apne hisse ka dhaan
apne hisse ka dhaan

भारत कथा माला

उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं

वसंतमल्लिका, इस वर्ष की घोषित की जाती है…उद्घोषक ने 2 सेकेंड के लिए सांस रोक लिया, सबके दिल की धड़कन बढ़ रही थी फाइनल में प्रवेश कर गई उषा किरण पुरोहित ही सबके दिल की धड़कन बनेगी, लगभग तय था। 19 वर्षीय उषाकिरण पर खुदा का नूर बरसता था। विज्ञान प्रथम वर्ष की छात्रा पढ़ने में साधारण थी पर वक्तृत्व और तबला वादन में उसने खूब महारत हासिल की थी। कुछ उसकी स्वयं की मेहनत थी और कुछ उसके माता-पिता का आशीर्वाद। पिताजी तबला वादक के रूप में अक्सर कॉलेज एवं अनेक कार्यक्रमों में जाते रहते थे घर में वातावरण सुखमय था। तीन पीढ़ियों के बाद इस पीढ़ी को पुत्रियों का सुख प्राप्त हुआ था। पिता मणिशंकर पुरोहित के पुरखे भजन कीर्तनया थे जो गांव-गांव घूमकर भक्तिमय पदों को गाते और उसकी व्याख्या कर जनमानस को जागृत करते। नर्मदा मैया की कृपा से घर में अन्न-धन की कमी न थी। खेतों का अनाज अपनी पूरी उन्नति पर था। नवरात्रि आती उससे पहले ही गुजरात का केवडिया गांव गौरी व्रत की खनखनाहट से गूंज उठता था। नन्ही प्यारी दुलारी बालाएं अपनी मां की गोद में बैठी इधर-उधर एक दूसरे का श्रृंगार देखते, पूजा करती थी पंडित जी मंदिर में सबके लिए कितने ही आसन लगाते कम ही पड़ जाते थे। नरेंद्र भाई खूब हंसते थे…

साहेब. देवा ने बोलो बाजठ, (लकडी की चौकी जिस पर रखकर भोजन इत्यादि करते हैं) बहू कम पड़े थे हो भाई, हनुमान जी थी बोलो, काल थी मंदिर मोटू करी नाखो। कल से मंदिर को थोड़ा बड़ा कर देना।

पंडित कमल कांत अपनी चुटिया सहलाते हुए चढ़ावा देख-देखकर अति प्रसन्न होते। सुबह 7:00 बजे स्कूल पहुंचने वाली बेटियों को देर हो जाती। कान्वेंट स्कूल की प्रिंसिपल ऐनक ऊपर नीचे करती हुई नकली गुस्सा दिखाती- गर्ल्स, नो, यू कैन नाट एंटर इन द स्कूल

प्लीज सिस्टर, सम पूजा, रिचुअल्स आर देयर!!!!!!

सुहानी बोलती तो निराली उसे पीछे से पेन चुभोती- एने शुं खबर पड़शे?

आ लोको तो दररोज फीस, चिकन बधा खाए छे

गौरी व्रत अमारा माटे चाले छे।

उसी क्षण पीछे से हालो हालो …

मगन काका डंडा घुमाते हुए हांक लगाता

छोकरियों आवी जाओ। आजे तो सिस्टर ने माफी दई दीधुं काल टी टाइम पर आवजो…इधर गौरी व्रत बीता ही था कि दशा माँ का 10 दिन का व्रत उपवास चुनरी और सूखे मेवे से पूजी जाती हुई ऊंट पर सवार पूरे गुजरात में अपने अस्तित्व के साथ विराजमान रहती है। संपूर्ण भारत में देवी मां की महिमा का गुणगान भक्त अपने-अपने तरीके से करता ही है, पर हर राज्य की भी अपनी महिमा है। बरसों पहले जब हम यहां के बाशिंदे बने तब से यह नाम भी हमारे जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गई।

उषा किरण अपनी छोटी बहन मीनाक्षी को स्कूल छोड़ने जाती और फिर तबला क्लास अटेंड करके घर आती और सारा दिन कॉलेज और लैब। छोटी बहन मीनाक्षी पढ़ने में चतुर। व्यापार में उसे बहुत रूचि थी। अपने चाचा के साथ मिलकर आगे कोई नया बिजनेस शुरू करने की योजना बनाई थी। पर उषा किरण को विज्ञान बहुत ही आकर्षित करता था।

