Satish Shah, the 'invisible' hero of comedy.
Satish Shah was suffering from kidney problems.

Overview: तीश शाह: जिसने 60 किरदारों को एक ही शो में जीया

दिग्गज अभिनेता सतीश शाह का किडनी फेलियर के कारण 74 वर्ष की आयु में निधन हो गया। नसीरुद्दीन शाह के करीबी सतीश को 'जाने भी दो यारो' में मृतक और टीवी पर 'इंद्रवदन साराभाई' के किरदार के लिए जाना जाता था। उन्होंने अपनी बहुमुखी प्रतिभा से हर भूमिका को जीवंत किया।

Satish Shah The ‘Invisible’ Hero Of Comedy : फिल्म और टेलीविजन जगत से दुखद खबर है कि मशहूर अभिनेता सतीश शाह का 74 वर्ष की आयु में निधन हो गया है। उनका निधन किडनी फेलियर के कारण हुआ और उन्होंने मुंबई के हिंदुजा अस्पताल में अंतिम साँस ली। उनके जाने से इंडस्ट्री में शोक की लहर है।

दिग्गज अभिनेता सतीश शाह भारतीय सिनेमा जगत के उन कलाकारों में से एक थे, जो मुख्य भूमिका में न होकर भी हर फिल्म को एक अलग ही आयाम देते थे। उन्हें उनकी बहुमुखी प्रतिभा और शानदार कॉमेडी टाइमिंग के लिए जाना जाता था। नसीरुद्दीन शाह के करीबी और ‘जाने भी दो यारो’ जैसी डार्क कॉमेडी फिल्मों का चेहरा रहे सतीश शाह की सिनेमाई यात्रा बेमिसाल रही।

वो ‘मृतक’ किरदार जो अमर हो गया

सतीश शाह के करियर की सबसे यादगार और कल्ट परफॉर्मेंस 1983 की क्लासिक ‘जाने भी दो यारो’ में थी। इस डार्क कॉमेडी फिल्म में सतीश शाह ने एक मृतक (Dead Body) की भूमिका निभाई थी, जिसे गलती से दो फोटोग्राफर (नसीरुद्दीन शाह और रवि वासवानी) अपने साथ ले जाते हैं।

अद्वितीय अभिनय

एक मृत शरीर का किरदार निभाना अपने आप में एक चुनौती थी, लेकिन सतीश शाह ने अपनी बॉडी लैंग्वेज और मरे हुए व्यक्ति के हाव-भाव को इतनी कुशलता से निभाया कि वह फिल्म का सबसे हास्यास्पद तत्व बन गया। फिल्म के क्लाइमेक्स में, महाभारत के दृश्य के दौरान, उनके ‘मृत शरीर’ का हिलना-डुलना आज भी भारतीय सिनेमा के बेहतरीन कॉमेडी दृश्यों में गिना जाता है।

Satish Shah, the 'invisible' hero of comedy.
Satish Shah, the ‘invisible’ hero of comedy.

डार्क कॉमेडी के बेताज बादशाह

सतीश शाह को उनके दौर में डार्क कॉमेडी (Dark Comedy) में उनके योगदान के लिए विशेष रूप से जाना जाता है। ‘जाने भी दो यारो’ में उनका ‘मृतक’ का किरदार हो या अन्य फिल्मों में उनकी अजीबोगरीब भूमिकाएं, उन्होंने गंभीर स्थितियों में भी हास्य पैदा करने की कला में महारत हासिल की। उन्हें उस दौर के कला सिनेमा और समानांतर सिनेमा में एक मजबूत स्तंभ माना जाता था, जहाँ हास्य के माध्यम से समाज पर व्यंग्य किया जाता था।

पुरस्कार और सिनेमाई योगदान

सतीश शाह को उनके शानदार प्रदर्शन के लिए कई बार सम्मानित किया गया है, जिसमें तीन फिल्मफेयर पुरस्कार भी शामिल हैं। उनकी बहुमुखी प्रतिभा को पहचानते हुए, उन्हें तीन बार फिल्मफेयर पुरस्कार से नवाजा गया। ये पुरस्कार उनकी क्षमता को दर्शाते हैं कि वह सिर्फ कॉमेडी ही नहीं, बल्कि हर तरह के किरदार को प्रभावी ढंग से निभा सकते थे।

नसीरुद्दीन शाह से करीबी

सतीश शाह दिग्गज अभिनेता नसीरुद्दीन शाह के बहुत करीबी रहे हैं। इन दोनों अभिनेताओं ने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (NSD) के दिनों से ही साथ काम किया और बाद में ‘जाने भी दो यारो’ जैसी फिल्मों में उनकी ऑन-स्क्रीन केमिस्ट्री शानदार रही, जो उनकी ऑफ-स्क्रीन दोस्ती की गहराई को दर्शाती है।

