भागती दुनिया का हाथ थामकर क्या कहते हैं राहगीर के ये गीत: Who is Rahgir
Who is Rahgir

Who is Rahgir: राहगीर का नाम सुनते ही मन में एक धुन गूंजने लगती है। ये धुन राहगीर के गीतों की होती है। जिसमें वो बड़ी सादगी से अपने आसपास के हर आम इंसान का हाल बयां कर रहे हैं। राहगीर एक बेहतरीन गायक हैं उन्हें सुनने वालों में उनके प्रति दीवानगी कम नहीं है। राहगीर के गाने उस हर युवा के मन के सवालों का जवाब हैं जो सवाल उसके मन में आते तो हैं लेकिन इनका जवाब वो तलाशने में पीछे रह जाता है या ये समझता है कि इन्हें समझना ज़रूरी नहीं। तो चलिए जानते हैं कि आखिर कौन हैं ‘राहगीर’ जिनके गीतों को सुनकर लगता हैं कि वो हमसे बात कर रहे हैं।

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सुनील कुमार जिनका स्टेज नेम ‘राहगीर’ है, इन्हें आपने भी कभी न कभी सुना होगा। राहगीर को आम भाषा में कहा जाए तो वो एक घुमक्कड़ गायक हैं न केवल गायक बल्कि गीतकार भी हैं। गीत संगीत और बोल का एक एक मोती चुनकर राहगीर हमारे लिए एक खूबसूरत गीत तैयार करते हैं जिन्हें सुनकर मन कभी पीपल की छांव जैसा तो कभी बारिश की हलकी झरि जैसा महसूस करता है। राहगीर एक जगह से दूसरे जगह भ्रमण करते हैं और अपने अनुभव को अलग-अलग जगहों की बोली और संगीत में ढालते जाते हैं। राहगीर का जन्म तो हुआ कंडेला गांव, राजस्थान में लेकिन जीवन में आगे बढ़ने के लिए राहगीर पहुंचे आईटी की जॉब करने पुणे लेकिन दिल तो संगीत में लगा हुआ था। फिर अपने मन की बात समझने के बाद राहगीर ने संगीत की राह पकड़ ली। राहगीर ने उर्दू के सबसे बड़े सम्मलेन जश्न ए रेख़्ता में भी परफॉर्म किया, जिसे दर्शकों ने बहुत पसंद किया। उनके गाने मन को लुभा जाते हैं उसका कारण ये है कि राहगीर बेहद सीधे लफ़्ज़ों में बड़ी बात कह जाते हैं जिसे हम रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में नज़रअंदाज़ कर देते हैं। तो चलिए जानते हैं राहगीर के उन गीतों के बारे में जो सरल बोल में बड़ा अर्थ छुपाए हुए हैं।

ये राहगीर का वो गीत है जिसमें राहगीर और कबीर बात कर रहे हैं। राहगीर कबीर से आज के हालात के बारे में चर्चा कर रहे हैं और बदलते वक़्त में इंसान किस तरह बदला है उसका नजरिया कितना बदला है इसके बारे राहगीर और कबीर के बीच की ये चर्चा सुनने लायक है। कबीर के दोहे और राहगीर के उनसे सवाल जवाब अद्भुत हैं एक बार को लगता है जैसे आप खुद कबीर से बात कर रहे हों। गाने की कुछ पंक्तियाँ ऐसी हैं कि “कबीरा खड़ा बाजार में , मांगे सबकी खैर रे , न काहू से दोस्ती और न काहू से बैर…, मैं खड़ा रहा बाज़ार में रहा मांगता खैर, फिर बैठ के मांगी खैर जब मेरे थक गए पैर, फिर भी कोई खुश नहीं देखा सुबह शाम दोपहर…, अरे दुःख ने जो थे रिश्ते मांगे, सुख ने कर दिए ढेर”, यहाँ कबीर वो हैं जो बिना किसी मोह के सबसे उसका हाल चाल पूछ रहे हैं, उनकी न किसी से दोस्ती है और न ही बैर वहीँ राहगीर कहते हैं कि वो सबसे उसकी खैर मांगते हैं और उसका हासिल ये हुआ कि हर तरफ दुःख ही नज़र आया। कोई भी सुखी नहीं देखा। जो भी रिश्ते दुःख के आने से मज़बूत बने वो सुख के आते ही कमज़ोर हो गए यानी स्वार्थ के कारण लोगों में दूरियां आ गयीं। राहगीर का ये गाना बहुत पसंद किया जाता है।

