apradhi pakda gaya
apradhi pakda gaya

एक बार एक गरीब मजदूर अपनी पगार लेकर एक दुकान पर राशन लेने पहुँचा। उसने अपने सारे पैसे एक थैले में रखे थे। पास ही एक दुष्ट प्रवृत्ति का युवक खड़ा था। उसने उससे थैला छीन लिया और दावा करने लगा कि यह उसका थैला है। दोनों में झगड़ा बढ़ा तो मामला शहर के काजी के पास पहुँचा। दोनों ने अपना-अपना पक्ष सामने रखा। काजी ने युवक के पक्ष में अपना फैसला सुनाया।

युवक खुशी-खुशी थैला लेकर आगे बढ़ चला, तभी काजी ने अपने फैसले से दुखी मजदूर को बुलाया और कहा कि जाओ, उससे फिर से थैला छीनकर मेरे पास लेकर आओ। मजदूर ने बदमाश का पीछा किया और कुछ दूरी पर उससे अपना थैला छीनने की कोशिश करने लगा।

युवक ने शोर मचाना शुरू कर दिया कि अभी तो काजी ने इससे मुझे मेरा थैला दिलाया है और यह फिर से मुझसे इसे छीनना चाहता है। उनके पीछे-पीछे भेजे गए काजी के सिपाहियों ने उन्हें पकड़ लिया और फिर से काजी के पास ले आए। काजी ने युवक को लताड़ा कि इस बार जब इस मजदूर ने तुमसे थैला छीनना चाहा तो तुमने थैला इसे नहीं छीनने दिया और खूब शोर मचाया। अगर तुम्हारा कहना सही है कि पिछली बार इसने तुम्हारा थैला छीना था, तो तुमने तब कैसे चुपचाप अपना थैला छिन जाने दिया। इससे साफ है कि यह थैला तुम्हारा नहीं, बल्कि इस गरीब का है। युवक ने सिर झुकाकर अपना अपराध स्वीकार कर लिया।

सारः कई बार न्याय करने के लिए कुछ असामान्य उपाय भी आजमाने पड़ते हैं।

ये कहानी ‘इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएंIndradhanushi Prerak Prasang (इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग)