कहने को तो वह शासक था, लेकिन वह अपने को अशक्त, परतंत्र और पराजित महसूस करता था। एक दिन वह अपनी चिंताओं से पीछा छुड़ाने के लिए बहुत दूर एक जंगल में निकल पड़ा। एक झरने के पास वृक्षों की छाया तले एक युवा चरवाहा बांसुरी बजा रहा था। सम्राट ने चरवाहे से कहा, “तुम तो ऐसे आनंदित हो जैसे तुम्हें कोई साम्राज्य मिल गया है।” चरवाहे ने कहा, “आप ठीक कहते हैं। मैं सम्राट ही तो हूँ।”
राजा ने आश्चर्य से पूछा, “तुम्हारे पास ऐसा क्या है, जिसके बल पर तुम अपने को सम्राट कहते हो?”
चरवाहा मुस्कुराया और बोला, “सौंदर्य को देखने के लिए मेरे पास आंखें हैं। प्रेम करने के लिए मेरे पास हृदय है। सूर्य जितना प्रकाश मुझे देता है उससे ज्यादा सम्राट को नहीं देता। चंद्रमा जितनी चांदनी मुझ पर बरसाता है उससे ज़्यादा सम्राट पर नहीं बरसाता। सुंदर फूल जितने सम्राट के लिए िखलते हैं उतने ही मेरे लिए भी खिलते हैं। सम्राट पेट भर खाता है और तन भर पहनता है, मैं भी वही करता हूँ। फिर सम्राट के पास ऐसा क्या है जो मेरे पास नहीं है। कई मामलों में एक सम्राट से ज्यादा ही मेरे पास है जैसे मेरी स्वतंत्रता। मैं जब चाहता हूँ संगीत का सुख लेता हूँ, जब चाहता हूँ सो जाता हूँ। जबकि एक सम्राट चाह कर भी ऐसा नहीं कर सकता।
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