Gulshan Kumar Struggle: गुलशन कुमार दास, जिन्हें गुलशन कुमार के नाम से जाना जाता है, भारतीय संगीत उद्योग के सबसे प्रसिद्ध उद्यमियों और निर्माताओं में से एक थे।
उन्होंने 1983 में सुपर कैसेट्स इंडस्ट्रीज लिमिटेड की स्थापना की, जिसे आज टी-सीरीज़ के नाम से जाना जाता है।
अपने कड़े परिश्रम और दूरदृष्टि से उन्होंने टी-सीरीज़ को भारत का अग्रणी संगीत लेबल बना दिया, जो अब वैश्विक स्तर पर भी अपनी पहचान बना चुका है।
उनके योगदान ने भारतीय संगीत उद्योग को एक नई दिशा दी और भक्ति संगीत से लेकर बॉलीवुड तक, हर शैली में नए मानदंड स्थापित किए।
प्रेरणा बनी हुई है गुलशन कुमार की कहानी
गुलशन कुमार की उद्यमशीलता की सफलता की कहानी भारतीय संगीत उद्योग में एक प्रेरणा बनी हुई है, लेकिन 12 अगस्त 1997 को उनकी निर्दयी हत्या को आज भी देश के इतिहास में एक काला दिन माना जाता है।
humble beginnings से लेकर टी-सीरीज़ को दुनिया के सबसे बड़े संगीत लेबल में बदलने तक, उनकी यात्रा असाधारण रही।
हालाँकि, उनकी बढ़ती सफलता और भक्ति संगीत के प्रति उनके समर्पण ने उन्हें अंडरवर्ल्ड माफिया डी-कंपनी के निशाने पर ला दिया।

फिरौती न देने और अपने सिद्धांतों से न झुकने के कारण मुंबई में दिन-दहाड़े उनकी हत्या कर दी गई, जिसने पूरे देश को हिला कर रख दिया।
आज, हम उनकी उद्यमशीलता की यात्रा और उनके जीवन से जुड़े उन पहलुओं पर नजर डालेंगे, जो उन्हें एक साधारण व्यवसायी से भारतीय संगीत उद्योग का दिग्गज बनाते हैं।
तो, बिना किसी देरी के, चलिए उनकी अविश्वसनीय कहानी पर एक नज़र डालते हैं!
गुलशन कुमार का जन्म और बचपन
गुलशन कुमार का जन्म 5 मई 1951 को दिल्ली में एक पंजाबी हिंदू परिवार में हुआ था। उनके पिता, चंद्रभान दास, दरियागंज की गलियों में फ्रूट जूस विक्रेता थे, और गुलशन कुमार का बचपन आर्थिक तंगी में बीता।
परिवार आर्थिक रूप से कमजोर था, लेकिन गुलशन में कुछ बड़ा करने की ambition थी। रिपोर्टों के अनुसार, उनका परिवार 1947 में भारत-पाकिस्तान विभाजन के दौरान पश्चिमी पंजाब के झंग प्रांत से शरणार्थी के रूप में दिल्ली आया था।
बचपन से ही संघर्षों का सामना करते हुए, गुलशन कुमार ने अपने पिता के साथ फ्रूट जूस बेचने का काम शुरू किया, लेकिन उनकी सोच हमेशा कुछ बड़ा करने की थी।
यही जज़्बा उन्हें आगे चलकर भारतीय संगीत उद्योग के सबसे सफल उद्यमियों में से एक बनाने वाला था।
जब गुलशन कुमार ने कैसेट बेचना शुरू किया
दिल्ली के दरियागंज इलाके में अपने पिता के साथ काम करते हुए, गुलशन कुमार ने महसूस किया कि कैसेट का कारोबार तेजी से बढ़ रहा है और इसमें अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है।
बचपन से ही संगीत के प्रति गहरी रुचि होने के कारण, उन्होंने इस क्षेत्र में अपनी किस्मत आज़माने का फैसला किया। परिवार की मदद से उन्होंने एक रिकॉर्ड शॉप खरीदी, जो उनके उद्यमशीलता सफर की पहली सीढ़ी बनी।
यहीं से उन्होंने सस्ते और किफायती कैसेट बेचने की शुरुआत की, जिसने आगे चलकर भारतीय संगीत उद्योग में क्रांति ला दी और उन्हें एक सफल संगीत निर्माता के रूप में स्थापित किया।
गुलशन कुमार ने कैसेट बेचने के साथ-साथ दिल्ली के धार्मिक आयोजनों में भक्ति गीत और भजन गाने भी शुरू किए। इस दौरान उन्हें एहसास हुआ कि भक्ति संगीत का बाज़ार बहुत बड़ा और अब तक काफी हद तक अछूता है।