टेलीविजन के मास्टर ऑफ डिस्गाइज़

‘ये जो है जिंदगी’ : बड़े पर्दे के अलावा, सतीश शाह ने छोटे पर्दे पर भी अपनी छाप छोड़ी। उन्हें 80 के दशक के लोकप्रिय कॉमेडी सीरियल ‘ये जो है जिंदगी’ में उनकी शानदार टाइमिंग के लिए याद किया जाता है। ये जो है जिंदगी’ (1984) यह भारतीय टेलीविजन के शुरुआती और सबसे लोकप्रिय सिटकॉम्स में से एक था। इस शो में सतीश शाह ने अपनी अदभुत प्रतिभा का प्रदर्शन करते हुए 55 एपिसोड में 60 से अधिक अलग-अलग किरदार निभाए, जिसने उन्हें घर-घर में मशहूर कर दिया।

साराभाई वर्सेस साराभाई’: यह शो उनकी सबसे प्रतिष्ठित भूमिकाओं में से एक है। इसमें उन्होंने शरारती, व्यंग्यात्मक और मजाकिया पिता इंद्रवदन साराभाई का किरदार निभाया, जो अपनी पत्नी माया (रत्ना पाठक शाह) और बेटे रोशेस (राजेश कुमार) को लगातार चिढ़ाते रहते थे। यह किरदार आज भी कल्ट क्लासिक माना जाता है। उन्होंने ‘फ़िल्मी चक्कर’ (1995) और ‘ऑल द बेस्ट’ जैसे अन्य लोकप्रिय कॉमेडी शो में भी काम किया।

Satish Shah, the 'invisible' hero of comedy.
Satish Shah, the ‘invisible’ hero of comedy.

बॉलीवुड में कॉमिक और सपोर्टिंग रोल

जाने भी दो यारो’ के अलावा, सतीश शाह ने कई सुपरहिट बॉलीवुड फिल्मों में यादगार सपोर्टिंग भूमिकाएं निभाईं:

‘मैं हूँ ना’ (2004): इसमें प्रोफेसर रसाई का उनका किरदार बहुत पसंद किया गया था, जिसकी थूकने की अजीब आदत थी। इस किरदार की वजह से शाहरुख खान को उनके साथ शूटिंग के दौरान कई बार हँसी आ जाती थी।

‘कल हो ना हो’ (2003): उन्होंने इसमें सैफ अली खान के किरदार के गुजराती पिता करसन भाई पटेल की भूमिका निभाई थी।

अन्य बड़ी फिल्में: वह ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’, ‘कभी हाँ कभी ना’, ‘ओम शांति ओम’, ‘फना’ और ‘हम साथ साथ हैं’ जैसी कई बड़ी और सफल फिल्मों का हिस्सा रहे। ‘मैने प्यार क्यूं किया’ जैसी मुख्यधारा की फिल्मों में भी कॉमेडी भूमिकाएं निभाईं, जहाँ उन्होंने अपने अनूठे अंदाज से दर्शकों को खूब हँसाया।

सतीश शाह ने अपनी कला से यह साबित किया कि किसी भी कलाकार का कद उसके किरदार के आकार से नहीं, बल्कि उस किरदार को निभाने की उसकी लगन और प्रतिभा से मापा जाता है। वह भारतीय सिनेमा के इतिहास में अपनी शानदार और प्रभावशाली परफॉर्मेंस के लिए हमेशा याद किए जाते रहेंगे।

निजी जीवन और विरासत

पत्नी: सतीश शाह ने डिज़ाइनर मधु शाह से 1972 में शादी की थी।

फिल्मी शुरुआत: उन्होंने अपने करियर की शुरुआत 1978 में फिल्म ‘अरविन्द देसाई की अजीब दास्तान’ से की थी।

कठिन दौर: 2014 में अपनी आखिरी फिल्म ‘हमशक्ल’ के व्यावसायिक रूप से विफल होने और खराब अनुभव के बाद उन्होंने अभिनय से दूरी बना ली थी।

योगदान: लगभग पाँच दशकों के करियर में, उन्होंने 250 से अधिक फिल्मों और कई टेलीविजन धारावाहिकों में अभिनय किया, जिससे भारतीय कॉमेडी को एक अमूल्य विरासत मिली।

मैं रिचा मिश्रा तिवारी पिछले 12 सालों से मीडिया के क्षेत्र में सक्रिय हूं। विभिन्न न्यूज चैनल के साथ काम करने के अलावा मैंने पीआर और सेलिब्रिटी मैनेजमेंट का काम भी किया है। इतने सालों में मैंने डायमंड पब्लिकेशंस/गृह लक्ष्मी, फर्स्ट...