‘लकड़बग्घा’ में एक्‍शन हीरो बने अंशुमन झा का नहीं चला जादू: Lakadbaggha Review
Lakadbaggha Review

Lakadbaggha Review: अंशुमन झा, रिद्धी डोगरा, मिलिंद सोमन और परेश पाहूजा की फिल्‍म ‘लकड़बग्घा’ एनीमल लवर्स के लिए अच्‍छा सब्‍जैक्‍ट है। फिल्‍म आधारित है स्‍ट्रे डॉग्‍स और एनीमल्‍स पर हो रहे अत्‍याचार और उनकी तस्‍करी पर। बेजुबान जानवरों को बचाने का जिम्‍मा लेते हैं अंशुमन झा। उसका मानना है कि बेजुबान जानवरों से प्रेम करना चाहिए उनकी रक्षा करनी चाहिए न कि बेवजह उन्‍हें परेशान करना चाहिए। इस सब में उसके पालतू जानवर के खो जाने और फिर उसकी खोज में जानवरों की तस्‍करी करने वालों तक पहुंच कर वो बेजुबान का मसीहा बन जाता है।

Lakadbaggha Review: श्‍वान से लकड़बग्घा तक है फिल्‍म की कहानी

कोलकाता में रहने वाले अर्जुन बक्शी यानी अंशुमन झा जो एक कुरियर बॉय है। वो खाली समय में बच्चों को मार्शल आर्ट्स भी सिखाता है। अर्जुन को मार्शल आट्र्स उसके पिता (मिलंद सोमन) ने स्‍कूल के दौरान बुली से बचने के लिए सिखाया था। अर्जुन के दिल में बेजुबान जानवरों के लिए खास जगह है और उसने कई बेघर श्‍वान को अपने घर में जगह दी है। अचानक एक दिन अर्जुन का एक श्‍वान सोंकू गायब हो जाता है। अर्जुन सोंकू की तलाश करते करते एक ऐसे गिरोह से टकरा जाता है, जो कि श्‍वान की तस्करी कर रहा है। आर्यन का गिरोह उन जानवरों को मारकर, उनके अंदर ड्रग्स भरकर विदेशों में सप्लाई करते हैं। अर्जुन उन लोगों से जानवरों को छुड़ाने के लिए अकेले ही उनसे भिड़ जाता है। यहीं से फिल्‍म के नाम ‘लकड़बग्घा’ रखने की बात समझ आती है क्‍योंकि इसी दौरान अर्जुन की मुलाकात वहां कैद एक लकड़बग्घे से होती है। अर्जुन उस लकड़बग्घे को अपने घर ले जाता है। वहीं दूसरी तरफ अक्षरा डिसूजा (रिद्धि डोगरा) जो कि क्राइम ब्रांच ऑफिसर है । वो शहर में हो रहे अपराधों को सुलझाने की कोशिश में लगी हुई हैं। अब अर्जुन को उसका कुत्ता सोंकू मिलेगा या नहीं और क्या लकड़बग्घा जो कि एक जंगली जानवर होता है वो अर्जुन के घर रहकर उसका वफादार बनेगा या अपनी फितरत के अनुसार उस पर हमला करेगा। यह जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी।

बात एक्टिंग और डायरेक्‍शन की

फिल्‍म में अंशुमन झा ज्‍यादातर एक्‍शन करते नजर आएं हैं। वे फिल्‍म विद्युत जामवाल और टाइगर श्रॉफ की कॉपी करते लग रहे हैं। उनके हिस्‍से में डायलॉग्‍स कम और एक्शन सीन्स ज्‍यादा हैं। एक्टिंग के नाम पर कुछ खास नहीं देखने को मिला है। बात करें मिलिंद सोमन की तो लम्‍बे समय बाद बड़े पर्दे पर उनकी वापसी कुछ खास नहीं लगी। उनके किरदार को स्‍क्रीन पर बहुत कम स्‍पेस मिला है। तो कह सकते हैं कि उनका इस फिल्‍म में कैमियो है। परेश पाहूजा जो फिल्‍म में विलेन बने हैं। उनकी एक्टिंग ठीक ठाक रही है। उनके किरदार में ठहराव देखने को मिला। लेकिन वे भी कुछ खास नहीं कर पाए। रिद्धी इस फिल्‍म में पुलिस ऑफिसर बनीं हैं। लेकिन इस किरदार के लिए जो जज्‍बा और पर्सनैलिटी की दरकार होती है वो बात देखने को नहीं मिली। हालांकि वे सिंपलिसिटी के साथ खूबसूरत लग रहीं हैं। लेकिन वे इस रोल में फिट नहीं बैंठीं। कुल मिलाकर एक अच्‍छा सब्‍जैक्‍ट होने के बावजूद भी फिल्‍म उतनी प्रभावी नहीं बन पाई है।

क्‍यों देखें  

अगर आप पशु प्रेमी हैं तो ये फिल्‍म आपके लिए वन टाइम वॉच है। फिल्‍म का कॉन्‍सेप्‍ट नया है और पशु प्रेमियों की भावनओं को फिल्‍म में दर्शाने का प्रयास किया गया है। बेजुबान जानवरों को प्‍यार और प्रोटेक्‍शन की जरूरत है और उन्‍हें भी अपनेपन की चाहत है। इस कॉन्‍सेप्‍ट को फिल्‍म में अच्‍छे से दिखाया गया है। अगर आप फिल्‍म में लकड़बग्घे के साथ कुछ अलग देखने की उम्‍मीद कर रहे हैं तो आपको बता दें कि फिल्‍म में लकड़बग्घे के साथ कम ही हैं। कुल मिलाकर वन टाइम वॉच मूवी को देखने का डिसीजन आपको ही तय करना होगा। क्‍योंकि फिल्‍म छोटी ही सही लेकिन सोसाइटी को एक मैसेज देती है।