दोस्तों ने जिद करके फॉर्म भरवा दिया था। किरण, हमने सारे कॉलम भर दिए हैं, तुझे बस फोटो ही लगाना है और जल्दी से अपलोड करना है। देवांशु खुशी के मारे कूद रहा था। विशाखा खीजकर बोल उठी थी, ‘कोई मुझे भी तो एक बार कहे…अरे! नहीं यार रहने दे, एक सवाल का जवाब क्लास में दिया नहीं जाता। मनोज के साथ सभी हंस पड़े थे। परवेज पास बैठा बस सब को देखकर मुस्कुराता रहता था। खुद विशाखा भी अपने ऊपर हंस पड़ी- हाँ मुझे तो रटने में ही मजा आता है पर पता नहीं मैं समझाने में या जवाब देने में हाजिर जवाब नहीं हूँ…। बाबा जी याद आ जाते हैं। निखिल ने हंसते हुए बात पूरी की थी। तभी सामने से किरण आती हुई दिखाई दी। सब ने उत्साह से उसका स्वागत किया।

उस खूबसूरत सुनहरी सांझ में लाइव कार्यक्रम चल रहा था। जिले भर से 18 कॉलेज के विद्यार्थियों ने हिस्सा लिया था। सवाल सिर्फ शारीरिक सुंदरता का ही नहीं। वर्तमान के बहुत सारी घटनाओं की जानकारी, इतिहास, कुछ साहित्य सब कुछ मिला-जुला कर छोटा-छोटी-सी इनसाइक्लोपीडिया चाहिए होती है वहाँ पैनल पर बैठे जजों को। ऐसे में स्पॉन्सरशिप की भला कभी कमी हुई है जाने कहाँ से लाखों रुपए का अनुदान मिल जाता है।

रैंप पर तीन लड़कियों का आज निर्णय होना था तृतीय स्थान पर रही रागिनी मल्होत्रा। महंत कुलकर्णी आश्रम की विद्यार्थी- रागिनी प्रसन्न थी इधर अनीता रंगनाथन और किरण चांदनानी बचे थे प्रश्न भी कैसा पूछा था प्रोफेसर किशोर ने। चांद, चांदनी के अलावा उन्हें कुछ भी ना सूझता था कॉलेज में बच्चों ने उनका यही नाम रख छोड़ा था। जाने कितनी कविताएं कॉलेज की फिजा में तैरती रहती थीं। उद्घोषणा हुई, अब मैं प्रोफेसर किशोर से अनुरोध करूंगा कि वे प्रतियोगी किरण चंदनानी के लिए प्रश्न उपस्थित करें। हॉल में सन्नाटा छा गया था। उस चांद के आभा मंडल से एक प्रश्न प्रोफेसर किशोर के द्वारा उपस्थित हुआ।।

किरण, चंद्रमा अगर धरती पर आकर तुम्हें अपना हमसफर बनाना चाहे तो क्या करोगी? सन्नाटा छा गया था, ‘इन्हें पैनल पर रखा किसने?’

विशाखा भुनभुनाई।

‘इनसे बढ़कर कोई साहित्यकार जिंदा भी तो नहीं है ना विशाखा जी,

अगली बार हम आपका ही नाम दे देंगे। परवेज ने मुंह खोला था। किरण रैम्प पर बड़े ही आत्मविश्वास के साथ उपस्थित थे। कुछ ही पलों में उत्तर मिला- चंद्रमा को तो जीवन ऊर्जा कहीं और से मिलती है हम धरती के लोग हैं अपने हिस्से का धान हमें खुद ही कमाना होता है।’

