Summary : पुरानी वाली फिल्म का जादू सिरे से गायब है
ना तो इसेके गाने अच्छे हैं और ना ही कहानी। अजय की मौजदूगी तक यहां महसूस नहीं होती।
Son of Sardaar 2 Review: वाकई बॉलीवुड नहीं जानता कि लोग क्या देखना चाहते हैं! ‘सन ऑफ सरदार 2’ जैसी सितारों से भरी फिल्में आखिर चाहिए किसे, अगर कहानी और मजेदार सीन ही नहीं हैं। फिल्मकार शायद मानने को तैयार ही नहीं कि देखने वाले अब बदल चुके हैं। उन्हें बेहद अच्छे से पता है कि क्या परोसा जा रहा है लेकिन तादाद में फिल्मकार हैं जो दर्शकों को हल्के लिए जा रहे हैं। और यह तो गांठ ही बांध लेना चाहिए कि सितारों को देखकर टिकट खरीदने वाला जमाना गया। गलतफहमी दूर हो जाना चाहिए कि खूबसूरत चेहरे, विदेशी लोकेशन्स और बूढ़े हीरो दिखा कर देखने वालों को खुश कर देंगे। अजय देवगन ने यहां जो भी परोसा है वो सिर्फ बकवास है। फिल्म में कुछ भी नया या मजेदार नहीं जोड़ा गया।
विजय कुमार अरोड़ा के निर्देशन में बनी यह फिल्म 2012 की ‘सन ऑफ सरदार’ का सीक्वल है, जिसमें अजय देवगन और सोनाक्षी सिन्हा थे। उसके गाने भी कमाल थे। माना जाता है कि पहली फिल्म हिट थी। लेकिन ‘सन ऑफ सरदार 2’ न तो कॉमेडी है और न ही मनोरंजन। यह देखने में अजीब है और बुरी तरह से बनी हुई। हास्य स्तर इतना नीचे है कि हंसी के बजाय ऊब महसूस होती है। आज का दर्शक इससे कहीं बेहतर हास्य समझता है। ऐसी बेमतलब और बेस्वाद फिल्म उसे कतई अब हंसा नहीं सकती।
जोड़ी बेमेल है अजय और मृणाल की
इस बार भी अजय देवगन लीड रोल में हैं। उनके साथ मृणाल ठाकुर को रखा गया है। यह जोड़ी इतनी असहज और बेमेल है कि झेलना मुश्किल हो जाता है। 56 साल के अजय देवगन और 33 साल की मृणाल ठाकुर को रोमांटिक अंदाज में दिखाना बेहद अटपटा लगता है। समझ नहीं आता कि मृणाल ठाकुर यहां फिट किसको दिखीं…!
जस्सी में अब दम नहीं
फिल्म की कहानी जस्सी (अजय देवगन) के इर्द-गिर्द है। यह झूठे प्यार में फंसता है, चार पागल लड़कियों के चक्कर में पड़ता है, माफिया से उलझता है और अपनी मां को किया एक वादा निभाने की कोशिश करता है। यह सब मिलाकर जो कथानक बनता है, वो बचकाना और बेमतलब लगता है। फिल्म में अगर कोई कमाल करता है तो वो है दीपक डोबरियाल। दीपक ने पाकिस्तान से इंग्लैंड में आकर बसी एक ट्रांस वुमन का किरदार निभाया और कमाल कर दिया। लेकिन स्क्रिप्ट और फिल्म का ट्रीटमेंट इतना कमजोर है कि उनके लिए यहां खास जगह नहीं बन पाती। तारीफ रवि किशन की भी बनती है। उन्होंने एक कमजोर, बेतुकी स्क्रिप्ट में भी अपने लिए जगह बना ली। ‘लापता लेडीज़’ और नेटफ्लिक्स की ‘मामला लीगल है’ से मिला उनका बेहतरीन फॉर्म अभी बरकरार है।
वक्त क्यों बर्बाद करना…
अजय देवगन से निर्देशक का ध्यान हटता तो बाकी कलाकारों को ठीक से इस्तेमाल किया जाता। इस इंतजार में फिल्म ही खत्म हो जाती है।चंकी पांडे जैसे कई अच्छे कलाकार बस नाम के लिए हैं, उनके होने का कोई मतलब ही नहीं बनता। पूरी फिल्म काफी शोरगुल वाली है और बोरिंग है। यह फिल्म दर्शकों की समझ का सरासर अपमान है। ‘सन ऑफ सरदार 2’ 2012 में जो काम कर गया था, वो अब नहीं दिखेगा। गाने तक इसका साथ नहीं देते। एक वजह नहीं कि आप इसे देखें। अच्छा सिनेमा देखना चाहते हैं, तो यहां वक्त ना खराब करें।
