यहां सब्जी नहीं लगता है गधों का बाजार, कारण जानकर चौंक जाएंगे आप
Donkey Market : भारत में एक ऐसा मार्केट है, जहां पर साग-सब्जी नहीं बल्कि गधे बिकते हैं। आइए जानते हैं इस मार्केट के बारे में-
Donkey Market: भारत विविधताओं का देश है और यहां कई अनोखी परंपराएं और रीति-रिवाज देखने को मिलते हैं। देश में हर साल अलग-अलग राज्यों में तरह-तरह के बाजारों का आयोजन होता है, जिसमें कई तरह की चीजें बिकलती हैं। लेकिन शायद आप में से कई लोग इस बात से अनजान हों कि भारत में एक ऐसा बाजार भी लगता है, जहां सिर्फ गधे बिकते हैं। जी हां, आपको जानकर हैरानी होगी कि महाराष्ट्र के पुणे जिले के जेजुरी शहर में पौष पूर्णिमा के अवसर पर ‘गधों का बाजार’ आयोजित किया जाता है। यह एक अनोखी परंपरा और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है। यह ऐतिहासिक बाजार खंडोबा देव की प्रसिद्ध यात्रा के दौरान लगता है, जो न केवल व्यापार का केंद्र है, बल्कि आस्था और परंपरा से भी गहराई से जुड़ा हुआ है। आइए जानते हैं इस विशेष बाजार के बारे में विस्तार से-
यहां रहती है गुजरात के गधों की मांग

बता दें कि महाराष्ट्र के इस बाजार में गुजरात के काठियावाड़ी गधों की मांग काफी ज्यादा रहती है। क्योंकि इन गधों की मजबूती और पहाड़ी इलाकों में काम करने की क्षमता काफी ज्यादा होती है।
इतना ही नहीं, इन कठियावाड़ी गधों की कीमत 50,000 रुपये से 1 लाख रुपये तक होती है। वहीं, स्थानीय गधों की कीमत 25,000 रुपये से 50,000 रुपये है।
उम्र और दांत के हिसाब से कीमत होती है तय
इस बाजार में बिकने वाले गंधों की कीमत उसके दांतों और उम्र के हिसाब से तय की जाती है। दो दांत वाले गधों को ‘दुवान’, चार दांत वाले को ‘चौवन’ और मजबूत दांत वाले गधों को ‘अखंड’ कहा जाता है। ‘अखंड’ गधों की कीमत काफी ज्यादा होती है। यहां आने वाले व्यापारी इस गधे के प्रति काफी आकर्षित रहते हैं।
गधों के बाजार का है ऐतिहासिक महत्व

खंडोबा यात्रा के दौरान गधों का यह बाजार एक पुरानी परंपरा है, जो कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था से जुड़ी है। गधे, जो सामान ढोने और कृषि कार्यों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, इस बाजार का मुख्य आकर्षण होते हैं। यहां राज्य और देशभर से व्यापारी, किसान और खरीददार गधों की खरीद-फरोख्त के लिए आते हैं।
क्या है इस बाजार की खासियत
- बाजार में आने वाले गधों को विशेष रूप से सजाया जाता है। उनके गले में घंटियां और रंगीन कपड़े बांधे जाते हैं, जिससे वे आकर्षक दिखते हैं।
- इस बाजार में गधों की कीमत उनके आकार, वजन, सहनशक्ति, और रंग के आधार पर तय की जाती है। मोलभाव करना इस बाजार का मुख्य हिस्सा है।
- यह बाजार केवल व्यापार का केंद्र नहीं, बल्कि जेजुरी की सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा भी है। यहां लोग परंपराओं को सहेजते हुए इसे जीवित रखते हैं।
- खंडोबा यात्रा के दौरान भक्त अपनी आस्था के साथ इस मेले में शामिल होते हैं। यह बाजार इस उत्सव का एक अभिन्न हिस्सा बन गया है।
गधों के उपयोग में भले ही आधुनिक मशीनों और वाहनों ने जगह बना ली हो, लेकिन ग्रामीण और पहाड़ी इलाकों में आज भी गधों की उपयोगिता बनी हुई है। यह बाजार उन लोगों के लिए आर्थिक और सामाजिक सहयोग का जरिया है, जो गधों के व्यापार पर निर्भर हैं।
जेजुरी का गधों का बाजार न केवल महाराष्ट्र, बल्कि पूरे भारत की परंपरा और सांस्कृतिक धरोहर को दर्शाता है। यह एक ऐसा आयोजन है, जो हमें हमारे ग्रामीण जीवन, कृषि आधारित अर्थव्यवस्था और ऐतिहासिक परंपराओं से जोड़ता है। खंडोबा देव की यात्रा के साथ जुड़ा यह बाजार आज भी उत्सव, व्यापार और आस्था का प्रतीक बना हुआ है।
