Dada dadi ki kahani : एक बहुत बड़े जादूगर के यहाँ एक नौकर काम करता था। उसका नाम था नीरज। उसकी सेवा से खुश होकर जादूगर ने उसे एक घोड़ा दिया। यह कोई मामूली घोड़ा नहीं था, उसके मुँह से चाँदी के सिक्के झड़ते थे।
नीरज बहुत खुश था। उसने अपने मालिक को धन्यवाद दिया और बोला, ‘साहब, मैं थोड़े दिनों के लिए अपने गाँव जाना चाहता हूँ। यह घोड़ा मैं अपने पिताजी के पास छोड़कर आऊँगा। वे अब बहुत बूढ़े हो गए हैं। यह घोड़ा उनके पास होगा तो उनकी परेशानी दूर हो जाएगी।’
जादूगर ने कहा, ‘मुझे भी उसी ओर जाना है। चलो, हम दोनों साथ-साथ चलते हैं।’
घोड़े पर सवार होकर वे दोनों चल पड़े। रात होने वाली थी। वे एक शहर से होकर गुज़र रहे थे। उन्होंने तय किया कि वे रात को वहीं रुकेंगे और सुबह आगे जाएँगे।
उन्होंने एक सराय में दो अलग-अलग कमरे ले लिए।
सराय के मालिक को जब पता चला कि उसके यहाँ एक जादूगर आया है तो वह बहुत खुश हुआ। उसने जादूगर की खूब सेवा की। लालची मालिक ने सोचा कि जादूगर खुश होकर उसे खूब सारे पैसे दे जाएगा।
सराय के मालिक की सेवा से खुश होकर जादूगर ने उसे भी एक घोड़ा दिया। बिलकुल वैसा ही जैसा कि नीरज के पास था। सराय के मालिक को बहुत गुस्सा आया। उसने मन-ही-मन सोचा, ‘कंजूस जादूगर ने दिया भी तो घोड़ा। मैं इसका क्या करूँगा?’ लेकिन उसने जादूगर से कुछ नहीं कहा।
सुबह को जब वे जाने लगे तो नीरज के पास सराय के मालिक को देने के लिए पैसे थोड़े कम पड़ गए।
उसने सराय के मालिक से कहा, ‘एक मिनट ठहरिए, मैं अभी आता हूँ।’
ऐसा कहकर वह सराय के बाहर बने अस्तबल में पहुँचा। वहीं पर उसका घोड़ा बँधा हुआ था? उसने घोड़े के मुँह से थोड़े से चाँदी के सिक्के निकाले और वापिस आ गया। सराय का मालिक नीरज का पीछा कर रहा था। उसने जब जादुई घोड़े को देखा तो उसे लालच आ गया। उसने नीरज के घोड़े को अपने घोड़े से बदल दिया।
नीरज को घोड़ों का अंतर पता नहीं चला। वह चुपचाप अपने घोड़े को लेकर अपने घर आ गया। जादूगर साहब भी अपने काम से आगे चले गए।
घर पहुँचकर नीरज ने अपने पिताजी को खुश होकर जादुई घोड़े के बारे में बताया। फिर उनसे बोला, ‘आबरा का डाबरा’ लेकिन घोड़े के मुँह से चाँदी का सिक्के नहीं निकले। नीरज को बेहद आश्चर्य हुआ, क्योंकि घोड़े के मुँह से चाँदी की जगह सोने के सिक्के गिरने लगे। नीरज समझ नहीं पा रहा था कि यह सब कैसे हुआ।
असल में जो घोड़ा जादूगर ने सराय के मालिक को दिया था, वह भी एक जादुई घोड़ा था। लेकिन अपने लालच के कारण वह यह बात समझ ही नहीं पाया।
उधर सराय के मालिक ने घोड़े से चाँदी के सिक्के निकालने चाहे। लेकिन उसके लालच के कारण उसका घोड़ा एक साधारण घोड़ा बन गया था। सराय का मालिक चोरी करके भी पछताता ही रह गया। दूसरी ओर नीरज और उसके पिता अपने नए घोड़े के साथ खुश थे।
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