Hindi Kahani: “मैं टिकट बुक कर रही हूँ, बस आप चलीं जाना… अरे माँ एक दिन तो अपने लिए निकालिये, इस उम्र में भी फुर्सत से दुश्मनी कर रखी है!”
बातें तमाम कर फोन रखते हुए वो सोचती है कि हम औरतें खुद ही तो कुछ सपने, और एक अदद अपना घर को सपना बनाकर अपना संसार उसी मे समेट लेती हैं। फिर अपने लिए वक्त की कमी हक़ीक़त से ज्यादा ज़ेहनी तौर पर तंग करती है।
माँ ने कभी ‘अपने लिए’ समय नहीं निकाला। उनका मी टाइम उन्हें दिलाने का सपना तो खैर फिजूल की कोशिश भर ही थी। एक दिन सबने डिक्लेयर कर दिया, इन्हें खुद ही घर के कामों में उलझे रहना पसंद है।
उसने एक सरप्राइज़ के तौर पर माँ के लिए थियेटर शो की टिकट भेज दी और कहा अकेले जाकर देख आयें। पहले तो उन्होंने खूब आनाकानी की लेकिन बाद में हथियार डाल दिए।
माँ की ज़िद से जीत कर वह मोबाइल स्क्रोल करने लगी, महिलाओं को समर्पित एक समूह में पिछले दिनों से काफी रौनक बढ़ आई थी।
एक ख़ास दिन की ख़ास तैयारियाँ जोर-शोर से चल रही थी। एक शानदार आर्ट और फाइनेंशियल अवेयरनेस वर्कशाप होने जा रहा था। अच्छा मौका था, एक पूरा दिन अपने पसंद की चीजें करने का, जानने का।
प्रोग्राम की डिटेल्स पर एक सरसरी निगाह दौड़ा कर उसने फॉर्म भरने की ठानी। मदर्स डे पर लगभग एक पूरे दिन चलने वाले कार्यक्रम की रूपरेखा थी। भला इतवार दिन से बेहतर और क्या ही समय होता? उसे ख्याल आया कि अपने लिए हर इतवार को कितनी सहजता से उसने बिना किसी आंदोलन सुकून का दिन घोषित कर रखा था। भला किसी एक दिन से इतनी उम्मीदें और नाराजगी क्यों? माँ को देखा था इतवार को बाकी दिनों से थोड़ा ज्यादा चकरघिन्नी बनी हुई फिरती थी, ‘जाने कहाँ से’ काम जमा कर लेती और शाम तक एक पैर पर खड़ी रहती। उफ्फ!
उसने ख्यालो को झटक कर समूह मे दिए फॉर्म को भरने की रस्म पूरी करने की ठान ली। कुछ रकम तय थी शामिल होने की, उसे भरने के लिए जैसे ही अगला कदम लिया कि आँखे एक पॉइंट पर अटक गईं। फॉन्ट्स को बोल्ड कर लिखा था,’कृपया बच्चों को साथ ना लाएँ, एक खास दिन की हकदार हैं आप! ‘
वो सोच मे पड़ गई। नजर घूमी और सामने कमरे में बैठी सात वर्षीय बेटी पर गई जो दो दिन से उसके लिए ‘सरप्राइज’ मदर्स डे कार्ड तैयार कर रही थी। चेहरे पर मिलेजुले भाव तैर आए। सिर्फ अपने लिए समय और हम ग़म माओं के साथ मौज मस्ती लेकिन मदर्स डे पर एक औलाद से उसकी माँ को दूर करना ये तो सरासर नाइंसाफी होगी!
फॉर्म बंद कर उसने तुरंत माँ को फोन लगाया।
“सुनो माँ! एक काम करना वो संडे स्पेशल कचौड़ी बना लेना, आपको सरप्राइज़ देने मैं और आपकी नातिन आ रहे हैं!”
माँ की खिलखिलाहट बता रही थी, इससे खूबसूरत गिफ्ट पैकेज वो उन्हें नहीं दे सकती थी। वैसे भी इस ‘मी टाइम’ मे ‘वी टाइम’ वाली बात कहाँ?