लाइव टेलीकास्ट में अनगिनत लोगों ने प्रश्न भी सुना और उत्तर भी, दोस्त यारों ने सुना माता-पिता ने सुना, कॉलेज के और शहर के देश के लोगों ने भी सुना। सभी ने उसकी गुणवत्ता भरी उत्तर की प्रशंसा की। लाजवाब कर दिया था श्री राम कृष्णा महाविद्यालय की छात्रा ने, वहीं कोने की सीट में बैठा हर्षवर्धन भास्कर खुशी के आंसू पोंछ रहा था। भारत के पानीपत इलाके से आया हुए पुरातत्त्व विभाग के अधिकारी का पोता जिसके रग-रग में झेलम नदी के धवल धार की उज्जवल तरंगे प्रवाहित होती थी जिसका बचपन ही मातृभूमि की रक्षा हेतु जानिसार करने वाले राजाओं की शौर्य गाथा के बीच बीता। गुरु चाणक्य का मान, चुनौती, न्याय, रक्षा, राजनीति सभी का वह कायल था आज के वैज्ञानिक युग में भी उन मानदंडों पर चलकर हम पूरी धरती पर सफलता के हकदार बन सकते हैं, तो क्या हमारे अंदर इतनी क्षमता और धैर्य, त्याग, बलिदान की भावना है? खुद से ही प्रश्न करता रहता!!! पिता और दादा से मिली विरासत से संपन्न युवक बुद्धिमत्ता और सौंदर्य से भरपूर उषाकिरण से प्रभावित था। अजीब से कपड़ों में उसे किसी ने नहीं देखा था। उस दिन तो बहत ही संदर घटना घट गई. भास्कर अपने मित्रों को, कैंटीन में बैठा विश्व विजेता का सपना देखने वाला सिकंदर की योजना के बारे में कुछ बता रहा था तभी जैसे तबले की ध्वनि पर ठुमकती हुई आवाज सुनाई दी अरे सारे युवक!!!! यहां, तो हम युवतियां रास गरबा क्या करेंगे? लड़के थोड़ी शरारत से उसकी ओर हाथ बढ़ाकर लपके थे,

तबला सर आ गए हैं क्या?

हाँ और वह हम सब का मजाक भी बना रहे है…। आजकल के तुम युवक, देवी माँ के गीत क्या जानो?

ऐसा ना बोल, सुरेंद्र ने बीच में टोका,

तो पता है ना 4 दिन की छुट्टी होने वाली है नवरात्रि का पवित्र त्यौहार है। देखो मैं तो रोज ही गरबा घूमने शाम को जाती हूँ। कोई जी कैसे सकता है गरबा घूमे बिना।

चाल हवे, शरद पूनम नी रात मा हालो धीरे-धीरे 4, 5 लड़के एक दूसरे के कंधे में हाथ डाल, भास्कर को भी खींच ले गए थे। इतिहास का छात्र, पढ़ाई पूरी करके देश हेतु कार्य करने थे, डॉक्टर चंद्र कृष्ण भास्कर का यह सपना था जो वह अपने पोते की आंखों में बसा गए थे।

सौंदर्य और बुद्धिमत्ता का अनोखा संगम किसके हृदय को अनुकंपित ना करेगा? जाने कितनी देर तक तालियों से उसका समर्थन होता रहा। किरण विजेता बनी पहली बार आयोजन इस शहर में किया गया था। ताज पहनाने आई थी शहर की आई.ए.एस. अधिकारी अनुराधा श्रीवास्तव। दसियों कैमरों की लाइट एक साथ चमकी थी। किरण को अपने सौंदर्य का भान था पर इस तरह उसे सम्मान प्राप्त होगा, उसकी वाकपटुता इस मुकाम पर पहुंचा देगी, सपने में भी ना सोचा था, अनुराधा जी का वक्तव्य खत्म हुआ धीरे से उन्होंने किरण से कहा, ‘संभलना! इतनी छोटी उम्र में बड़ी सफलता नींद और चैन छीन लेती है आगे बढ़ने का सपना बहुत तेज दिखाती है, लेकिन राहें फिसलन भरी होती हैं। उषा किरण ने मुस्कुराकर उनकी बातों को स्वीकार किया। धन्यवाद कहा ही था कि हर्षवर्धन आ पहुंचा था।

