Summary : ललिता का करियर 70 साल लंबा रहा
उन्होंंने 12 साल की उम्र से काम शुरू किया था और पहले वो फिल्मों में हीरोइन का रोल करती थीं...
Lalita Pawar Story: ललिता पवार को आपने अक्सर ऐसे किरदारों में देखा होगा, जो घरों में नापसंद किए जाते हैं। आज के जमाने के लोग मान सकते हैं कि अगर वो आज भी काम कर रही होतीं तो एकता कपूर के हर सीरियल में उन्हें नेगेटिव रोल मिल जाता। महिला को अगर बुरा दिखाना है तो एक जमाने में निर्माता के पास कोई गफलत होती नहीं थी, वो सीधे ही ललिता पवार को अपनी फिल्म में ले लेता था। वो इतनी मशहूर थी कि घरों में बुरी महिला को ‘ललिता पवार’ ही कहा जाता था। बाद में बिंदु ने उनकेी कमी को भरा था। बिंदु भी राजश्री की फिल्मों में ललिता जैसे रोल ही करती रहीं। लेकिन आयकोनिक तो ललिता ही थीं।
ललिता का चेहरा अगर बिगड़ा हुआ था तो वजह एक घटना थी। इस घटना ने उनके करियर को बदल कर रख दिया और साथ में चेहरा भी बिगाड़ दिया। 1942 में एक फिल्म की शूटिंग के दौरान यह दर्दनाक मोड़ आया था। फिल्म जंग-ए-आज़ादी की शूटिंग के दौरान, एक सीन में उनके सह-कलाकार ने उन्हें इतनी जोर से थप्पड़ मारा कि उनकी चेहरे की एक नस पर असर पड़ा। इसका नतीजा ये हुआ कि उनके चेहरे का एक हिस्सा लकवाग्रस्त हो गया और उनकी एक आंख हमेशा के लिए तिरछी हो गई। इस हादसे के बाद वे करीब तीन साल तक बिस्तर पर रहीं। लेकिन इस जीवन बदल देने वाली चोट के बावजूद, ललिता पवार ने हिम्मत नहीं हारी और शानदार वापसी की।
एक समय की हीरोइन थीं ललिता पवार

ललिता पवार को कड़वी सास या सख्त मां के किरदारों में तो ज्यादातर लोग याद रखते हैं, लेकिन करियर की शुरुआत में वो मूक फिल्मों और शुरुआती टॉकी फिल्मों की प्रमुख हीरोइन थीं। उन्होंने सिर्फ 12 साल की उम्र में एक्टिंग शुरू कर दी थी और हादसे से पहले वे 40 से भी अधिक फिल्मों में हीरोइन के तौर पर नजर आ चुकी थीं। पर ये एक हादसा उनके करियर की दिशा ही बदल गया।
700 से ज़्यादा फिल्मों में किया अभिनय
करीब 70 सालों तक चले अपने अभिनय करियर में ललिता पवार ने हिंदी, मराठी और गुजराती भाषाओं की 700 से भी अधिक फिल्मों में काम किया। वे अक्सर तेज़-तर्रार और तीखी सास के रोल में नज़र आती थीं, लेकिन उनका टैलेंट महज़ इन्हीं स्टीरियोटाइप किरदारों तक सीमित नहीं था। हालांकि उन्हें ज्यादातर नकारात्मक भूमिकाओं के लिए याद किया जाता है, लेकिन आनंद (1971) जैसी फिल्मों में उन्होंने बेहद भावुक और गहराई से भरे रोल भी निभाए। इसमें वे अस्पताल की एक देखभाल करने वाली वरिष्ठ महिला बनी थीं। श्री 420 (1955) में उन्होंने एक सख्त लेकिन समझदार मकान-मालकिन का किरदार निभाया था, जो आज भी यादगार है।
सम्मान और प्रेरणा का प्रतीक बनीं
भारतीय सिनेमा में उनके योगदान को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें 1961 में पद्म श्री से सम्मानित किया। अपनी निजी और पेशेवर ज़िंदगी में इतने बड़े झटके झेलने के बावजूद, ललिता पवार फिल्म इंडस्ट्री में हिम्मत, बहुमुखी प्रतिभा और मजबूती की मिसाल बनकर उभरीं।
