“जानी मानी लेखिका लाॅरेन एस्ली ने कहा है कि यदि इस पृथ्वी पर कोई जादू है, तो यह पानी में निहित है।”

एक वक्त था जब जल चिकित्सा का मतलब नमक वाले पानी से गरारे करना और दिन भर की थकान को रूख़्स्त करने के लिए पैरों को गुनगुने पानी में डालकर रखना था। मगर आज के इस दौर में जल पद्धति हर बीमारी का एक रामबाण इलाज बन चुका है। जल चिकित्सा यानि हाइड्रोथैरेपी। हालांकि ये सुनने में आम नहीं है, जहां एक तरफ बरसों तक एलोपैथिक चिकित्सा का दामन थामे रखने के बाद अब लोग निरोगी काया के लिए होम्योपैथ या फिर आयुर्वेद का सहारा लेने लगे हैं, वहीं इसी फेहरिस्त में एक नाम जो और जुड़ चुका है, वो है जल चिकित्सा पद्धति का। आइए जानते हैं, इसके फायदे

इम्यूनिटी बढ़ाने में फायदेमंद

शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने और उसे रोग मुक्त रखने के लिए वार्म वॉटर्र ड्रिंकिंग थेरेपी काफी फायदेमंद साबित होती है। 

इस थेरेपी में मरीज को दिन भर में 8 से 10 बार केवल गुनगुना पानी पीने के लिए दिया जाता है। 

पानी हमेशा स्टील, पीतल या सेरेमिक के गिलास में ही पीने के लिए कहा जाता है। 

गुनगुना पानी पीने से शरीर में मौजूद टॉक्सिन बाहर निकल जाते हैं। 

इस थेरेपी से बलगम, गैस, एसिडिटी और शरीर में इकट्ठा हुई अतिरिक्त वसा की समस्या दूर होती है।

 

मधुमेह

मधुमेह एक ऐसा रोग है, जिसमें रोगी को मीठा खाने से रोका जाता हैै इस रोग में रोगी को प्यास भी बहुत अधिक लगती है। 

उपचारः इसमें सामान्य गीला कपड़ा गर्दन से नीचे तक पूरे शरीर पर बांधना है और फिर एक कंबल को शरीर पर अच्छी तरह से लपेटना है, जो शरीर की गर्माहट को पूरी तरह से अपने अंदर खींच लेता है। इसे कम से कम तीस मिनट तक करते रहना है। इसे फुल बाॅडी लपेट भी कहा जाता है। ऐसा करने से मधुमेह कंट्रोल रहता है। 

लाभः इस चादर लपेट प्रक्रिया से शरीर की गर्माहट के साथ साथ दूषित तत्व और विष आदि पदार्थ निकल जाते हैं। शरीर से दूषित तत्व को बाहर निकालने के लिए इस क्रिया को सप्ताह में एक बार ज़रूर करें।

 

सर्दी और जु़काम 

सर्दी के मौसम में खांसी, खराश और जु़काम का होना आम समस्या है। 

उपचारः गर्म पानी में नमक और फिटकरी डालकर गरारे करने से गले की खराश दूर होती है। 

एक लोटा लेकर उसमें हल्का गर्म पानी और आधा चम्मच नमक मिलाकर नाक में लगाएं और मूंह को खोलकर सांस लें तथा दूसरा नाक से पानी को निकाल दें। 

रोगी को दिन में कम से कम चार बार भाप अपने चेहरे पर लेनी चाहिए, जिससे रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलेगा। 

बिस्तर पर लेटकर सिर को बिस्तर से नीचे की ओर रख लें और फिर सिर पर सामान्य पानी डाल दें। इससे भी काफी लाभ होता है।

 

नींद आना

अधिक भोजन करने, मानसिक परेशानी, चिंता और मादक पदार्थों का सेवन करने से नींद में रूकावट आती है।  

उपचारः 

प्रवाहयुक्त पानी से पैरों को धोएं।

इसके अलावा कपड़े को पानी में भिगोकर निचोड़ लें। फिर उसे तीन से चार बार घुमाकर पेट पर लपेट दें। उसके उपर गर्म कपड़ा बांध दें ताकि वो खुल न सकें। इस प्रकार पट्टी को खाली पेट दो बार लपेटंे। 

सोने से पहले स्नान करें और नहाते समय सिर पर पानी की धार डालें। 

लाभः इससे नए और पुराने सभी रोग दूर होते हैं।

 

दांतों का दर्द

कब्ज रहने, अधिक गर्म यां ठंडा खाने यां फिर मीठे खाद्य पदार्थों का अधिक सेवन करने से मसूड़ों के रोग उत्पन्न हो जाते हैं। 

