Hundred Dates
Hundred Dates

Hindi Love Story: “यस मैडम! क्या हाल चाल?” मैं उसके साथ था, जब मेरी किसी दोस्त का कॉल आया।

आमतौर पर जब किसी के साथ इतना क़ीमती वक़्त बिता रहा हूँ तो मुझे फोन से नफ़रत है। ख़ुद से नफ़रत तो यूँ तब भी तजुर्बे में है, जब फ़ुर्सत के वक़्त स्क्रीन से उलझते-जूझते रहने में वक़्त क़त्ल किया है। हाल-चाल और बाद में बात करने की बात कह, मैंने दो मिनट में फोन रखा और उसके चेहरे की ओर नज़रें चली गईं।

उसने जलती हुई आँखों से देखते हुए पूछा- “कौन थी?”

“मेरी डार्लिंग।” मैंने मुस्काते हुए उसे छेड़ने की गरज़ से कहा।

“ओ…तो मैं कौन हूँ? और मेरे साथ क्यूँ आए हो, उसी को ले आते।” उसका यह वाला चेहरा भी भरपूर इश्क़ सुलगाता है।

मैंने नज़र मारी कि वह मज़ाक ज़्यादा बर्दाश्त करने के मूड में बिल्कुल नहीं है। मैंने कहा- “अरे, बचपन की दोस्त है यार, सृष्टि।”

“वैरी गुड। तुमने कभी बताया नहीं?”

“हाँ, ऐसी कोई बात निकली नहीं होगी कभी।”

“अब तो निकल गई, अब बता दो। और उस सब के बारे में भी क्यों नहीं बता देते जिनकी बात अब तक कभी ईईई भी निकली नहीं है।” उसकी ना ऐतबारी से खौलता चेहरा, मेरी धड़कनों का काल हो सकता है।

“दूसरों की बातें फिर कभी कर लेंगे डियर। अभी का टाइम तो ख़ुद की बातें और मोहब्बत करने का है।” मैंने फिज़ा में इश्क़ घोलने की पूरी कोशिश की।

“अपनी क्या बात बाकी है, जितने लोगों को बाद में बात करने का टाइम देकर रखा है, उनसे ही बात करो ना। मुझसे तो फोन पर ढंग से बात किए कितना टाइम हो गया, तुम्हें याद भी नहीं होगा।”

“ओके…तुम्हें घर छोड़ दूँ?” कभी-कभी अपने गुस्से को काबू में रखने की कोशिश भी मुझसे हो नहीं पाती। एक बात की सफाई कितनी बार देनी होगी मुझे।

“कोई ज़रूरत नहीं, यहीं उतार दो। मैं टैक्सी ले लेती हूँ।” उसने अब तक मेरी ओर ठीक से देखा हो, ऐसा मुझे नहीं लगता।

“ओके।” मैंने कार किनारे खड़ी की, वह उतरने ही लगी कि, मैंने उसे वापस सीट पर खींच लिया।

“कोई ज़बरदस्ती है क्या?” नखरीली परी के पंख और भी मज़बूत हुए।

“कोई ज़बरदस्ती नहीं डियर। थोड़ा मज़ा ले लेने दो मुझे, तब तक तुम्हारा घर भी आ जाएगा।” यह भी तो जानता हूँ कि गुस्सा इस पर करना तो प्यार भी तो इसी से करना है।

“मेरा मूड बहुत ख़राब है, उलझो मत मेरे से आज।” उसने बैठते, लेकिन मेरा हाथ हटाते हुए कहा।

“तो उलझने के लिए क्या किसी और को ढूंढू?”

“नहीं, प्यार करने के लिए ढूँढ लो ना। उलझने के लिए तो मैं हूँ ही…” उसके लफ़्ज़ों और लहजे से मैं समझ चुका था कि वह अब मान ही जाने वाली है।

“ओके,खोजूंगा। जब तक कोई नहीं मिलती, तब तक तो तुमसे ही काम चलाना होगा ना…” कहते हुए मैंने उसे ज़बरदस्ती दबोच कर उसके होठों को चूस डाला।

वह झूठी ताक़त से ख़ुद को छुड़ाने की फ़र्ज़ी ज़ोर-आज़माइश करते हुए, गुस्सा दिखाए जाने की चेष्टा करती रही।