mrityu se abhay
mrityu se abhay

एक युवा संन्यासी था। उस पर एक राजकुमारी मोहित हो गई। राजा को पता चला तो उसने संन्यासी से राजकुमारी के साथ विवाह करने को कहा। संन्यासी बोला, “मैं तो हूँ ही नहीं। विवाह कौन करेगा?”

संन्यासी की यह बात सुनकर राजा ने अपने को बड़ा अपमानित अनुभव किया। उसने अपने मंत्री को आदेश दिया कि उसे तलवार से मार डाला जाए। संन्यासी उसके आदेश पर बोला, “शरीर के साथ मेरा आरंभ से ही कोई संबंध नहीं रहा। जो अलग ही है, आपकी तलवार उसे और क्या अलग करेगी? मैं तैयार हूँ और आप जिसे मेरा सिर कहते हैं, उसे काटने के लिए उसी प्रकार आमंत्रित करता हूँ, जैसे वसंत की यह वायु पेड़ों से उनके फूलों को गिरा रही है।

वह मौसम सचमुच वसंत का था और पेड़ों से फूल गिर रहे थे। राजा ने उन फूलों को देखा, और देखा मौत को सामने उपस्थित जानते हुए भी उस संन्यासी की आनंदित आंखों को उसने एक क्षण सोचा, “जो मृत्यु से भयभीत नहीं है और जो मृत्यु को भी जीवन की भांति स्वीकार करता है, उसे मारना व्यर्थ है। उसे तो मृत्यु भी नहीं मार सकती।” राजा ने अपना आदेश तुरंत वापस ले लिया।

ये कहानी ‘ अनमोल प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएंAnmol Prerak Prasang(अनमोल प्रेरक प्रसंग)