उन्होंने इस मौके को पहचानते हुए अपना पूरा ध्यान भक्ति गीतों के उत्पादन और बिक्री पर केंद्रित कर दिया। यह विचार हिट साबित हुआ, क्योंकि भक्तों को सस्ते और अच्छी गुणवत्ता वाले भजन पसंद आए।
उनके इस कदम ने भारत में संगीत उद्योग में एक नई लहर ला दी और उनके संगीत साम्राज्य की नींव रखी, जिसने आगे चलकर टी-सीरीज़ को जन्म दिया।
टी-सीरीज की स्थापना
11 जुलाई 1983 को गुलशन कुमार ने सुपर कैसेट्स इंडस्ट्रीज प्राइवेट लिमिटेड की स्थापना की, जिसे आज टी-सीरीज़ के नाम से जाना जाता है।
यह कंपनी अब एक अरब डॉलर के मूल्य की हो चुकी है, लेकिन इसकी शुरुआती सफलता में कवर गानों की रणनीति ने अहम भूमिका निभाई।
गुलशन कुमार ने अनुराधा पौडवाल, अलका याग्निक, कुमार सानू, मोहम्मद अज़ीज़ जैसे उभरते गायकों को मौका दिया और लता मंगेशकर, मोहम्मद रफी, किशोर कुमार जैसे दिग्गज गायकों के लोकप्रिय गीतों के कवर वर्ज़न बनवाए।
इसके अलावा, कैसेट वितरण नेटवर्क को मजबूत बनाना उनकी सबसे प्रभावी रणनीतियों में से एक था। उन्होंने स्थानीय दुकानों, गली-मोहल्लों के विक्रेताओं और छोटे खुदरा स्टोरों के माध्यम से सस्ते और आसानी से उपलब्ध कैसेट बेचना शुरू किया।
इससे उनकी संगीत कंपनी आम जनता तक पहुंची और टी-सीरीज़ भारत के संगीत बाज़ार में एक प्रतिष्ठित नाम बन गया।
रातोरात बदली किस्मत
1988 में, गुलशन कुमार की टी-सीरीज़ ने आमिर खान की पहली फिल्म “कयामत से कयामत तक” का साउंडट्रैक रिलीज़ किया, जिसने कंपनी की दिशा रातोंरात बदल दी।
इससे पहले, टी-सीरीज़ मुख्य रूप से कॉपीराइट एक्ट की छूट का उपयोग करके कवर गानों और भक्ति संगीत के कैसेट बेचने के लिए जानी जाती थी।
लेकिन “कयामत से कयामत तक” की जबरदस्त सफलता ने इसे बॉलीवुड के मुख्यधारा संगीत उद्योग में एक मजबूत खिलाड़ी बना दिया।
इस एल्बम की रिकॉर्ड-तोड़ बिक्री ने टी-सीरीज़ को फिल्म संगीत के अधिकार खरीदने और मूल साउंडट्रैक बनाने की दिशा में आगे बढ़ाया, जिससे यह भारतीय संगीत उद्योग में एक दिग्गज लेबल बन गया।
टी-सीरीज की सफलता की कहानी
टी-सीरीज की स्थापना गुलशन कुमार ने की थी। उन्होंने 11 जुलाई 1983 को दिल्ली में इस कंपनी की नींव रखी थी।गुलशन कुमार ने बाजार में मौजूद अन्य कंपनियों की तुलना में काफी कम कीमत पर ऑडियो कैसेट बेचना शुरू किया।

इससे आम लोगों तक संगीत की पहुंच आसान हो गई। न्होंने खुदरा विक्रेताओं के साथ अच्छे संबंध बनाए और उन्हें बिना बिके कैसेट वापस लेने की सुविधा दी, जिससे खुदरा विक्रेताओं को टी-सीरीज के कैसेट बेचने में आसानी हुई।
जब कॉपीराइट कानून में बदलाव हुआ, तो टी-सीरीज ने तीन साल पुराने गानों को दोबारा रिकॉर्ड करके बेचना शुरू कर दिया, जिससे उन्हें तेजी से सफलता मिली।
टी-सीरीज ने भक्ति संगीत पर भी ध्यान केंद्रित किया, जो भारत में बहुत लोकप्रिय है, और इस क्षेत्र में भी अपनी पकड़ मजबूत बनाई।
ऑडियो कैसेट में सफलता के बाद, टी-सीरीज ने फिल्म निर्माण और संगीत निर्देशन में भी कदम रखा, जो उनके लिए फायदेमंद साबित हुआ।
फिल्म ‘आशिकी’ उनके लिए एक बड़ी सफलता थी। गुलशन कुमार के बाद उनके बेटे भूषण कुमार ने कंपनी को संभाला और टेक्नोलॉजी के साथ बदलाव किएl
