ईसा से 326 वर्ष पूर्व सम्राट सिकन्दर सिन्धु नदी के किनारे अपनी विशाल सेना के साथ डेरा डाले हुए पड़ा था। उसने दिगम्बर मुनियों की त्याग तपस्या की प्रशंसा सुन रखी थी। इसलिए उसे दिगम्बर मुनियों को देखने की बड़ी तीव्र उत्कण्ठा थी। उसने अपने मंत्री ओनेसीक्रेट्स को आदेश दिया तुम जाओ और एक जिम्नोसाफिस्ट दि। जैन मुनि को आदर सहित लिवा लाओ। ओनेसीक्रेट्स ने जंगल में एक-एक दिगम्बर मुनि को देखकर कहा मुनिवर आपको बधाई है आपको विश्व विजयी ईश्वर पुत्र सम्राट सिकन्दर ने अपने पास बुलाया है। वह आपको बहुत इनाम देगा और यदि आप उनके पास नहीं चलेंगे तो वह आपका सिर काट लेगा।
आचार्य दोलामस धृतिसेन ने कहा तुम्हारा सम्राट जो पारितोषिक देना चाहता है वे सब पदार्थ मेरे लिये धूल मिट्टी हैं मैं ऐसी कोई भी वस्तु अपने पास नहीं रखता, जिसकी रक्षा का मुझे विकल्प करना पड़े। मेरा पृथ्वी बिछौना है और आकाश ओढ़ना है। रत्नत्रय मेरा श्रृंगार है। तुम्हारा सम्राट यह सिर काट सकता है मेरी आत्मा को और मेरे धर्म को नहीं काट सकता है। यह सिर तो अचेतन पर वस्तु है, उसके रहने जाने से मेरा क्या लाभ हानि है? यह ध्यान रखना सिकन्दर न जिसकी को पाल सकता है और न किसी को मार सकता है। क्योंकि मरना जीना आयुकर्म के आधीन है! हाँ, मारने पालने का अहंकार अवश्य कर रहा है वह इतनी दीन हीन पतित अवस्था में पहुँच गया है कि मुझे उस पर दया आती है।
उससे कह देना तुम्हारी किसी वस्तु की मुझे आवश्यकता नहीं है। इसलिए मुझे सिकन्दर के पास जाने की भी कोई आवश्यकता नहीं है। ओनेसीक्रेट्स ने वापस जाकर सिकन्दर से यह सब चर्चा सुनाई। सिकन्दर दिगम्बर मुनि की इतनी निर्भीकता सुनकर बहुत प्रभावित हुआ। उसने स्वयं जाकर आचार्य श्री के दर्शन किए और उनसे अपने यूनान चलने की प्रार्थना की। आचार्यश्री ने तो चलने से इंकार कर दिया किन्तु अपने शिष्य आनन्द मुनि को यूनान जाने की स्वीकृति दे दी। आनंद मुनि की शिक्षा से वह इतना प्रभावित हुआ था कि मरने के पूर्व कह दिया था।
बाद मरने के कफन से बाहर मेरे दो हाथ हों। देखले ता खल्क मुझको साथ में क्या ले चला?
ये कहानी ‘ अनमोल प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं–Anmol Prerak Prasang(अनमोल प्रेरक प्रसंग)
