चन्दानी अपने बेटे के चरित्र से परिचित था, इसलिए लंदन से बुलाने के बाद उसे समझा दिया था कि किस प्रकार सुन्दर तथा कोमल व्यवहार द्वारा उसे अंशु का मन जीतना है। रंधीर को अपने-आप पर कुछ अधिक ही विश्वास था।
इस पार्टी में राय साहब चन्दानी के अनुरोध पर ही आए थे, वर्ना उन्हें तो अपने काम-काज से ही समय नहीं मिलता था। इस पार्टी में राय साहब द्वारा यह जानकर भी कि वह विशाल को अंशु के लिए पसन्द कर चुके हैं, चन्दानी को रंधीर के लिए निराशा नहीं महसूस हुई थी। यही कारण था कि जब उसने इस समय राय साहब को जाते देखा तो एक बार फिर अपना पासा फेंका।
‘राय साहब…’ उसने मानो निवेदन किया, ‘यदि जाने की इतनी ही जल्दी है तो कम से कम अंशु बेटी को ही छोड़ दीजिए। बच्चों का जश्न तो अभी आरम्भ ही हुआ है।’
राय साहब ने एक पल सोचा। फिर अपनी बेटी से राय लेना उचित समझा। उन्होंने पूछा, ‘तुम रुकना चाहती हो बेटी?’
‘रुकेगी क्यों नहीं?’ अंशु की बजाय चन्दानी ने कहा, ‘मेरा लड़का दो वर्ष बाद लंदन से लौटा है। कुछ दिन बाद चला भी जाएगा, इसलिए न रुकने का प्रश्न ही नहीं उठता।’
‘ठीक है…’ राय साहब ने विशाल को देखा, बोले, ‘तुम दोनों बाद में आ जाना। मैं गाड़ी भेज दूंगा।’
‘जी अंकल!’ विशाल ने कहा।
चन्दानी को विशाल का रुकना अच्छा नहीं लगा, परन्तु वह विवश था। कुछ नहीं बोला।
राय साहब तथा उनकी पत्नी चली गई तो रंधीर को मानो उसकी इच्छानुसार अवसर मिल गया। नृत्य चलता रहा। कुछ देर बाद अन्य बूढ़े भी चले गए तो चन्दानी ने भी बच्चों की स्वतंत्रता में खटकना उचित नहीं समझा। अंशु को रंधीर की बांहों में हंसता-मुस्कुराता देखने के बाद वह सन्तुष्ट हो चुका था।
उस पर नशे का जोर बढ़ने लगा तो रंधीर पर भरोसा करके वह आराम करने चला गया। रंधीर को मानो इसी बात की प्रतीक्षा थी। शाम से ही उसे शराब की आवश्यकता सता रही थी। बड़ी कठिनाई से उसने अपने-आपको रोक रखा था। चन्दानी के जाते ही उसने अंशु की दृष्टि बचाकर शराब का एक बड़ा घूंट पिया- दो पैग एक साथ। उसके बाद जब वह डांस-फ्लोर पर आया तो अब उसमें नृत्य करने का एक नया ही जोश उत्पन्न हो चुका था। उसने अंशु का साथ मांगा। अंशु एक मुस्कान के साथ उसकी बांहों में चली गई। विशाल मूर्खों के समान एक किनारे बैठ गया।
ऑर्केस्ट्रा बज रहा था और उसकी धुन के सहारे नवयुवतियां एक-दूसरे की बांहों में बांहें डाले रंगीन वातावरण में डूब जाना चाहते थे, परन्तु अंशु ने महसूस किया कि रंधीर ने शराब पी रखी है। वह उसके साथ नृत्य करते हुए कुछ अधिक ही लाभ उठा रहा है।
अंशु को रंधीर अपनी बांहों में पूर्णतया समेट लेना चाहता था। अंशु को यह बात बुरी लगी। वह उससे दूरी बरतकर नृत्य करने लगी, फिर भी रंधीर उस पर झुका जाता था।
किसी प्रकार ऑर्केस्ट्रा समाप्त हुआ। हॉल तालियों से गूंज उठा। फिर शराब तथा कोल्ड-ड्रिंक के दौर चले। सब एक-दूसरे के सामने खुले तौर से पी रहे थे, परन्तु रंधीर अंशु के दिल में अच्छा स्थान बनाने की नीयत से उससे छिपकर पी रहा था। अंशु की सुन्दर बोझिल पलकों के मध्य मदमाती आंखों ने उसकी शराब को कॉकटेल बना दिया तो उस पर नशा और चढ़ने लगा।
ऑर्केस्ट्रा की धुन पर नृत्य फिर आरंभ हुआ। रंधीर ने फिर अंशु का साथ मांगा, परन्तु इस बार अंशु स्पष्ट इंकार कर गई, सबके सामने ही। रंधीर को यह बात बहुत अखरी। नृत्य में सभी लड़कियां उसका साथ देने में हर्ष प्रकट कर रही थीं। उसने कहा कुछ भी नहीं, परन्तु जब अंशु विशाल के साथ डांस-फ्लोर पर उतरी तो रंधीर इसे अपना अपमान समझने पर विवश हो गया। उसकी अन्तरात्मा क्रोध से भड़क उठी। उसने एक किनारे जाकर एक के बाद एक न जाने कितने पैग चढ़ा लिए। उसकी आंखों का रंग लाल हो गया। उसने अंशु को देखा- बहुत क्रोध तथा वासना भरी दृष्टि से।
अंशु बहुत निश्चिंत होकर विशाल की छाती पर सिर रखे थिरक रही थी। विशाल की आंखों में अंशु के प्रति असीमित प्यार की झलक थी। रंधीर के दिल में डाह का ज्वालामुखी फूट निकला। मन हुआ वह विशाल की हत्या कर दे। विशाल मानो उसकी सम्पत्ति को आंखों के सामने ही हड़प कर रहा था।
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