जिसमें यूट्यूब पर चैनल शुरू करना भी शामिल है, जो आज दुनिया के सबसे ज्यादा सब्सक्राइब किए जाने वाले चैनलों में से एक है।
टी-सीरीज की सफलता का श्रेय गुलशन कुमार की दूरदर्शिता, उनकी व्यापारिक रणनीतियों, आम लोगों तक संगीत पहुंचाने के प्रयासों और समय के साथ बदलाव करने की क्षमता को जाता है।
गुलशन कुमार का परिवार
गुलशन कुमार की शादी सुदेश कुमारी से हुई थी, और उन्होंने अपने परिवार को हमेशा मीडिया की सुर्खियों से दूर रखा। रिपोर्ट्स के मुताबिक, दोनों की शादी 1975 में हुई थीl
और साथ में उन्होंने अपने जीवन में तीन बच्चों – भूषण कुमार, तुलसी कुमार और खुशाली कुमार का स्वागत किया।
गुलशन कुमार के निधन के बाद, उनके बेटे भूषण कुमार ने टी-सीरीज़ के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर के रूप में कंपनी की कमान संभाली और इसे नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया।
उनकी बेटी तुलसी कुमार एक मशहूर प्लेबैक सिंगर हैं, जिन्होंने कई हिट गाने गाए हैं, जबकि खुशाली कुमार ने एक्ट्रेस के रूप में फिल्म इंडस्ट्री में अपना नाम बनाया है।
अब्दुल रऊफ उर्फ दाउद मर्चेंट ने गुलशन कुमार की हत्या क्यों की?
जो लोग नहीं जानते, उनके लिए बता दें कि गुलशन कुमार माता वैष्णो देवी और भगवान शिव के बहुत बड़े भक्त थे, और यही कारण था कि उनका भक्ति गीतों की ओर गहरा झुकाव था।
वे नियमित रूप से मुंबई के अंधेरी पश्चिम उपनगर में स्थित जीतेश्वर महादेव मंदिर जाया करते थे। अपनी इसी दिनचर्या के तहत, 12 अगस्त 1997 को भी वे मंदिर में दर्शन करने पहुंचे।
लेकिन दुर्भाग्यवश, जैसे ही वे मंदिर से बाहर निकले, हमलावरों के एक समूह ने उन पर अंधाधुंध गोलियां चला दीं, जो पहले से ही उनके बाहर आने का इंतज़ार कर रहे थे।
इस निर्मम हत्या ने पूरे देश को सदमे में डाल दिया और भारतीय संगीत उद्योग में शोक की लहर दौड़ गई। उस दुर्भाग्यपूर्ण दिन, गुलशन कुमार अपने अंगरक्षक के बिना थे, क्योंकि वह बीमार था।
रिपोर्टों के अनुसार, 8 अगस्त 1997 को गुलशन कुमार को डी-कंपनी की ओर से कई धमकी भरे कॉल मिले थे, क्योंकि उन्होंने अंडरवर्ल्ड को जबरन वसूली की रकम देने से इनकार कर दिया था।

लेकिन उन्होंने इन धमकियों को नजरअंदाज कर अपनी दिनचर्या जारी रखी। 12 अगस्त 1997 को, जब वे अंधेरी पश्चिम स्थित जीतेश्वर महादेव मंदिर से बाहर निकले, तो पहले से घात लगाए हमलावरों ने उन पर 16 गोलियां दाग दीं।
यह निर्मम हत्या भारतीय संगीत उद्योग के इतिहास में सबसे चौंकाने वाली घटनाओं में से एक बन गई, जिसने पूरे देश को सदमे और शोक में डाल दिया।
गुलशन कुमार की चौंकाने वाली मौत के बाद जब जांच शुरू हुई, तो यह सामने आया कि इस हत्या का मुख्य दोषी अब्दुल रऊफ, उर्फ दाऊद मर्चेंट था।
पुलिस जांच और कोर्ट की कार्यवाही के बाद, बॉम्बे हाई कोर्ट ने उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई। यह निर्मम हत्या न सिर्फ संगीत उद्योग के लिए बल्कि पूरे देश के लिए एक बड़ा झटका थी।
आज भी, गुलशन कुमार की हत्या को भारतीय संगीत जगत की सबसे दुखद घटनाओं में से एक माना जाता है, जिसने इंडस्ट्री में अंडरवर्ल्ड के बढ़ते दबदबे की भयावह सच्चाई को उजागर किया।
