Mulla Nasruddin ki kahaniya: नसरुद्दीन ने बर्तन बनाकर धूप में रख दिया और दसवें बर्तन के लिए मिट्टी का लोंदा उठा लिया।
तभी दरवाज़े पर किसी ने ज़ोर से दस्तक दी। वे पड़ोसी, जो कभी-कभी प्याज या नमक माँगने आते थे, इस तरह दस्तक नहीं दिया करते थे । नसरुद्दीन और नयाज ने एक-दूसरे की ओर परेशान नज़रों से देखा । भारी मुक्कों की बौछारों से फाटक चरमरा रहा था।
सहसा नसरुद्दीन के कानों में लोहे की खनक सुनाई दी। उसने फुसफुसाकर नयाज से कहा, ‘सिपाही ।’
‘भाग जाओ।’ नयाज ने ज़ोर देकर कहा ।
नसरुद्दीन बाग़ वाली दीवार से बाहर कूद गया। उसे दूर निकल जाने का मौक़ा देने के लिए नयाज ने दरवाज़ा खोलने में काफी वक्त लगा दिया। फिर जैसे ही उसने दरवाज़ा खोला, अंगूर की बेलों में बैठी चिड़ियाँ फुर्र से उड़कर तितर-बितर हो गईं। लेकिन बूढ़े नयाज के तो पंख थे नहीं, बेचारा कैसे उड़ सकता था। अर्सला बेग को देखते ही पीला पड़ गया और झुककर काँपने लगा।
अर्सला बेग ने कहा, ‘ऐ कुम्हार, तुम्हारे ख़ानदान को बहुत बड़ी इज़्ज़त बख़्शी जा रही है। हमारे आका अमीर को पता चला है कि तुम्हारे बगीचे में एक ख़ूबसूरत गुलाब खिला है। उस गुलाब से वह अपने महल को सजाना चाहते हैं। कहाँ है तुम्हारी बेटी ?”
बूढ़े नयाज का सफ़ेद बालों से भरा सिर हिला और उसकी आँखों के आगे अँधेरा छा गया। जब सिपाही उसकी बेटी को मकान से खींचकर आँगन में लाने लगे तो उसकी चीख़ नयाज ने सुनी। उसकी टाँगें लड़खड़ाईं और वह मुँह के बल ज़मीन पर गिर पड़ा। इसके बाद उसने न कुछ देखा और न कुछ सुना ।
अर्सला बेग ने सिपाहियों से कहा, ‘बेचारा हद से ज़्यादा खुशी मिलने से बेहोश हो गया है। इसे छोड़ दो। जब इसे होश आ जाएगा, महल में आकर अमीर की मेहरबानी का शुक्रिया अदा कर जाएगा। चलो, वापस चलो।’
इसी बीच नसरुद्दीन पीछे की गलियों के चक्कर काटकर सड़क के दूसरे सिरे पर पहुँच गया। झाड़ियों के पीछे से उसे नयाज के घर का फाटक, दो सिपाही और एक आदमी दिखायी दिया। उस आदमी को नसरुद्दीन ने पहचान लिया। वह सूदखोर जाफ़र था।
‘अच्छा लँगड़े कुत्ते, तू लाया है इन सिपाहियों को, मुझे गिरफ्तार कराने के लिए। मेरी होशियारी से तुझे ख़ाली हाथ लौटना पड़ेगा।’ वास्तविक मामला न भाँपकर नसरुद्दीन ने मन ही मन कहा।
लेकिन सिपाही ख़ाली हाथ नहीं लौटे। नसरुद्दीन ने उन्हें अपनी प्रेमिका को ले जाते हुए देखा। डर से उसका खून जम गया। गुलजान छूटने की भरपूर कोशिश कर रही थी। फूटफूट कर इस तरह रो रही थी कि सुननेवालों के दिल टूट रहे थे। लेकिन सिपाही उसे कसकर पकड़े हुए थे और ढालों की दोहरी क़तार से घेरे हुए थे।