उपचारः दांतों के रोग में गर्म कुल्ला करने से दांतों में सिहरन उत्पन्न होकर दांतों के रोगों में आराम पहुंचता है। 

मसूड़ों में सूजन होने पर मूंह के अंदर रोगग्रस्त भाग पर और वैसे भी स्टीम बाथ लेनी चाहिए। जल−चिकित्सा की मुख्य क्रिया स्नान ही है। उसी को विभिन्न रूपों और विधियों से काम में लाकर सब रोगों को ठीक किया जा सकता है। स्नान का उद्देश्य शरीर की सब तरह की अशुद्धता, मल, गन्दगी को दूर करना और देह को आवश्यक तरी, पोषण पहुँचाना होना चाहिये।

 

पेट में गड़बड़ी

उपचारः पेट में गड़बड़ी होने पर खाना खाने के बाद चाय जैसा उबला हुआ पानी पीने से मोटापा कम होता है।

गर्म तोलिए से सिकाई करने से आराम मिलता है। 

पेट−दर्द होने पर रबड़ की बोतल में गर्म पानी भर कर सेक करने से आराम मिलता है।

 

घबराहट, थकान और बुखार को रखे दूर

ठंडे व गर्म जल की पट्टी शरीर के अंदर के अंदर की गर्मी को शांत करने के लिए विशेष रूप से लाभकारी है। इससे शरीर की बड़ी हुई गर्मी कम होती है और त्वचा की रूकावट, थकान व शरीर की गंदगी दूर होती है। ये खून के बहाव को तेज़ करता है और बुखार के अधिक ताप को दूर करता है। इससे रोगी में उत्पन्न घबराहट दूर होती है और रोगी का शरीर स्व्स्थ बना रहता है। 

 

स्नान की विधियां

कटि स्नान या हिपबाथ

इस स्नान के लिये एक विशेष बनावट के टब का इस्तेमाल किया जाता है। टब का  पिछला भाग कुर्सी की तरह सहारा लेने के लिये उठा रहता है। आरम्भ में पाँच से दस मिनट तक स्नान करना काफी होता है बाद में इस समय को आधा घंटे तक बढ़ाया जा सकता है। पानी इतना ठंडा होना चाहिए जितना आसानी से सहन कर लिया जाय। 

मेरु दण्ड स्नान

इसके लिये नल के नीचे बैठकर रीढ़ की हड्डी के ऊपर पानी की धार गिराना चाहिए। अथवा तौलिया को पानी में भिगो कर उससे रीढ़ की हड्डी को रगड़ना चाहिए।

गीली चादर लपेटना

ज्वर की अवस्था में गीली चादर का प्रयोग बहुत लाभदायक होता है। पहले एक कम्बल को नीचे बिछाकर उस पर एक भीगा और निचोड़ा हुआ साफ चादर फैला दिया जाता है। उस पर रोगी को लिटाकर उसे पूरी तरह उसमें लपेट दिया जाता है, जिससे किसी तरफ होकर बाहरी हवा का आवागमन न हो सके। गर्दन से ऊपर सिर को खुला रखा जाता है। उसके पश्चात् कम्बल को भी ऊपर से उसी प्रकार लपेट दिया जाता है। इस प्रकार पन्द्रह बीस मिनट तक पड़े रहने से पसीना आ जाता है और देह की अतिरिक्त गर्मी निकलकर स्वस्थता का अनुभव होने लगता है।

 

गीले कपड़े की पट्टी

जब पूरे शरीर के बजाय किसी खास अंग की ही चिकित्सा करने की आवश्यकता होती है तो कपड़े के एक टुकड़े की कई तह करके ठण्डे पानी से भिगोकर प्रभावित अंग पर रख दिया जाता है। जब पट्टी गरम हो जाय तो उसको हटाकर फिर से ठण्डा करके रखा जा सकता है।

 

भाप−स्नान

अगर पूरे शरीर में कोई रोग हो, तो लोहे की जाली के पलंग पर रोगी को लिटाकर उसके नीचे खौलते हुए पानी के तीन बर्तन रख देने चाहिये और सबके ऊपर से एक बड़ा कम्बल इस प्रकार डाल देना चाहिये कि वह पूर्ण चारपाई को ढ़ककर जमीन को छूता रहे जिससे भाप बाहर न निकल सके। ऐसा करने से थोड़ी देर में खूब पसीना निकलने लगता है जिसके साथ शरीर के बहुत से विकार भी निकल जाते है। 

 

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