Hindi Poem:”माँ, क्या आपने कभी कुछ ऐसा करना चाहा था, जो आप सीख न पाईं?”
बेटी दीया के इस मासूम-से सवाल ने मुझे भीतर तक हिला दिया।
मैं उसके सिर पर हाथ फेरती रही, पर शब्द गले में अटक गए।
उस एक सवाल के पीछे दबे हुए थे कई बरसों के अनकहे सपने,
कई इच्छाएँ जिन्हें जिम्मेदारियों के नीचे दबाकर मैंने चुपचाप छोड़ दिया था।
मुस्कान ओढ़कर मैंने कह तो दिया-
“सीखा तो बहुत कुछ… ज़िंदगी से”
पर दिल के भीतर कोई धीमी-सी आवाज़ पूछ रही थी —
“क्या कभी मैंने सिर्फ अपने लिए कुछ सीखा है?”
हमेशा देर नहीं होती
हम औरतें जीवन भर सिखाती रहती हैं —
बच्चों को बोलना, लिखना, चलना;
घर को संभालना, रिश्तों को निभाना,
और मुश्किल समय में हिम्मत रखना।
लेकिन जब बात खुद के लिए कुछ सीखने की आती है,
तो उम्र, जिम्मेदारियाँ और समाज की “उचित उम्र” वाली परिभाषा
हमारे रास्ते में दीवार की तरह खड़ी हो जाती है।
कितनी बार हम सोचते हैं —
“अब मेरी उम्र रह गई है क्या?”
“अब सीखकर करूंगी क्या?”
यह सवाल सिर्फ मेरा नहीं,
बल्कि हर उस स्त्री का है जिसने कभी अपने सपनों को अधूरा छोड़ दिया।
बाधाएँ बाहर से भी… और भीतर से भी
समाज बहुत जल्दी तय कर देता है कि किस उम्र में क्या सीखना “ठीक” है।
औरतों के लिए ये सीमाएँ और भी कठोर हो जाती हैं —
“अब सीखने का क्या फायदा?”
“अब तो बच्चे बड़े हो गए हैं, आराम करो।”
“तुम तो अब दादी हो गई हो!”
धीरे-धीरे ये आवाज़ें हमारे भीतर घर कर लेती हैं,
और हम खुद भी मान लेते हैं कि हमारा वक्त निकल चुका है।
लेकिन असल सच यह है —
वक्त नहीं निकलता, बस हम अपनी इच्छा को सोने दे देते हैं।
इच्छा हो, तो रास्ता खुद बनता है
सीखना कभी उम्र पर नहीं, इच्छा पर निर्भर करता है।
ज़रूरत बस इतनी है कि हम खुद को इजाज़त दें।
खुद से कहिए —
“अब मेरी बारी है”
“अब मैं सिर्फ दूसरों के लिए नहीं, अपने लिए भी सीखूँगी”
सीखना सिर्फ ज्ञान पाना नहीं,
बल्कि खुद से फिर जुड़ना है —
अपने आत्मविश्वास, अपनी खुशी, अपनी पहचान को वापस पाना।
शुरुआत कैसे करें?
हर दिन 15-20 मिनट सिर्फ “सीखने” के लिए निकालें।
फ्री ऑनलाइन कोर्स, यूट्यूब वीडियो, स्थानीय वर्कशॉप या लाइब्रेरी का उपयोग करें।
शुरुआत छोटी हो सकती है — लेकिन रोज़ की होनी चाहिए।
खुद को बार-बार याद दिलाएँ —
“अब नहीं सीखा, तो कब?”
सीखना — आत्मा की भूख है
सीखना उम्र का मोहताज नहीं होता,
ये तो आत्मा की भूख है,
जो तब तक शांत नहीं होती जब तक हम उसे तृप्त न कर दें।
अगर आप यह लेख पढ़ रही हैं और सोच रही हैं —
“काश, मैं भी कुछ सीख पाती…”
तो बस आज पहला कदम बढ़ाइए।
झुर्रियाँ, ज़िम्मेदारियाँ और समाज —
ये सब सीखने की इच्छा से छोटे हैं।
और जब कोई कहे —
“अब इन बातों की उम्र नहीं रही”
तो मुस्कुराकर कह दीजिए —
“सीखना — उम्र का मोहताज नहीं, बस हौसला ज़िंदा होना चाहिए।”
“अब समय है कि हम अपने भीतर की उस जिज्ञासा को फिर से जगाएँ, क्योंकि सीखना उम्र पर नहीं, इच्छा पर निर्भर करता है।”