एक फूल ही ला देते…

हाँ मैं भी सोच रहा था… असल में,

हाँ, हाँ तुम तो आचार्य चाणक्य के दीवाने जो एक जनेऊ और धोती में जिंदा रह कर सिर्फ अपने देश ही नहीं, अखंड भारत की वर्चस्वता बनाए रखने की अकूत क्षमता रखता हो। भरी भीड़ में दोनों खिलखिला कर हंस पड़े थे। गाड़ियों में भर-भर कर सभी विद्यार्थी कॉलेज पहुंचे थे। प्रोफेसर नीलकांति अय्यर पहले से ही गेट पर उपस्थित थे उन्होंने आशीर्वाद दिया और विद्यार्थियों को कॉलेज के चित्र कला भवन के प्रांगण में चाय नाश्ते के लिए भी सभी को आमंत्रित किया। घर से कई बार मम्मी-पापा का फोन आ चुका था। शाम गहरा रही थी सबने एक साथ वापस जाने का निश्चय किया। पहले किरण को घर पहुंचा कर फिर घर वापस जाने का योजना बनाया। नुक्कड़ पर पहुंचते ही गिरीश अपने मोटरसाइकिल पर दिखा। पिछले 3 सालों से फेल हो रहा लड़का दादागिरी में मस्त रहता। किसी मंत्री का नहीं। किसी बड़े बाप का बिगडैल नहीं बल्कि एक साधारण से मेहनती और श्रमिक कांट्रेक्टर का बेटा था माता पिता तो बिल्कुल शांत प्रकृति के इंसान थे लेकिन गिरीश जैसे जन्मों का कर्ज वसूलने उनके घर पैदा हुआ था।

‘अच्छा क… क… क… क… किरण- अब हम सब निकलते हैं’ भास्कर ने ऐसी आशिकी के अंदाज में बोला कि सभी दोस्त आंखों में इशारा करते हुए वह बोल पड़े ओहो…ओ…ओ…ओ…ओ…..

निखिल तो पूरे बुजुर्गों के अंदाज में खुश रहो, कहते हुए पलटा। खुदा हाफिज परवेज यह शर्माना बंद करो। आजकल तो हम लड़कियां भी नहीं इतना शर्माती। यह पांच-छ युवा थे जो कि अपने शहर में हर रविवार। जीवन का है पहला प्यार, साइकिल को न छोड़ो यार!!!! ऐसे गीत बनाकर गाते थे। यह खुदा के बंदे जहां जाते कोशिश करते साइकिल का इस्तेमाल करें। शहर में इनकी बड़ी चर्चा होती थी कई अध्यापक, डॉ. और कुछ युवा व्यापारी वर्ग भी इनसे जुड़ा हुआ था यह निश्चित दूरी का चक्कर लगाते थे अगर कहीं किसी ने अपने मन से फंड रेज में इनका साथ दिया तो यह कभी नुक्कड़ नाटक खेलते थे और इन्हें पर्चियां छपवानी होती थी। छोटी-छोटी मीटिंग भी यह लोग करते थे।

सभी लोग कोई 15-20 गज की दूरी पर ही गए होंगे कि तभी बहुत तेज चीख सुनाई दी। दोस्तों ने एक-दूसरे का मुंह देखा और गिरीश दूर हो जाओ, यह क्या किया? बहुत तेज से चीखने की आवाज सुनाई दे रही थी सब दोस्त एक साथ चिल्लाए… गिरीश!!! पर राक्षसी प्रवृत्ति अपना काम करके निकल गई थी नुक्कड़ से बाएं ओर मुड़कर पहले एक छोटी साइकिल रिपेयर की दुकान थी और वहीं से मनमोहन कॉलोनी शुरू होती थी। सड़क के दोनों ओर लैंप जल रहे थे पर गली के अंदर रोशनी की विशेष व्यवस्था ना थी। किरण … सभी जोर से चिल्लाते हुए दौड़े। अपराधी तो फरार हो चुका था। करता भी क्या? कायर! किरण से मोहब्बत का दम भरने वाला वह मानसिक रोगी उषा किरण को जबरदस्ती अपनी और खींच रहा था अपनी धुन में गुनगुनाती हुई सामने घर की ओर चली जा रही थी अचानक हुए अघात से एकदम चौंक गई हट्ठा-कट्ठा 25 बरस का हरीश उसे घसीट कर अपनी मोटर साइकिल की ओर ले जाना चाह रहा था उसने हिम्मत नहीं हारी और हाथ छुड़ाकर उसे जोरदार लात मारी थी। बहुत तेज चीखा था वह, लेकिन एक तो उषा की ड्रेस आज अलग थी और हाथ में फूलों का गुलदस्ता भी था अपना थोड़ा सा संतुलन खो बैठी और पैर फिसलने के कारण मोटरसाइकिल से उसका सिर टकरा गया था आंखों के पास से रक्त बह रहा था।

