Memories of Tabassum: तबस्सुम का कार्डियक अरेस्ट से निधन हो गया लेकिन वह एक ऐसी शख्सियत थीं, जिन्हें कोई भुला नहीं सकता है। दूरदर्शन पर करीब दो दशक तक आइकनिक टीवी सीरीज “फूल खिले हैं गुलशन गुलशन” की मेजबानी करने वाली तबस्सुम का असली नाम किरण बाला था। यही नहीं, इनकी मां एक मुसलमान थीं।
तबस्सुम का असली नाम

तबस्सुम का जन्म मुंबई में ही हुआ था। तबस्सुम के पिता का नाम अयोध्यानाथ सचदेव और मां का नाम असगरी बेगम था। तबस्सुम के पिता स्वतंत्रता सेनानी रह चुके थे और मां भी, साथ ही मां लिखती भी रही थीं।
यही वजह है कि तबस्सुम के जन्म के समय उनके पिता ने अपनी पत्नी की धार्मिक भावनाओं का ध्यान रखते हुए तबस्सुम को यह नाम दिया। वहीं, मां ने अपने पति की धार्मिक भावनाओं के बारे में सोचा और तबस्सुम को किरण बाला सचदेव नाम दिया। ऑफिशियल कागजों पर तबस्सुम का नाम किरण बाला है।
तबस्सुम का बचपन और उनके माता-पिता
तबस्सुम के पिता हिन्दू थे और उनकी मां मुसलमान। तबस्सुम ने खुद एक इंटरव्यू में बताया था कि मेरे माता-पिता दोनों स्वतंत्रता सेनानी और पत्रकार थे। मेरे पिता अपनी पत्रिका प्रकाशित कर रहे थे। अली सरदार जाफरी, कैफी आजमी, मजरूह सुल्तानपुरी, साहिर लुधियानवी तब उस पत्रिका में लिखते थे। इन्हीं लोगों के साथ मेरा बचपन बीता है। मेरे व्यक्तित्व का निर्माण मेरे माता-पिता के कारण हुआ।
मेरे पिता पंजाबी हिंदू थे। वह भगत सिंह के सहयोगियों में से एक थे, जो एक स्वतंत्रता सेनानी थे। मेरी मां मुसलमान थीं, पठान थीं। उनके परिवार में सभी लोग बहुत पढ़े-लिखे थे। मेरे माता-पिता का मानना था कि जीवन में सफल होना है तो अच्छी शिक्षा पाना जरूरी है। मेरे करियर के पीछे मेरी शिक्षा है। मैं सोच-समझकर ही कुछ बोलती और करती हूं।
तबस्सुम ने बताया अपनी मां के बारे में

तबस्सुम न सिर्फ हिन्दू बल्कि मुसलमान रीति-रिवाजों को भी मानती रही थीं। ट्विटर हैंडल ‘जेम्स ऑफ बॉलीवुड फैन’ द्वारा शेयर की गई एक छोटी वीडियो क्लिप में तबस्सुम को अपनी मां के हिंदू धर्म से संबंध के बारे में बोलते हुए देखा जा सकता है।
इस क्लिप में, तबस्सुम अपनी विद्रोही और जिज्ञासु मां असगरी बेगम की अनोखी कहानी बताती है, जिन्होंने 12 साल की उम्र में अपनी हिंदू जड़ों से जुड़ने का फैसला किया था। वह पहले से ही अरबी और फ़ारसी जानती थीं और इस्लामी आस्था का बढ़िया ज्ञान रखती थीं। दरअसल उनके पिता एक ‘मौलवी’ थे।
मां ने नहीं मानी हार
इसी वीडियो में तबस्सुम बताती हैं कि छोटी असगरी ‘वेद’ और ‘उपनिषद’ सीखना चाहती थी, उसकी इच्छा उसके रूढ़िवादी पिता को अच्छी नहीं लगी। उन्होंने उसकी इच्छाओं को मानने से इनकार कर दिया। हालांकि, छोटी असगरी ने अपना मन बना लिया था।

असगरी रामायण और महाभारत पढ़ना चाहती थीं। इस बात पर उनके मौलवी पिता भड़क गए। वह अपने ज्ञान को बढ़ाने के लिए घर से भाग गई और हिंदू समाज सुधारक ‘स्वामी श्रद्धानंद’ के संपर्क में आई। वह उनके ‘गुरु’ बन गए और उन्हें ‘शांति देवी’ नाम दिया। इस तरह उन्होंने अपनी शिक्षा व आस्था के बीच में किसी को नहीं आने दिया।