जून के महीने का गर्म दिन था, लेकिन नसरुद्दीन के बदन में ठंडी-ठंडी लहरें दौड़ रही थीं। वह जहाँ छिपा था, सिपाही उसी ओर आ रहे थे। उसके दिमाग पर धुँधलापन छा गया। उसने एक बड़ा सा खंजर निकाला और ज़मीन से सटकर बैठ गया। अर्सला बेग सोने का चमचमाता तमगा लटकाए सिपाहियों के आगे-आगे चल रहा था। नसरुद्दीन का खंजर उसकी दाढ़ी के नीचे उसकी मोटी गर्दन में धँस गया होता कि तभी एक भारी हाथ उसके कंधे पर पड़ा और उसे ज़मीन पर दबा दिया। वह चौंक पड़ा। उसने
घूमकर हमला करने के लिए हाथ उठाया। लेकिन यूसुफ लुहार का कालिख भरा चेहरा देखकर हाथ खींच लिया।
‘चुपचाप पड़े रहो।’ यूसुफ लुहार ने कहा, ‘तुम पागल हो। ये बीस हैं और हथियारों से लैस हैं। तुम अकेले और निहत्थे हो । उस बेचारी की तो मदद कर नहीं पाओगे खुद ज़रूर ख़त्म हो जाओगे। चुपचाप लेटे रहो । ‘
जब तक सड़क के मोड़ पर गिरोह आँखों से ओझल नहीं हो गया, वह मुल्ला नसरुद्दीन को दबाए रहा।
‘तुमने मुझे रोका क्यों? अच्छा होता कि मैं मर गया होता।’ नसरुद्दीन चिल्लाया।
‘शेर के मुकाबले हाथ उठाना या तलवार के मुकाबले मुक्का उठाना अक्लमंदी नहीं है।’ यूसुफ लुहार ने सख्ती से उत्तर दिया, मैं बाज़ार से ही इन सिपाहियों का पीछा कर रहा था। तुम्हारी बेवकूफ़ी को रोकने के लिए वक्त पर पहुँच गया। तुम्हें उसके लिए मरना नहीं है। लड़ना और उसे बचाना है। मुश्किल तो है लेकिन बेहतर भी है। दुखी होकर सोच-विचार करने में वक्त बर्बाद मत करो। उनके पास तलवारें हैं, ढालें हैं, भाले हैं। लेकिन अल्लाह ने तुम्हें इनसे ताक़तवर हथियार दिए हैं। तुम अक्लमंद हो, चालबाज़ हो। इन दोनों में तुम्हारा मुकाबला कोई नहीं कर सकता। ‘
यूसुफ लुहार की बातें मर्दों जैसी और लोहे की तरह कठोर थीं। नसरुद्दीन का दिल उन्हें सुनकर डगमगाना छोड़कर सख्त हो गया।
‘शुक्रिया लुहार भाई, मेरी जिंदगी मैं इससे ज़्यादा नाउम्मीदी की घड़ियाँ कभी नहीं आईं। लेकिन नाउम्मीद हो जाना मुनासिब नहीं है। मैं जा रहा हूँ कि अपने हथियारों का ठीक-ठीक इस्तेमाल करूँ। ‘
फिर वह झाड़ियों से निकलकर सड़क पर आ गया।
तभी पास के एक मकान से सूदखोर जाफ़र निकला। वह एक कुम्हार को क़र्ज़ की याद दिलाने के लिए रुक गया था। नसरुद्दीन से उसका आमना-सामना हो गया। उसे देखते ही सूदखोर पीला पड़ गया और वापस भागकर उसी मकान में घुस गया। उसने भड़ाक से दरवाज़ा बंद करके साँकल लगा ली।
नसरुद्दीन ने चिल्लाकर कहा, ‘ओ साँप के बच्चे, मैंने सब कुछ देख-सुन लिया है। मैं सब कुछ जानता हूँ । ‘
एक पल की ख़ामोशी के बाद सूदखोर बोला, ‘मेरे दोस्त, चेरी न तो सियार को मिली और न बाज़ को । वह तो शेर के मुँह में पहुँच गई। ‘
नसरुद्दीन ने कहा, ‘देखा जाएगा कि आखिर में चेरी किसे मिली? लेकिन मेरी बात याद रखना जाफर मैंने तुझे तालाब से निकाला था। मैं कसम खाता हूँ कि तुझे उसी तालाब में डुबोऊँगा ।’ तालाब की काई से तेरा बदन ढका होगा और घास-फूस में फँसकर तेरा दम निकलेगा ।’
