Gulzar Birthday Special: एक फ़िल्म को दर्शकों के दिल में सजाने का काम कई चीज़ें करती हैं जैसी अभिनय, संवाद , कहानी और गीत-संगीत। तब कहीं एक अच्छी फ़िल्म सामने आती है। फ़िल्मों में गीत का बड़ा योगदान होता है। इसी तरह हिंदी सिनेमा संपूर्ण सिंह कालरा यानी गुलज़ार से गुलज़ार है। हम ऐसी कई फिल्में,गाने और सीरियल देखते हैं जिसमें उनका बेहतरीन काम देखने को मिला है। 18 अगस्त 1934 को पंजाब जो कि अब पाकिस्तान का हिस्सा है, में जन्में गुलज़ार का परिवार बंटवारे के बाद भारत चला आया। गुलज़ार मुंबई चले गए और वहां उनकी मुलाक़ात बिमल राय से हुई और उन्होंने बिमल राय की फ़िल्म ‘बंदिनी’ के लिए अपना पहला गीत लिखा। हम जिस तरह उनके गीतों को पसंद करते हैं और इन गीतों की जो लोकप्रियता है वही मक़ाम उनकी फ़िल्मों को भी हासिल है। तो आइये जानते हैं गुलज़ार की उन फिल्मों के बारे में जो गुलज़ार को एक निर्देशक के रूप में हमारे समक्ष रखती हैं।
परिचय

1972 में आयी फ़िल्म परिचय बेहद प्यारी फ़िल्म थी। इसके गाने भी बेहद प्यारे थे। बिगड़े बच्चों को सुधारने के लिए दादाजी एक मास्टर को रखते हैं जो बच्चों के दिल में उनके बड़ों के लिए सम्मान पैदा करता है। इन बिगड़े बच्चों को सुधारने की जद्दोजहद बेहद खूबसूरत है। बच्चों को कैसे समझाना चाहिए और उनके मन से बैर को कैसे दूर करें ये फिल्म इस बात को बेहद प्यारे तरीके से दिखाती है। बच्चों में अपने दादाजी के प्रति जो घृणा होती है उसे दूर करते उनके मास्टर जी उनसे प्रेम करने लगते हैं। वो मार्मिक दृश्य याद कीजिये जब छोटा संजय अपने मास्टर के पास उनके बुलाने पर जाता है और उसकी किताब फटी होती है जिसे मास्टर हंसकर टाल देते हैं और संजय अपनी छोटी हथेली सामने करके कहता है कि मरेंगे नहीं? यहां भावुक हो जाता है ऐसे ही कुछ हंसाते और रुलाते दृश्यों से सजी ये फिल्म बेहद प्यारी है। बूढ़े दादाजी का बच्चों से परिचय आपकी आँखें भर देता है। आजकल खोते रिश्तों को संभालने के लिए ये फ़िल्म बेहद सहायक है।
इजाज़त

फ़िल्म ‘इजाज़त’ का तो कौन क़ाइल नहीं। फ़िल्म इजाज़त 1987 में रिलीज़ हुई। इस फ़िल्म के संवाद मन पर काबू कर लेते हैं। फ़िल्म की कहानी के मुख्य किरदार सुधा , महेंद्र और माया हैं। ये कहानी त्रिकोण प्रेम को दर्शाती है। फ़िल्म का एक दृश्य है जहां कई सालों बाद सुधा और महेंद्र मिलते हैं और सुधा पूछती है वहीं रहते हैं आप ? इसपर महेंद्र जवाब देता है कि हां वहीं, वही शहर है वही गली वही घर, सबकुछ वही तो नहीं है लेकिन है वहीं उसी जगह’। इसी तरह खूबसूरत संवादों से सजी ये फ़िल्म प्रेम और वैवाहिक जीवन की ज़रूरतों को दर्शाती है। ये फ़िल्म हर दौर की ज़रूरत है दाम्पत्य जीवन को कैसा होना चाहिए और उसपर अतीत का क्या असर पड़ता है ये बखूबी दिखाया गया है।
माचिस

फ़िल्म ‘माचिस’ 1996 में आयी एक ऐसी फ़िल्म थी जिसे आज भी गुलज़ार की बेहतरीन फ़िल्मों में गिना जाता है। फ़िल्म ‘माचिस’ में एक सामान्य व्यक्ति को कैसे आतंकवादी घटनाओं में धकेला जाता है इसे दिखाया गया है। कहानी के किरदार जसवंत सिंह की मृत्यु उसके दोस्त और न जाने कितने ही निर्दोष लोगों पर पुलिस द्वारा की गयी बर्बरता युवाओं के आतंकित होने का कारण होता है। फ़िल्म एक ख़राब कानून व्यवस्था को दर्शाती है जिसके कारण न जाने कितने ही निर्दोष युवा अपनी दिशा से भटकने लगते हैं। समाज में अच्छी क़ानून व्यवस्था की बेहद ज़रूरत है और ये ज़रूरत हर वक़्त की ज़रूरत है, फिल्म माचिस इसे अच्छी तरह दर्शाती है।