शिक्षक दिवस पर विश्वनाथ विश्वकर्मा भले ही सम्मानित न किए गए हों पर उनका मिशन बदस्तूर जारी है। मोबाइल टीचर के नाम से जाने वाले विश्वकर्मा चलती ट्रेन में शिक्षा देते हैं।
विश्वकर्मा बिहार में गया स्थित एक सरकारी स्कूल में सहायक शिक्षक के पद पर कार्यरत हैं। नवादा में रहने वाले विश्वकर्मा प्रतिदिन गया किऊल के बीच चलने वाली पैसेंजर ट्रेन से ड्यूटी पर जाते हैं।
यात्र के दौरान विश्वकर्मा साथ में यात्र करने वाले सब्जी बेचने वालों को साक्षर बनाने का कार्य करते हैं।
अपनी मोबाईल पाठशाला चलाने के लिए विश्वकर्मा ट्रेन के सबसे आखिरी डिब्बे का प्रयोग करते हैं।
नौ स्टेशनों की यात्र के दौरान विश्वकर्मा अपने छात्रें को पढ़ना-लिखना सिखाते हैं। इतना ही नहीं उन्होंने कई सब्जी बेचने वालों को मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने में भी मदद की।
उनके छात्र बताते हैं कि गुरुजी पहले उनके होमवर्क की जाँच करते हैं। उसके बाद वे आगे का पाठ पढ़ाते हैं।
चाय बेचने वाला श्याम बताता है कि गुरुजी किसी से फीस नहीं लेते हैं। इसके विपरीत वे स्वयं अपने छात्रें के लिए कॉपी, किताब तथा अन्य स्टेशनरी की व्यवस्था करते हैं।
दो छात्रें से शुरुआत करने वाले विश्वकर्मा के पास 100 से अधिक छात्र हैं। उनके छात्रें की लगन देखते ही बनती है। स्टेशन पर गाड़ी आते ही वे डिब्बे में चढ़ने को आतुर हो जाते हैं।
विश्वकर्मा, गया के वेश्याओं के बच्चों को भी पढ़ाते हैं। साथ ही वे आदिवासी क्षेत्रें में घर-घर जाकर शिक्षा का प्रकाश फैलाने में भी लगे हुए हैं।
ये कहानी ‘इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं– Indradhanushi Prerak Prasang (इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग)

