Summary: राम मंदिर पर लहराया कोविदार ध्वज, अयोध्या की गौरवशाली पहचान
अयोध्या के राम मंदिर में आज एक ऐतिहासिक पल आने वाला है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुख्य मंदिर में कोविदार ध्वज फहरा दिया है । यह ध्वज सिर्फ आकार में बड़ा ही नहीं, बल्कि अयोध्या के प्राचीन गौरव और रघुकुल वंश की पहचान का प्रतीक भी है।
Shriram Mandir Ayodhya Kovidara Tree: हर देश का झंडा उसके गौरव और पहचान का सबसे बड़ा प्रतीक होता है। ठीक ऐसा ही अयोध्या के प्राचीन काल में भी था। उस समय अयोध्या का झंडा सूर्यवंशी होने के कारण सूर्य का चिन्ह और कोविदार वृक्ष लिए हुए था। यह झंडा न सिर्फ शक्ति और गौरव का प्रतीक था, बल्कि अयोध्या के राजवंश और संस्कृति की पहचान भी बनता था। अब, इस ऐतिहासिक झंडे को एक बार फिर श्रीराम मंदिर के मुख्य परिसर में पीएम मोदी ने फहरा दिया है । तो चलिए जानते हैं कि आखिरकार यह ध्वज इतना खास क्यों है।
कोविदार ध्वज का रामायण में जिक्र
कोविदार ध्वज अयोध्या की प्राचीन पहचान रहा है। इसका जिक्र वाल्मीकि रामायण के अयोध्या कांड में मिलता है। अयोध्या का राजध्वज और उस पर अंकित कोविदार वृक्ष सनातन संस्कृति की अमूल्य धरोहर माने जाते हैं। वाल्मीकि रामायण में बताया गया है कि चित्रकूट वनवास के दौरान भगवान राम ने लक्ष्मण को सेना की जानकारी देने के लिए ध्वजों और रथों का हवाला दिया। लक्ष्मण ने इसे देखकर कहा कि यह कोविदार वृक्ष युक्त विशाल ध्वज उसी रथ पर फहरा रहा है, जिससे पता चलता है कि यह ध्वज अयोध्या की प्राचीन पहचान और गौरवशाली परंपरा का प्रतीक रहा है।
कोविदार ध्वज क्यों है इतना खास

इस ध्वज को कोविदार ध्वज के नाम से जाना जाता है। इसमें कोविदार वृक्ष का चिन्ह अंकित है, जो रघुकुल वंश का प्रतीक है। इसके अलावा ध्वज में सूर्य और ऊँ का चिन्ह भी शामिल है। सूर्यवंशी होने के कारण ध्वज में सूर्य का प्रतीक रखा गया है। कोविदार वृक्ष श्रीराम और उनके वंश के तप, त्याग और गौरव का प्रतीक है। यह ध्वज राम मंदिर के शिखर पर फहराया जाएगा।
राम मंदिर के लिए कहां तैयार हुआ ध्वज
कोविदार ध्वज अहमदाबाद की पैराशूट बनाने वाली कंपनी द्वारा तैयार किया गया है। इसे नायलॉन और रेशमी सिल्क के मिश्रण से बनाया गया है। यह इतना बड़ा है कि अयोध्या में तीन किलोमीटर दूर से भी देखा जा सकता है। सेना और रक्षा मंत्रालय के एक्सपर्ट्स की मौजूदगी में इसे राम मंदिर के शिखर पर फहराने का ट्रायल भी किया गया था । ध्वज को मैन्युअल और इलेक्ट्रॉनिक दोनों तरीके से फहराने की व्यवस्था है।
मंदिर परिसर में कोविदार वृक्ष की स्थापना
एक रिपोर्ट के अनुसार, प्राण प्रतिष्ठा के समय ही राम मंदिर परिसर में कोविदार वृक्ष लगाए गए थे, जो अब लगभग 8 से 10 फीट ऊंचे हो चुके हैं। ध्वजारोहण के बाद ये वृक्ष भी दर्शनार्थियों के लिए खुल गए, जिससे श्रद्धालुओं को अयोध्या के प्राचीन गौरव का अनुभव होगा। पहले कथाओं में रघुकुल का वृक्ष कचनार माना जाता था, लेकिन शोधों के बाद कोविदार वृक्ष की जानकारी मिली है। 15 से 25 मीटर ऊंचा यह वृक्ष बैंगनी फूलों और पौष्टिक फलों से युक्त होता है, जो कचनार से मिलता-जुलता है।
भारत में कहां मिलता है ये वृक्ष
कोविदार वृक्ष की प्रजाति, जिसे कचनार जैसा माना जाता है, आज भी हिमालय के दक्षिणी हिस्सों और भारत के पूर्वी तथा दक्षिणी क्षेत्रों में मिलती है। इंडिया बायोडायवर्सिटी पोर्टल के अनुसार, यह वृक्ष असम के दूर-दराज इलाकों में भी पाया जाता है। जनवरी से मार्च के बीच इसमें खूबसूरत फूल खिलते हैं, जबकि मार्च से मई के समय इसमें फल लगते हैं।