परवेज, जल्दी कर गाड़ी ले आ। हक्का-बक्का सा परवेज जैसे बेहोश होते-होते बचा था, आं, हां हां कहता हुआ वह पिछली गली में भागा। नसीब से उसके अब्बा गाड़ी पार्किंग करते हुए दिखे, शहर के मुख्य चौराहे पर दाहिने ओर कभी एक छोटी-सी साइकिल की दुकान आज दुतल्ले शोरूम के मालिक हैं, आसिफ साइकिल वाले के नाम से जाने जाते है। दाम वाजिब होने के कारण अपना शहर तो शहर आसपास के गांव वाले भी उन पर बेहद भरोसा करते हैं। अगले 15 मिनट में सारे लोग अस्पताल में थे। किरण कराह रही थी, आंखें बच गई थी, चेहरा और कंधा बेहद जख्मी हो गया था। पुलिस में केस दर्ज किया गया अपराधी गिरीश कनौजिया। इधर अस्पताल में भी हड़कंप मचा था। अरे वही लड़की जिसे थोड़ी देर पहले टीवी पर देखा था। लोगों में बहुत ही आक्रोश था अस्पताल के बाहर भारी भीड़ इकट्ठी हो गई थी। अपराधी को दंड मिले। जीवन कहीं भी सुरक्षित ही नहीं रहा ऐसे शैतानों को तो वही दंड मिले जो उसने अपराध किया। स्वभाव से शांत और सेवा भाव में लगे रहने वाले कमलेश जी के लिए यह खबर असहनीय था पहले ही वे गिरीश की बातों से बहुत परेशान थे। छोटी बहन और मां बेहद शर्मिंदा थी कई दिनों तक यह लोग घर से बाहर ही नहीं निकल पाए। गिरीश को पुलिस ने हिरासत में ले लिया मां-बाप का हृदय चित्कार कर रहा था। क्या इसी दिन की खातिर यह बेटा हमारी जिंदगी में आया? वे लोग गिरीश के नन्हे बचपन के दिनों को याद कर रहे थे कितना प्यारा बच्चा था स्कूल जाना, आना, खेलना कभी भी यह अपने घर में तकलीफ का कारण ही ना बना पर 14 वर्ष की उम्र में गिरीश अजीब लड़कों की संगत में आ गया और वह जो बोली, भाषा, व्यवहार और पिता की सफलता ऐसे उसके सिर चढकर बोली थी कि सब कुछ हाथ से ही निकल गया। मां हर वक्त बीमार रहने लगी थी गिरीश के आवारेपने ने घर के चमकते सितारे के नाम को जैसे ग्रहण लगा दिया था। केस चला। आरोप सिद्ध हो चुके थे कहीं बचाव का कोई रास्ता ही नहीं था।

इन 20-22 दिनों का भोग जो किरण ने अपने जीवन में महसूस किया था उसके माता-पिता और छोटी बहन मीना ने भी उसे जिया था। लोगों की टेढ़ी सहानुभूति, व्यंग्य भरी निगाहें इंसान को चीर देती हैं। क्या हमारे समाज में अगर किसी भी क्षेत्र में कोई आगे बढ़ रहा है तो उसका पुरस्कार दंड होता है? आंखों की पट्टी खुली तो किरण खुद को देखकर चीख उठी ओह यह क्या? पत्रकारों और टीवी चौनल को नया मसाला मिला। बहुत सारे फोन कॉल्स अस्पताल में आ रहे थे किरण को छुट्टी कब मिल रही है? निश्चित दिन से 1 दिन पहले ही किरण अपने परिवार जनों के साथ घर वापस आ चुकी थी किसी से भी उसको मिलना नहीं था। उस रात दोनों बहनें अपने कमरे में खूब रोई थीं। मौन भरी तरलता थी जो 2 जोड़ी नेत्रों से प्रवाहित हो रही थी मीना धीरे-धीरे अपनी दीदी का सिर सहला रही थी। कई दिनों बाद स्नेह स्पर्श ने अपना काम बहुत ही गहराई से किया। उषा किरण को अच्छी नींद में सुलाया। सुबह नींद खुली तो दिन निकल चुका था जैसे ही पलंग से उतरी नजर सामने की दीवार पर चली गई- ‘प्यारी दीदी की मुस्कुराहट पर जान है निसार।’ बड़ा-सा पोस्टर लगा हुआ था। इस जगह तो ड्रेसिंग टेबल था उसे हटा दिया। यह मीना की मीनाकारी हर जगह चलती रहती है। तभी चाय के लिए मां ने आवाज दिया पर उसने तुरंत इनकार कर दिया और पिताजी की आवाज सुनाई दी -ठीक है हम भी नहीं लेते चाय। सुबह से तुम्हारी ही राह देख रहे हैं बेटी, जल्दी नीचे आ जाओ। पापा आज घर पर ही हैं कॉलेज नहीं गए। आज रविवार है क्या? वह बुदबुदाई इतने दिनों से ना तो उसने सुबह का सूरज देखा और ना ही रात का चांद। क्या मेरे जीवन में पूरा अंधकार भर गया है? मेरे पैर अब क्या कभी सीधे नहीं चल पाएंगे अपने पापा के तबले की थाप पर क्या मैं गणपति स्तुति का नृत्य प्रस्तुत नहीं कर पाऊंगी? क्या मैं कभी भी अब अपना काम नहीं कर पाऊंगी? तभी दिल की गहराइयों से दूसरी आवाज ने हांक लगाई

