Dada dadi ki kahani : एक लड़की शबनम अपने पति के साथ एक गाँव में रहती थी। शबनम हमेशा थोड़ी घबराई-सी और भ्रमित-सी रहती थी। उसके लिए सही शब्द है-कन्फ्यूज्ड, एकदम ‘कन्फ्यूज्ड’ रहती थी वह।
एक दिन उसके पति ने कहा, ‘शबनम फ़सल पक गई है। तुम जाकर कटाई का काम शुरू करो। मुझे कुछ काम है। शहर जाना है। शाम को मैं खेत पर ही तुमसे मिलूँगा।’
शबनम घर का काम-काज निबटाकर खेत पर पहुँची। गर्मी के दिन थे। बेचारी थक गई। फ़सल पूरी पक चुकी थी। उसे तुरंत काटना ज़रूरी था। शबनम को सिखाया गया था कि कोई भी काम करने से पहले अच्छी तरह सोच लो। इस बात का उपयोग शबनम कुछ ज्यादा ही करती थी।
उसने खुद से पूछा, ‘क्या मुझे फ़सल काटना शुरू कर देना चाहिए? या फिर मैं थोड़ी देर छाया में बैठकर सुस्ता लूँ?’ और फिर उसने तय किया कि वह थोड़ी देर सुस्ताएगी।
सुस्ताने के बाद उसने फिर अपने-आपसे पूछा, ‘अब मैं फ़सल का, या फिर खाना खा लूँ?’ और उसने तय किया कि पहले खाना खाया जाए।
खाना अच्छी तरह खा लिया तो उसे नींद आने लगी। उसने फिर अपने-आपसे पूछा, ‘अब चलकर देखू फ़सल काटी जाए या फिर मैं एक झपकी मार लूँ?’
तो उसने तय किया कि वह पहले एक छोटी-सी नींद ले लेगी।
वह लेटी तो शाम तक सोती ही रही। शाम को उसका पति शहर से आया। उसने खेत में शबनम को सोते हुए देखा तो उसे बहुत तेज़ गुस्सा आया। उसने सोचा कि इसे सबक सिखाना ही पड़ेगा। वह चुपके से चिड़िया पकड़ने का जाल लाया और शबनम के चारों ओर डाल दिया। जब शबनम की आँख खुली तो उसने देखा कि वह जाल में फँसी हुई है।
‘यह तो चिड़िया पकड़ने का जाल है।’ वह बोली।
तो क्या मैं चिड़िया बन गई हूँ? मैं शबनम हूँ या चिड़िया?’ वह कहती जा रही थी। उसे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है।
वह जाल में से निकलकर बाहर आई। फिर उसने अपने-आपसे पूछा, ‘मैं चलकर जाऊँ या उड़कर?’
अच्छा हुआ कि उसने चलकर जाना निश्चित किया। नहीं तो पता नहीं क्या होता। घर पहुँचकर उसने अपने पति से पूछा, ‘मैं शबनम हूँ या चिड़िया?’
उसका पति उसे सबक सिखाना चाहता था, इसलिए बोला, ‘चिड़िया, तुम एक चिड़िया हो।’
शबनम को रोना आ गया। वह रोते हुए कहने लगी, ‘हाय रे, मैं चिड़िया बन गई …. हाय रे, मैं चिड़िया बन गई …. हाय, मैं अब क्या करूँ …. मुझे तो पेड़ पर होना चाहिए घोंसले में। मेरा घोंसला कहाँ है?’ ऐसा कहते-कहते वह सामने लगे एक पेड़ पर चढ़ने की कोशिश करने लगी।
उसके पति ने जब यह देखा तो दौड़कर आया और बोला, । ‘तुम चिड़िया नहीं हो, शबनम ही हो। अपनी बुद्धि का थोड़ा तो इस्तेमाल किया करो। पता नहीं क्या-क्या सोचती रहती हो। ज़रा सोचो, किसी के कहने से क्या तुम चिड़िया बन जाओगी?’
अब शबनम को समझ में आया कि उसके पति ने ऐसा क्यों किया।
उस दिन के बाद शबनम ने कभी भी कन्फ्यूज्ड होकर काम नहीं किया। काम करने से पहले अब वह सोचती ही नहीं थी। बस करने लगती थी। लेकिन क्या यह आदत ठीक है? तुम बताओ ज़रा …. और बताने से पहले सोचना ज़रूर, अच्छा!
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