वहां संयुक्त परिवार होने के कारण काफी बड़ा परिवार था। यह देखकर मुझे खुशी भी हुई और डर भी लग रहा था कि इतने रिश्ते मैं ठीक से कैसे निभाऊंगी। शादी के 10-12 दिन बाद कुछ खास मेहमान घर आने वाले थे। उनकी आवभगत करने के लिए मेरे सास-ससुर विशेष रूप से लगे हुए थे। सासुजी ने बताया कि तुम्हारी ननद शादी में नहीं आ पाई थी, इसलिए वे लोग आ रहे हैं। यह जानकर मुझे बहुत खुशी हुई। रात को सब लोग खाने के लिए डाइनिंग टेबल पर बैठे तो जीजाजी बड़े ध्यान से मुझे देखते हुए बोले कि भाभी जी आप तो साड़ी बांधने की कला में निपुण हैं। आपने कहां से सीखी, जबकि आपकी ननद, यानी कि मेरी पत्नी को तो अभी तक साड़ी बांधनी नहीं आती।
अपनी प्रशंसा सुनकर मैं फूली न समाई और आदतानुसार तपाक से बोली कि जीजाजी आप भी। शादी के 10-12 दिनों बाद बड़ी मुश्किल से आज ही तो मैंने कपड़े पहने हैं! मेरा इतना कहते ही जीजाजी मुस्कुराते हुए मेरे पति को देखते हुए बोले कि अरे यार, तू तो बड़ा छुपा रुस्तम निकला। भाभीजी को इतने दिनों तक ‘बिना कपड़ों के ही रखा।’ यह कहकर वे खिलखिलाकर हंस पड़े और मैं शर्म से लाल हो गई और वहां से भाग गई। असल में मैंने शादी के इतने दिनों बाद आज ही साड़ी बांधी है, कहने के बजाय आज ही कपड़े पहने हैं, गलती से बोल दिया, जिससे अर्थ का अनर्थ हो गया। आज मुझे मम्मी की दी गई सीख याद आ रही थी।

2- मां को मैं समझा दूंगी
हमारे यहां विवाह के पश्चात पहली तीज मायके में मनाई जाती है। मेरा विवाह जून के महीने में हुआ था। हनीमून के बाद मैं ससुराल में थी और पति पोस्टिंग पर दूर गए हुए थे। मैं उनके पास जाना चाहती थी, पर शर्म की वजह से कह नहीं पा रही थी। अगस्त में पतिदेव को आना था। उन्होंने कहा कि इस दफा मैं तुम्हें अपने साथ ले जाऊंगा। मैं तो खुश हो गई। पति घर आए और सासू मां से बोले, ‘मैं सोनल को इस बार अपने साथ लेकर जाऊंगा।’ सासू मां कहने लगीं कि सोनल की मम्मी का फोन आया था, इस महीने तो इसे मायके में रहना है। मैं पास ही खड़ी थी, एकदम से बोली, ‘मम्मी जी, आप इजाज़त दे दीजिए, अपनी मां को मैं समझा लूंगी।’ यह सुनना था कि सासू मां हंस पड़ीं और मंद-मंद मुस्कराने लगीं। कह तो गई पर अपने उतावलेपन पर शर्म से लाल हो गई।

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