धरा के गर्भ में बोया गया बीज अपनी उर्जा से बल से धरती पर जन्मता है और घना वृक्ष बनकर कितने ही पक्षियों का बसेरा, अनगिनत पक्षियों को छाया प्रदान कर अनजान लोगों की आजीविका का साधन बन जाता है। यह हृदय के उस कोने से आवाज आ रही थी जहां पर भास्कर रहता था। उसने कभी खुलकर के भी तो नहीं कहा। ठीक है कोई बात नहीं। चलो टीवी देख लेते हैं वहां तो तबले की जोड़ी विराजमान थी जैसे उसे न्योता दे रही हो यह सब क्या हो रहा है? मेरे कमरे में इतनी उथल-पुथल। यह मीना बहुत सयानी हो गई है। अनजाने में ही उसके कदम तबले की ओर बढ़ गए। बड़ी मुश्किल से कुर्सी पर बैठी तबला भी तो पिताजी ने एक ऊंची चौकी पर रखा था, अपने गुरु पिता को याद किया और यंत्रवत् तबले पर उसकी उंगलियां ऐसे थिरकने लगी मानो कोई है जो उसे अनजाने में ही पथ प्रदर्शन कर रहा है। थोड़ी ही देर में संगीत की लय उसके रस, ब्रह्मांड से एकाकार होने लगे। जाने कहां से उसे कुछ और कई तबलों की थाप सुनाई देने लगी। करीब 15 से 20 मिनट के बाद उसकी आंखें खुली तो उसे होश आया, देखा कमरे में मम्मी-पापा मीना के साथ भास्कर भी बैठा हुआ है। पिता ने आगे बढ़कर बेटी को गले लगा लिया। किरण! भास्कर तुमसे कुछ कहना चाहता है हम सब नीचे तुम दोनों की राह देख रहे हैं।

भास्कर कुछ दूरी पर बैठा था और धीरे-धीरे बोल रहा था- मैं तुम्हारी तरह अच्छा वक्ता नहीं हूं। जाने क्यों किरण को भास्कर की इन बातों पर बहुत हंसी आ गई थी और भास्कर की आंखें तरल हो उठी थीं। सूरज की किरणों से धरती, समुद्र, पहाड़, नदी, मानव, पशु-पक्षी वृक्ष, फल, फूल सब में रस संचरण होता है जिसके हिस्से में जितने धूप आनी होती है, आती है। हम अपने हिस्से की धप क्यों छोडे? चलो साथ मिलकर अपने हिस्से का धन कमाते हैं। भास्कर सदा से ही किरण के बिना अधूरा है। अपने किशोर सर की कविता याद कुछ याद है ना

चांद बोले मौन भाषा चांदनी भी मौन है

सूरज को भी फुर्सत नहीं फिर बोलता यह कौन है

हम तुम भी जिएं मौन में और मौन का सम्मान पाएं भास्कर और किरण बन सारी धरा पर बिखर जाएं।

भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’