त्रिपुरा का 148 साल पुराना दुर्गाबाड़ी मंदिर, यहां होती है दो भुजाओं वाली मां दुर्गा की आराधना: Tripura's Oldest Durgabari Temple
Tripura's Oldest Durgabari Temple

प्राचीन दुर्गाबाड़ी मंदिर के हुए पूरे 148 साल, यहां विराजमान है मां की अनोखी मूर्ती

इसके इतिहास की बात करें तो जितने मुंह उतनी बातें, हालांकि सालों से यह वार्षिक महोत्सव पूरे हिंदू समुदाय को एकसाथ लाकर ख़ुशी और एकता को बढ़ावा देता है.

Tripura’s Oldest Durgabari Temple: शानदार दुर्गा पूजा महोत्सव के लिए मशहूर त्रिपुरा के अग़रतला का जाना-माना दुर्गाबाड़ी मंदिर मां दुर्गा की पूजा-अर्चना के लिए लोगों में काफ़ी जाना जाता है। हिंदुओँ में धूम-धाम से मनाए जाने वाले इस त्योहार के दौरान मंदिर में साज-सज्जा के साथ-साथ कई रीति-रिवाज़ और सांस्कृतिक कार्यक्रम भी मनाए जाते हैं। इसके इतिहास की बात करें तो जितने मुंह उतनी बातें, हालांकि सालों से यह वार्षिक महोत्सव पूरे हिंदू समुदाय को एकसाथ लाकर ख़ुशी और एकता को बढ़ावा देता है।

त्रिपुरा स्टेट राईफ़ल्स के गन सैल्यूट से लेकर राष्ट्रगान की मधुर ध्वनि बजने तक, मां दुर्गा की प्रतिमा के विसर्जन पर उन्हें भाव-भीनी विदाई दी जाती है। यही नहीं, बल्कि पूजा के दौरान मांस, मछली, और अंडे के अलावा सब्ज़ियां और चावल भी प्रसाद के रुप में चढ़ाए जाते हैं।

इस साल दुर्गा पूजा महोत्सव 9 अक्टूबर से ले कर 12 अक्टूबर तक पूरे हर्षोउल्लास और धूमधाम से मनाया जाएगा। 148 सालों से यह उत्सव मनाया जा रहा है। इस मंदिर की खासियत है इसमें दो भुजाओं वाली देवी दुर्गा की मूर्ती स्थापित है और इनकी यहां बड़े प्रेम भाव से पूजा की जाती है। ऐसा बताया जाता है की ये मंदिर अकेला ऐसा मंदिर है जिसमे मां दुर्गा दो भुजाओं में विराजमान हैं। यहां आने वाले श्रद्धालु मां का ये रूप देख कर निहाल हुए जाते हैं।

एक रिपोर्ट के मुताबिक़ वहां के मुख्य पुजारी ने बताया की यहां विराजमान मां दुर्गा दो भुजाओं में क्यों विराजमान हैं, इसके पीछे एक वजह है। कहा जाता है की सालों साल पहले वहां की महारानी दुर्गाबाड़ी में विराजमान दस भुजाओं वाली मां का स्वरुप देखकर मूर्छित हो गयी थी। इसके बाद उन्हें सुरक्षित रूप से महल में पहुंचाया गया। जब महारानी को होश आया तब उनके मन में बस यही विचार था की ऐसा क्यों हुआ। उस रात उन्हें बहुत जल्दी नींद आ गयी और रात में उन्होंने सपना देखा, उस सपने को देख कर उन्हें समझ आ गया की ये मां का उनके लिए संदेश है की अब से उस मंदिर में अगले साल से ही दस भुजाओं वाली दुर्गा की मूर्ती की जगह दो भुजाओं वाली मूर्ति स्थापित की जाए। उसी समय से आज तक इस मंदिर में मां का यही स्वरुप पूजा जाता है।

इस मंदिर में कई तरह के पवित्र अनुष्ठान किये जाते हैं। बहुत पुराने समय से चली आ रही परंपरा के अनुसार मां दुर्गा की मूर्ति को महल में ले जाया जाता है, वहां राजाओं के वंशज मां की विसर्जन यात्रा विधिपूर्वक शुरू की जाती है और विसर्जन से पहले कई तरह की धार्मिक क्रियाएं कराई जाती हैं।

सोच कर देखिये मां का ये स्वरुप कितना मनमोहक होगा। ये मंदिर अपने आप में काफी अनोखा है। मां दुर्गा का ये मंदिर अपने ख़ास तरह के उत्सवों के लिए काफी प्रसिद्ध माना जाता है। इस मंदिर की सजावट,बनावट यहां होने वाले तरह तरह के अनुष्ठान और पारम्परिक कार्यक्रम हर मंदिर से काफी अलग हैं। इस मंदिर के बारे में जितना जाना जाए उतना कम है। बेशक इसका इतिहास बेहद अलग है लेकिन इसकी वजह से ही ये काफी प्रख्यात है।

यहां दर्शन करने जाने वाले श्रद्धालु इस मंदिर में बार बार आना चाहते हैं। मां का आशीर्वाद पाने के लिए आप भी इस साल यहां जाएं और मां की अनोखी मूर्ती का पूरे श्रद्धा भाव से दर्शन करें। जय माता दी।

उत्तराखंड से ताल्लुक रखने वाली तरूणा ने 2020 में यूट्यूब चैनल के ज़रिए अपने करियर की शुरुआत की। इसके बाद इंडिया टीवी के लिए आर्टिकल्स लिखे और नीलेश मिश्रा की वेबसाइट पर कहानियाँ प्रकाशित हुईं। वर्तमान में देश की अग्रणी महिला पत्रिका...