हमारे एक भाई हैं निपट निरक्षर_ लेकिन हर मामले में राय देना व आवश्यक सम झते हैं। वे अपनी राय देने से नहीं चूकेंगे। एक दिन राजनीति पर बहस हो रही थी। कहने लगे भारत ने आज तक एक ही लीडर पैदा किया है, जिसका नाम था- चंदर बूस। सबने जोरदार कहकहा लगाया। हम उनकी इस आदत से बेजार हो चुके हैं और उनके सामने कोई बात छेड़ते हुए डरते हैं कि हमने इधर बात शुरू की और उन्होंने एक लंबी तकरीर झाड़ी।
एक बार हम लोग बैठक में शतरंज खेल रहे थे कि भाई साहब एक हाथ में हुक्का और दूसरे में चिलम लिये उसमें फूंके मारते हुए आ धमके। शुरू में तो वे हमें चालें बताते रहे, फिर उनका एक दोस्त उनसे “कानूनी मशवरा” लेने आ गया। भाई साहब ने दुनिया देखी है और कई बार मुकद्दमेबाजी की कटुता अनुभव कर चुके हैं। बहुत देर तक समझाते रहे कि अदालत के चक्कर न पड़ो और समझौता कर लो। इसमें कुछ नुक्सान भी होता है, तो बरदाश्त कर लो। मगर वे साहब इसके लिए तैयार नहीं थे। जब भाई साहब ने देखा कि बात उसकी समझ में नहीं आ रही है, तो एक नया ढंग अपनाया। उससे पूछा -“कभी इलाहा बाद गये हो?” उसने कहा – “जी नहीं।”
“तो हो आओ।”
“क्यों, वहाँ क्या है?”
“वहाँ यू- पी- की सबसे बड़ी अदालत है- हाई कोर्ट। इस शानदार इमारत के लान में दो मूर्तियां लगी हैं। ये दो भाइयों की हैं, जो एक जमाने में करोड़पति थे। आपसी झगड़े में मुकद्दमेबाजी शुरू हो गयी और बरसों चलती रही। अंत में मुकद्दमे का फैसला हो गया।” “क्या हुआ?” दोस्त ने उत्सुकता से पूछा।
“होता क्या, जो मुकद्दमा जीता, उसके शरीर पर लंगोटी है, और जो हार गया उसके पास वह भी नहीं।” यह सुनकर उसने मुकद्दमेबाजी का विचार त्याग दिया।
भाईसाहब की सूझबूझ इस बार भी काम कर गयी।
ये कहानी ‘ अनमोल प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं–Anmol Prerak Prasang(अनमोल प्रेरक प्रसंग)
