एक स्थान पर एक विशाल मंदिर का निर्माण किया जा रहा था। परिसर में अनेक मजदूर पत्थर तोड़ रहे थे। जब मैं वहाँ से गुजर रहा था तब एक मजदूर से मैंने पूछा- ‘भाई क्या कर रहे हो।’
उसने झल्लाते हुए जवाब दिया- “देख नहीं रहे हो। पत्थर तोड़ रहा हूँ। अपनी जिंदगी बर्बाद कर रहा हूँ।”
वहाँ से आगे जाकर दूसरे मजदूर से मैंने पूछा – “भाई क्या कर रहे हो।” उसने कहा- “बाबूजी, पत्थर तोड़ रहा हूँ… रोटी कमाने के लिए।
मैं और आगे गया और एक अन्य मजदूर से पूछा- “भाई क्या कर रहे हो।”
उस मजूदर के चेहरे पर चमक थी… वह प्रसन्नता से काम कर रहा था… उसने चेहरे से पसीना पोंछा और प्रसन्नता से बोला- “साब… हम मंदिर बना रहे हैं।”
तीन मजदूर एक ही काम कर रहे थे पर तीनों के जवाब भिन्न-भिन्न थे।… जो यह बता रहे थे कि कोई भी काम हो उसे अच्छे मन से खुशी-खुशी करना चाहिए।… तभी उस काम को करने में आनंद आयेगा। इसके विपरीत, यदि उसी काम को बोझ मान कर किया जाए तो वही काम हमारे सिर पर चढ़ कर बोझ बन जाएगा।
ये कहानी ‘ अनमोल प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं–Anmol Prerak Prasang(अनमोल प्रेरक प्रसंग)
