मानसून में पंचकर्म आयुर्वेदिक उपचार है फायदेमंद: Benefits of Panchakarma
Benefits of Panchakarma

Benefits of Panchakarma: सेहत के लिहाज से मानसून का खुशनुमा मौसम थोड़ा नाजुक होता है और अपनी सेहत के प्रति लापरवाही बरतने, साफ-सफाई का ध्यान न रखने पर ज्यादातर लोग बीमारियों की चपेट मे आते हैं। इतना ही नहीं कभी ठंड और कभी गर्म मौसम के चलते इम्यून सिस्टम कमजोर हो जाता हैै और पाचन संबंधी कई समस्याएं हो सकती हैं। जगह-जगह कचरे और ड्रेनेज की समस्या होने से गंदा पानी इकट्ठा हो जाता है। जिनमें कई तरह के मच्छर पनपते हैं जो वायरल, मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया, जैपनीज इन्सेफेलाइटिस जैसे जानलेवा बुखार फैलाते हैं। नमी का स्तर बढ़ने से हवा में कई तरह के वायरस और बैक्टीरिया पनपते हैं जो डायरिया, टाइफाइड, हैजा, फंगल इंफेक्शन जैसे जलजनित संक्रामक बीमारियों को न्यौता देते हैं।

आयुर्वेद के हिसाब से मानसून ग्रीष्म और शरद ऋतु के बीच का संधिकाल है। गर्मियों में उमस भरे इस मौसम में वातावरण की नमी और गर्मी शरीर में वात और पित्त प्रवृति बढ़ती है। वात असंतुलन आने पर पाचक अग्नि कमजोर पड़ जाती है जो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता पर असर डालती है। मेटाबाॅलिज्म रेट कम हो जाता है जो पेट संबंधी समस्याओं का कारण बनती है। जोड़ों-मांसपेशियों में ऐंठन और दर्द की शिकायत रहती है। वातावरण में मौजूद नमी और अम्लता से घमोरियां, दाने, त्वचा संक्रमण बढ़ता है। आयुर्वेद में मानसून के मौसम में होने वाली बीमारियों को दूर करने के लिए पंचकर्मा थेरेपी को काफी कारगर माना गया है। पंचकर्मा शरीर की पाचक अग्नि और रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत बनाने में मदद करता है।

पंचकर्म आयुर्वेद में कायाकल्प चिकित्सा है जो शरीर के विभिन्न टीशूज की गहराई से सफाई करता है और विषैले पदार्थों को शरीर से बाहर निकाल कर डिटाॅक्सीफाई करने में मदद करता है। यह चिकित्सा न सिर्फ शरीर और मन को शुद्ध करने में मदद करती है, बल्कि रोगप्रतिरोधक क्षमता का विकास कर विभिन्न प्रकार से संक्रमणों से बचाव करने में मदद भी करती है। आयुर्वेद के अनुसार शरीर से टाॅक्सिक पदार्थों को शरीर से निकालने के लिए मानसून उपयुक्त समय है। यह शरीर में रक्त संचार को सुचारू रूप से चलाने में मदद करता है जिससे इम्यून सिस्टम मजबूत होता है और बीमारियों से लड़ने की क्षमता का विकास होता है।

आयुर्वेद में पंचकर्म का महत्व

पंचकर्म समय-समय पर शरीर को साफ करता है और शरीर को स्वस्थ रखता है। पंचकर्म को दो भागों में किया जाता है-पूर्वकर्म और प्रधानकर्म।

पूर्वकर्म

Benefits of Panchakarma
Benefits of Panchakarma-Purvakarma

इसमें दो क्रियाएं की जाती हैं जो पंचकर्म से पहले करनी अनिवार्य है।

  • स्नेहन: इसमें घी या औषधीय तेल पिलाकर और मालिश कर वात दोषों को दूर किया जाता है। यह शरीर को मृदु बनाता है और शरीर में स्थित मल-त्याग की रुकावट को दूर करता है। मानसून में मालिश बहुत फायदेमंद है क्योंकि इसमें रोमछिद्र तेल को अवशोषित करने के लिए आसानी से खुल जाते है। मालिश से रक्त संचार सुचारू गति से चलने में मदद मिलती है और शरीर मजबूत होता है। त्वचा को पोषण मिलता है जिससे उसमें निखार आता है।
  • स्वेदन: जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल कर भाप स्नान कराया जाता है जिससे शरीर से पसीना निकालता है और बीमारियां दूर की जाती हैं। स्वेदन शरीर को डिटाॅक्स कर सूक्ष्म स्रोतो में चिपके हुए दोषों को बाहर निकालने में मदद करता है।

प्रधानकर्म

पंचकर्म की दूसरी क्रिया में ये क्रियाएं कराई जाती है- वमन, विरेचन, वस्ति और शिरोविरेचन या नस्य, शिरोधारा और रक्तमोक्षण

  • वमन: कफ को मुख्य भाग से निकालने को वमन कहते हैं। इसमें दवा या काढ़ा पिलाकर उल्टी कराई जाती है। सर्दी-जुकाम, बुखार या सांस संबधी बीमारियों कफ या पित्त से होने वाले रोगों का इलाज किया जाता है।
  • विरेचन: पित्त दोष की अधिकता में विरेचन कराया जाता है। इसमें औषधीयों के द्वारा वात या वायु को गुदा मार्ग से निकाला जाता है। पित्त के इलाज से पेट के रोग, पाचन संबंधी विकारों, सिरदर्द, सूजन और कई अन्य बीमाारियों में आराम मिलता है।
  • वस्ति: इसमें बड़े हुए वात रोगों का इलाज किया जाता है। गुदा मार्ग द्वारा विषैले पदार्थो को बाहर निकाल कर शरीर केा डिटाॅक्स करता है। आयुर्वेदिक औषधियों से एनिमा देने की प्रक्रिया आस्थापन बस्ति में पेट के वायु संबंधी दोष दूर होेते हैं। पेट में अफारा, मल में गांठे बनना, भोजन में अरुचि और पेट के रोगों में वस्ति देने का विधान है। पंचकर्म की वस्ति प्रक्रिया नमी भरे मानसून के मौसम में होने वाले बदन दर्द, ऐंठन, जोड़ों के दर्द, कब्ज, अपच से होने वाले पेट दर्द के लिए फायदेमंद है।
  • शिरोविरेचन या नस्य: इसमें शिरोभाग का स्नेहन करने के बाद हाथ के तलवों को गर्म करके उसके शिर प्रदेश का स्वेदन किया जाता है। नाक से औषधि अंदर डालकर कंठ और सिर के दोषों को दूर किया जाता है। इससे बारिश के मौसम में होने वाले सर्दी-जुकाम में आराम मिलता है। छाती में हल्कापन आता है, गले का कफ साफ होता है, कानों में दर्द ठीक होता है, आंखों के सामने अंधेरा आना ठीक होता है।
  • शिरोधारा: में अलग-अलग तेल सुंघाने और माथे और सिर पर औषधीय तेल की धार डालने की शिरोविरेचन या शिरोधारा प्रक्रिया से मानसून के मौसम में आंख-नाक-कान में होने वाले संक्रमण, नींद संबंधी विकारों, सिरदर्द, थकान या तनाव में राहत मिलती है।
  • रक्तमोक्षण: जोंक या कनखजूरे के माध्यम से रक्त विकारों को दूर किया जाता है। जोंक या कनखजूरे को शरीर से चिपकाया जाता है जो अशुद्ध रक्त को पीती है जिससे शरीर में उत्पन्न विकार या ब्लाॅकेज दूर होती हैं।

    (डाॅ संजना शर्मा, आयुर्वेदिक एक्सपर्ट, दिल्ली )