयोग।

डॉक्टर कुछ दवाओं की भी सलाह देते हैं- जिनमें सबसे मशहूर प्रोजेक है। किंतु सारी की सारी एंटी डिप्रेशन दवाओं का शरीर के अन्य अंगों पर भी प्रभाव पड़ता है, साथ ही बाद में भी इसके प्रभाव देखे गये हैं। जब भी एलोपैथिक डॉक्टर्स एंटी डिप्रेशन दवाई देते हैं, तो वह पहले यह जरूर निश्चित कर लेते हैं, कि रोगी को कोई अन्य गंभीर बीमारी, मसलन डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर, हृदय रोग आदि तो नहीं है।

आयुर्वेद में है डिप्रेशन का इलाज 

आयुर्वेद के अनुसार शिरोधारा (सिर से तरल या तेल डालने की विधि, जो केरल में बेहद लोकप्रिय है और वहां के प्राकृतिक चिकित्सालयों में प्रमुख रूप से इसका प्रयोग होता है) बमन अर्थात औषधियों द्वारा उल्टी करवाना के अतिरिक्त अश्वगंधा, यष्टिमधु (मुलेठी) ब्राह्म, शतावरी के साथ सारस्वतारिष्ट एवं चंदनासव से इस समस्या पर नियंत्रण किया जा सकता है। अश्वगंधा शक्तिवर्धक है, ऊर्जा प्रदान करने वाली है, कोशिकाओं को नुकसान से बचाने वाली है और ओजस को बढ़ाती है, तो ब्राह्मी रक्त शोधक है, स्मृति दोष दूर करती है। शतावरी पोषण देती है तथा मन में सकारात्मक भाव को लाती है। मुलेठी हृदय के लिए उत्तम टॉनिक है, मांसपेशियों में ऐंठन में उपयोगी है तथा रक्त संचार में सुधार करती है। चंदन तो मन मस्तिष्क को शांति प्रदान करने में अग्रणी है ही, साथ ही ये सांस और तंत्रिका तंत्र को भी लाभ पहुंचाता है। अन्य औषधियां भी इसी प्रकार हमारे सारे तंत्रिका संस्थान, हृदय, मस्तिष्क, लीवर की क्रियाओं को व्यवस्थित करने में उपयोगी भूमिका निभाती हैं। इन औषधियों का उपयोग आयुर्वेदिक चिकित्सक की देखरेख में एवं उसके निर्देशानुसार ही करना चाहिए वरना अर्थ का अनर्थ होते देर नहीं लगती।

क्या कहते हैं मनोचिकित्सक 

मनोचिकित्सकों का यह मानना है कि अवसाद ग्रस्त व्यक्ति से, प्रेम एवं मित्रता का व्यवहार, स्थान परिवर्तन, लगातार काउंसलिंग, उसे उसकी रूचि के अनुरूप किसी हॉबी जैसे- फोटोग्राफी, चित्रकला, संगीत आदि की ओर मोड़ना और नियमित रूप से स्पोर्ट्स एक्टिविटी से जुड़ाव, व्यक्ति को अवसाद एवं एंग्जाईटी दोनों से उबार सकते हैं।

आहार भी है असरदार

  • अनार, नारियल, अंगूर काले चने, मौसमी फल, कद्दू, लौकी, आदि ताजा सब्जियों को अपने नित्य आहार का हिस्सा बनाएं।
  • रात्रि में हल्के से हल्का भोजन कम-से-कम सोने से 3 घंटा पूर्व लें। 
  • प्राणायाम को सुबह-शाम की दिनचर्या की अनिवार्यता बनाएं।
  • सुबह ध्यान भी करे।
  • सामाजिक कार्यों में सक्रिय भागीदारी निभाएं। द्य मांसाहार पूरी तरह वर्जित है (अंडे भी नहीं) और मादक पदार्थ भी। 
  • सादा पानी में, पुदीना की पत्ती, चंदन या कोई भी मनपसंद इत्र की कुछ बूंदे मिलाकर अच्छी तरह स्नान करें, स्नान करते समय जैसा भी हो वैसा कुछ भी गायें-गुनगुनाएं, पर्याप्त नींद लें।
  • बासी, गरिष्ठ तथा मसालेदार भोजन से यथासंभव दूर रहें।
  • पैक्ड फूड बिल्कुल भी ना लें (पैकिंग करते समय प्रीजर्वेशन के लिए मिलाए गए केमिकल्स सेहत को हमेशा ही नुकसान पहुंचाते हैं)।
  • प्रोसेस्ड चीजों से भी बचें।

योग शास्त्र में भी है संपूर्ण उपचार

योग विज्ञान के अनुसार, योग तो मूल रूप से मस्तिष्क एवं भावना का ही विज्ञान है। त्रिकोणासन, पार्श्वकोणासन, उर्ध्व धनुरासन, वृक्षासन, सर्वांगासन, सेतुबंध आसन आदि इसके लिए उपयोगी आसन हैं, किंतु उन्हें किसी प्रशिक्षित योग प्रशिक्षक के निर्देशन में ही करना चाहिए। इसके अतिरिक्त नाड़ी शोधन, शीतली, (केवल ग्रीष्म में) एवं ओमनाद इन दोनों समस्याओं के लिए बेहतरीन उपाय हैं।

कुछ विशेष सुझाव 

  • इस आलेख में हमने विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों में प्रयुक्त औषधियों का उल्लेख किया है किंतु पुन: कहना चाहेंगे कि उन्हें उस पद्धति के विशेषज्ञों की सलाह के बिना प्रयोग ना करें।
  • मोटापा, हाई ब्लड प्रेशर एवं गर्भवती महिलाओं को बमन से हानि हो सकती है। कैंसर रोगी को अश्वगंधा और शतावरी की मात्रा कितनी दी जाए यह चिकित्सक ही बेहतर जानता है।
  • ब्राह्मी à¤•ी अधिक मात्रा खुजली पैदा कर सकती है। बच बवासीर रोगी को हानि पहुंचाती है और मुलेठी सोडियम का स्तर बढ़ाती है।

परिवार का साथ है जरूरी

चिकित्सा की कोई भी विधि अपनाई जाए, किंतु रोगी स्वयं तो इन पद्धतियों के प्रयोग के निर्देशों का पालन करेगा नहीं, उल्टे यदि उसे यह कह भी दिया जाए कि तुम डिप्रेशन का शिकार हो, तो वह मानेगा ही नहीं। कई केसों में तो मनोचिकित्सक के पास जाने की बात से ही रोगी भड़क जाते हैं। अत: रोगी के परिवार के सदस्यों एवं मित्रों को ही इसमें बेहद सावधानी एवं धैर्य पूर्वक कदम उठाना चाहिए।

एक बात और जो अंत में कहना चाहता हूं- ‘प्रिकाशन इज बेटर दैैन क्योर।’

अधिकांश मानसिक और शारीरिक व्याधियों से बचाव संभव है, लेकिन उसके लिए हमें अपनी सोच को बदलना होगा। जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण, हर घटना के प्रति सहज भाव, जीवन में जीत के साथ-साथ हार भी मिलती है, इस सत्य को स्वीकारना और मन को इसके लिए तैयार करना, अनुशासन, व्यायाम और प्रकृति से निकटता ही वे सामान्य लेकिन महत्वपू्र्ण सूत्र हैं, जो हमारे मन और तन को सदैव ही स्वस्थ रख सकते हैं। फिर एंग्जाईटी और डिप्रेशन आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकती।

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