राहगीर का ये गीत अपने आसपास के हालात को दर्शाता है। इसके बोल इस तरह हैं कि “अभी पतझड़ नहीं आया , अभी से पत्ते झड़ गये, भई राहगीर ये हम कौन से गाड़ी पर चढ़ गए…., सूरज उगने से लेकर वापस उगने तक, वो रहा सोचता सपनो पर है उसका हक़, पर कहा बाप ने सुन मेरा एक सपना पुराना, जो मैं न कर पाया , तू वो करके दिखाना…, फिर दबे दबे दिल में उसके वो सपने सड़ गए..भई राहगीर हम ये कौन सी गाड़ी पर चढ़ गए”। इस गीत की इन पंक्तियों पर लगभग हर किसी का दिल ठहरता है। इसमें राहगीर बता रहे हैं कि कैसे अपने पिता के सपने को पूरा करने में एक बेटे का सपना सड़ जाता है। राहगीर समाज के इस दबाव पर चोट करते हैं जो कई बच्चे झेलते हैं चूँकि माता पिता की महत्वकांक्षाएं इतनी ज़्यादा होती हैं कि बच्चे अपने ख़्वाब पूरे नहीं कर पाते और हो सकता है वो माता पिता की इच्छा को पूरा कर भी दें लेकिन उनके मन में उनका सड़ चुका सपना हमेशा होता है जो बार-बार उन्हें तकलीफ़ देता है। फिर जब आप ऐसा कुछ देखते सुनते हैं तो खुद ही कहते हैं “भई राहगीर हम ये कौन सी गाड़ी पर चढ़ गए”। इस भाव को अपने गीतों के द्वारा राहगीर सब तक पँहुचाते हैं।

राहगीर का ये गाना आपको साहस देता है और इसे सुनकर लगता है कि राहगीर अपने गीत से आपकी कहानी बता रहे हैं। यूँ तो राहगीर का हर गाना एक अलग अर्थ थामे हुए हैं लेकिन ये गीत वो है जो सीधा दिल को लगता है। अब गीत के बोल ही देख लीजिये कितने खूबसूरत है। ये इस तरह है कि “ये जो हँस रही है दुनिया मेरी नाकामियों पर, ताने कस रही दुनिया, मेरी नादानियों पर, पर मैं काम कर रहा हूँ मेरी सारी खामियों पे,कल ये मारेंगे ताली मेरी कहानियों पे…” इस बेहतरीन पंक्ति में राहगीर जो हौसला अपने सुनने वालों को देते हैं वो सराहनीय है। राहगीर अपने गीत के बोल से बता रहे हैं कि बेशक़ ये दुनिया उनकी नाकामियों का मज़ाक बना रही है लेकिन उन्हें उम्मीद है कि एक दिन ये सभी लोग उनके पक्ष में होंगे उन्हें पसंद करेंगे। आगे राहगीर लिखते हैं कि “क्योंकि ज़िद्दी बड़ा हूँ मैं, एक कच्चा घड़ा हूँ मैं, फिर भी बरसात में खड़ा हूँ मैं”, राहगीर के गीत के ये बोल हमें सिखाते हैं कि मुश्किलों की बरसात में भी कच्चा घड़े की तरह ज़िद्दी बने रहें, ख़ुद पर काम करते रहें। बकौल राहगीर “क्योंकि ज़िद्दी बड़ा हूँ मैं” ये एक धुन मन में रखिये और मेहनत करते रहिये।

सृष्टि मिश्रा, फीचर राइटर हैं , यूं तो लगभग हर विषय पर लिखती हैं लेकिन बॉलीवुड फीचर लेखन उनका प्रिय विषय है। सृष्टि का जन्म उनके ननिहाल फैज़ाबाद में हुआ, पढ़ाई लिखाई दिल्ली में हुई। हिंदी और बांग्ला कहानी और उपन्यास में ख़ास रुचि रखती...