Summary: ‘सितारे ज़मीन पर’: आमिर खान की फिल्म जो स्पेशल यंगस्टर्स को देती है असली मंच
‘सितारे ज़मीन पर’ में आमिर खान एक भावनात्मक सफर पर हैं, जहाँ स्पेशल यंगस्टर्स की दुनिया हमें सोचने पर मजबूर करती है। फिल्म दिल छूते अंदाज़ में बताती है कि अलग होना भी पूरी तरह नॉर्मल है।
Sitaare Zameen Par Movie Review: अगर आपने सोच रहे हैं कि ‘तारे जमीन पर’ के बाद आमिर खान फिर से बच्चों की दुनिया में लौटेंगे, तो ‘सितारे जमीन पर’ आपको हैरान कर देगी। यह थोड़ा मुस्कुराने पर भी मजबूर करेगी। इस बार कहानी की दिशा उलटी है, यहां टीचर को सबक मिल रहा है और जिनसे मिल रहा है वो हैं स्पेशल चाइल्ड… बल्कि नौजवान कह लीजिए।
यह एक स्पेनिश फिल्म क्लासिक पर आधारित है और ऐसे बास्केटबॉल कोच की कहानी कहती है जो घमंडी, खुद में मगन और दुनिया से कटा हुआ है। इस कारण नौकरी से भी उसकी छुट्टी कर दी जाती है। इसके बाद शराब पीकर गाड़ी चलाने पर अदालत उसे तीन महीने की सोशल सर्विस की सजा देती है। उसे ऐसे सेंटर में भेजा जाता है जहां डाउन सिंड्रोम और ऑटिज्म से जूझते युवा हैं। शुरुआत में आमिर उन्हें ‘पागल’, ‘मेंटल’ जैसे शब्दों से नवाजता है… ये बातें बोलकर वे समाज के साथ खड़े नजर आते हैं, बिल्कुल आम सोच वाले। धीरे-धीरे वही सारे युवा आमिर की सोच और दिल दोनों बदल देते हैं। ये देखना वाकई एक अनुभव है। यही इसी फिल्म की जान भी है।
फिल्म की सबसे बड़ी ताकत यह है कि यह हमें हंसाकर सिखाती है, रुलाकर नहीं। जहां ‘तारे ज़मीन पर’ में बच्चे की तकलीफ दर्शक की आत्मा तक जाती थी, वहीं ‘सितारे जमीन पर’ थोड़ी हल्की, लेकिन सच्ची दुनिया रचती है। ऐसी दुनिया जहां ‘नॉर्मल’ कुछ है ही नहीं।
आमिर खान को बढ़िया काम करते देखना अच्छा लगा। ‘लाल सिंह चड्ढा’ का यह उतारा है। वे अपने रोल में दिल से रम जाते हैं। उन्हें देखकर वाकई लगता है कि वो ही हैं जो खुद को बदलना नहीं चाहते लेकिन जिंदगी बदलकर रख देती है। ये वो आमिर है ही नहीं जो ‘लाल सिंह चड्ढा’ में आइडियल बने घूम रहे थे। यहां उनके किरदार में कमियां हैं, गलतियां हैं और आप-हम जैसा ही है।
आमिर नहीं हैं इसके हीरो
आमिर कितनी भी कोशिश करते यहां दिखें, लेकिन ये फिल्म असल में उनकी है ही नहीं। आमिर खान भले ही बड़े सितारे हों, लेकिन इस बार वो सिर्फ मंच तैयार करते हैं। असली रोशनी उन युवाओं से आती है जो हर मुश्किल को हौसले और हंसी से हराते हैं। ये फिल्म उन ग्यारह युवा सितारों की है जो स्क्रीन पर दिखते हैं। कोई हवाई जहाज की उड़ान देखकर उसकी दिशा बता सकता है, कोई जो बचपन की एक घटना के कारण नहाने से डरता है, कोई जो रंग-बिरंगे बालों से अपनी पहचान बनाता है, और एक लड़की जो इतनी बेबाक है कि सबका दिल जीत लेती है। आपके लिए यहीं सितारे हैं, आमिर से कहीं बड़े। आप इनकी बातें लेकर ही सिनेमाघर से बाहर निकलते हैं और भूल नहीं पाते।
दिल जीतती है आमिर खान की फिल्म
फिल्म में कमजोरियां भी हैं। डायलॉग लिखने वाला आपको यहां समझदार नहीं मानता, क्योंकि हर सीन में जरूरत से ज्यादा समझाने लगता है। कुछ जगह कॉमेडी जबरन डाली गई है। सबसे बुरी बात… यह फिल्म आमिर को अपना हीरो मान बैठी है। कैमरा उनको ही ढूंढता रहता है। जैसे हमें भी जता रहा हो कि यह उनकी ही फिल्म है। अच्छा यह है कि इन सबके बावजूद आप फिल्म से दिल हार जाते हैं।
अलग होना भी नॉर्मल है
‘सितारे जमीन पर’ का मैसेज भी बढ़िया है… अलग होना कोई कमी नहीं, बस एक और तरह का ‘नॉर्मल’ है। यह फिल्म ना तो किसी को ‘बेचारा’ कहती है, ना ही दुख बेचती है। यह कहती है कि अगर हम सब थोड़ी जिम्मेदारी लें, थोड़ी संवेदना रखें तो शायद ‘उनमें’ और ‘हममें’ का फर्क मिट जाएगा। ‘सितारे ज़मीन पर’ परफेक्ट सिनेमा नहीं है, लेकिन इसकी आत्मा सच्ची है।
