Smriti Irani and Karan Johar
Smriti Irani and Karan Johar

Summary: एक बेटी की 'अग्निपथ', स्मृति ईरानी की अनसुनी कहानी

मॉडलिंग से एक्टिंग और फिर राजनीति तक का सफर सिर्फ शोहरत की कहानी नहीं, बल्कि स्मृति ईरानी की मां के लिए लड़ी गई एक लंबी ‘अग्निपथ’ जैसी लड़ाई है।

Smriti Irani Mother: कुछ कहानियां दूर से सिर्फ सफलता की कहानी लगती हैं, जबकि वे संघर्ष, वफादारी और एक बच्चे के भीतर जन्मी जिद की होती हैं। स्मृति ईरानी की कहानी भी ऐसी ही एक कहानी है, जिसे जितनी बार भी सुना जाए,  उससे कहीं ज्यादा महसूस किया जाता है। मात्र 7 साल की उम्र में स्मृति ईरानी की मां को घर छोड़ना पड़ा था क्योंकि वह एक बेटा नहीं पैदा कर सकी। तभी उन्होंने सोच लिया था कि वह अपनी मां के लिए घर लेंगी और उन्होंने खुद से किए गए इस वादे को जल्दी ही पूरा भी किया।

Smriti Irani Mother-Smriti Irani as Tulsi Virani
Smriti Irani as Tulsi Virani

कभी मॉडलिंग की दुनिया में कदम रखने वाली एक साधारण सी लड़की कुछ सालों बाद टीवी की फेवरेट बहू बनी और आज देश की राजनीति का एक मजबूत चेहरा, स्मृति की यात्रा जितनी प्रेरक है, उतनी ही भावनात्मक भी। लेकिन इस चमक धमक के पीछे जो आग है, उसके बारे में कोई नहीं जानता है। यह आग बचपन में तब लगी, जब उन्होंने अपनी मां को केवल इसलिए घर से जाते देखा क्योंकि वह एक बेटे को जन्म नहीं दे सकीं।

7 साल की उम्र में जब ज्यादातर बच्चे खिलौनों और कहानियों में खोए होते हैं, स्मृति ने अपनी मां को इंसाफ दिलाने का सपना देख लिया था। यह उनका ‘अग्निपथ’ था, उस रास्ते पर चलने का संकल्प, जो कांटों से भरा था लेकिन आत्मसम्मान और ममता की छांव से रोशन भी। हाल ही में करण जौहर के साथ एक बातचीत में जब उनसे पूछा गया कि कौन सा गाना उनके जीवन को बयान कर सकता है, तो वो कौन सा गाना होगा। इसके जवाब में स्मृति ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “कुछ कुछ होता है से अग्निपथ”। और जब करण ने हैरानी जताई कि प्यार से प्रतिशोध तक की यह यात्रा क्यों, तो उन्होंने बेझिझक कहा, “मैं शायद उन हर बच्चों की ओर से बदला ले रही हूं, जिन्हें बराबरी से सपने देखने का हक नहीं मिला।”

स्मृति ईरानी ने बताया कि ‘अग्निपथ’ से उनका गहरा जुड़ाव है। फिल्म के मुख्य किरदार की तरह उन्होंने अपनी मां के सपने को पूरा करने के लिए चुनौतियों का सामना किया। उन्होंने कहा, “अग्निपथ एक ऐसे बेटे के बारे में थी, जो अपनी मां की इच्छा को पूरा करने की कोशिश करता है। उसे लगता था कि उसकी मां के साथ अन्याय हुआ है और मैंने भी हमेशा अपनी मां के लिए ऐसा हि महसूस किया है। जब मैं 7 साल की थी, तब मेरी मां को घर छोड़ने के लिए मजबूर किया गया था क्योंकि वह बेटा पैदा नहीं कर सकती थीं। इसलिए मेरे लिए यही मेरा अग्निपथ था, अपनी मां को वापस एक घर देना।”

यह आवाज़ सिर्फ एक मंत्री की नहीं, उस छोटी बच्ची की थी जिसने अन्याय को चुनौती देने की ठान ली थी। यह उस बच्ची की आवाज थी जिसने कभी अपने पापा के साथ किताबें बेचकर दिन गुजारे। जिसकी मां रोजी रोटी के लिए घर-घर जाकर मसाले बेचने जाती थी। जिसने गरीबी, संघर्ष और समाज की बेरुखी को भीतर तक महसूस किया। नीलेश मिश्रा के साथ अपने एक पुराने इंटरव्यू में उन्होंने याद किया कि उनके माता-पिता के पास शादी के वक्त सिर्फ 150 रुपये थे। घर के नाम पर एक गाय के तबेले के ऊपर एक कमरा। रिश्तों में खटास, समाज की अपेक्षाएं और आर्थिक तंगी, यह सब कुछ था उस घर में, लेकिन सबसे ज्यादा था आत्म-सम्मान और एक बेटी का जज़्बा।

सालों बाद जब स्मृति ने अपनी मां के लिए एक घर खरीदा, तो उनकी मां के आत्म सम्मान उन्हें फ्री में रहने से संकोच जताया। तब स्मृति की मां ने किराये के रूप में सिर्फ एक रुपया देना तय किया ताकि उनका आत्म सम्मान बना रहे। आज जब हम स्मृति ईरानी को संसद में बोलते हुए देखते हैं, तो उनके शब्दों में वह सच्चाई, वह अनुभव और वह पीड़ा झलकती है, जो किताबों से नहीं, जिंदगी के मैदान से आती है।

स्पर्धा रानी ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के लेडी श्रीराम कॉलेज ने हिन्दी में एमए और वाईएमसीए से जर्नलिज़्म की पढ़ाई की है। बीते 20 वर्षों से वे लाइफस्टाइल और एंटरटेनमेंट लेखन में सक्रिय हैं। अपने करियर में कई प्रमुख सेलिब्रिटीज़ के इंटरव्यू...