फिर उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना नसरुद्दीन आगे बढ़ गया। वह नयाज के घर के सामने भी नहीं रुका, यह सोचकर कि सूदखोर देख न ले और बूढ़े नयाज की शिकायत अमीर से न कर दे।
सड़क के छोर पर पहुँचकर जब उसने यक़ीन कर लिया कि कोई उसका पीछा नहीं कर रहा है तो दौड़कर उसने मैदान पार किया और कूदकर नयाज के घर में चला गया।
नयाज अभी तक ज़मीन पर सिर डाले पड़ा था । अर्सला बेग के फेंके हुए चाँदी के कुछ सिक्के उसके पास पड़े थे।
आहट सुनकर उसने धूल और आँसुओं से भरा चेहरा उठाया। उसके होंठ हिले लेकिन कुछ कह नहीं सका। तभी उसे वह रूमाल दिखाई दे गया था, जो उसकी बेटी का था । जब सिपाही उसे ले जा रहे थे, वह वहीं गिर गया था। बूढ़ा नयाज उसे देखते ही अपनी दाढ़ी नोचने और अपना सिर ज़मीन पर पटकने लगा।
उसे शांत करने में नसरुद्दीन को कुछ वक्त लगा। उसने बूढ़े को एक तिपाई पर बैठाकर कहा, ‘सुनिए बुजुर्गवार, यह गुम अकेला आपका नहीं है। शायद आप नहीं जानते हम दोनों एक-दूसरे को प्यार करते थे। हमने शादी करने का फ़ैसला कर लिया था। मैं सिर्फ इस इंतज़ार में था कि काफ़ी रुपया इकट्ठा कर लूँ ताकि आपको अच्छा दहेज दे सकूँ।’
नयाज ने रोते हुए कहा, ‘मुझे दहेज की परवाह नहीं है। क्या मैं अपनी बच्ची की मर्जी के ख़िलाफ़ कोई काम कर सकता था? अब ये बातें बेकार हैं। वह चली गई। अब तक तो वह हरम में पहुँच चुकी होगी। लानत है मुझ पर। मैं खुद महल में जाऊँगा। अमीर के पैरों पर गिरकर रो-रोकर भीख माँगूगा। शायद उसका दिल पसीज जाए । ‘
वह उठा और डगमगाते क़दमों से फाटक की ओर चल दिया।
‘ठहरिए । ‘ नसरुद्दीन बोला, ‘आप यह भूल जाते हैं कि अमीर आम इन्सानों जैसे नहीं होते। उनके दिल नहीं होता। उनके आगे गिड़गिड़ाना बेकार है । उनसे तो बस छीना जा सकता है। और मैं नसरुद्दीन अमीर से गुलजान को छीन लाऊँगा।’
‘वह बहुत ताक़तवर है। उसके पास हज़ारों सिपाही हैं। हज़ारों पहरेदार और जासूस हैं। तुम उनका मुक़ाबला कैसे करोगे?’
मैं क्या करूँगा, मैं अभी यह सोच नहीं पाया हूँ। लेकिन इतना ज़रूर जानता हूँ कि अमीर गुलजान को वश में नहीं कर पाएगा। वह उसे कभी भी अपना नहीं कर सकेगा। अपने आँसू पोंछ लीजिए। रोकर मेरे सोचने में खलल मत डालिए। ‘
कुछ देर तक नसरुद्दीन सोचता रहा, फिर बोला, ‘आपने अपनी बीवी के कपड़े कहाँ रखे हैं?’
‘वहाँ उस बक्स में। ‘
नसरुद्दीन ने बक्स की चाबी ली और अंदर चला गया।
थोड़ी देर बाद वह औरतों के लिबास में निकला। उसका चेहरा घोड़े के बालों से बुने नकाब से ढँका हुआ था।
मेरा इंतज़ार कीजिएगा और अकेले कोई काम करने की कोशिश मत कीजिएगा।’
उसने गधे पर ज़ीन कसी और वहाँ से चल पड़ा।
