Stomach Worms
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Stomach Worms: साफ-सफाई का ध्यान न रखने और खान-पान की गलत आदतों के कारण हम अक्सर कई बीमारियों का शिकार हो जाते हैं। इनमें से एक है- वार्म इंफेक्शन। यह इंफेक्शन विभिन्न तरह के हेल्मिन्स या वार्म से होता है जो वास्तव में पैरासाइट या परजीवी होते हैं। ये पैरासाइट हमारे शरीर में दूषित पानी पीने या संक्रमित भोजन के जरिये तो पहुंचते हैं ही। खुले मैदान में हमारे द्वारा या जानवरों के शौचादि करने से प्रदूषित मिट्टी में कई तरह के वार्म पनपते हैं। ऐसी मिट्टी में जाने पर ये वार्म त्वचा के माध्यम से हमारे शरीर में पहुंच जाते हैं। जो हमारे आहार से पोषण पाकर बहुत तेजी से मल्टीपल होते हैं और समुचित इलाज न होने पर सालोंसाल बने रहते हैं।

एक्टिरेसिस वार्म

छोटे बच्चे ज्यादा शिकार होते हैं। ये वार्म जमीन में पड़ा होता है। फल-सब्जी बिना धोए खाने या फिर खाना खाने से पहले हाथ साबुन से न धोने पर वार्म के लार्वा हमारे शरीर में पहुंच जाते हैं। आंतो में मल्टीपल होकर शरीर के दूसरे अंगों को भी प्रभावित करते हैं। वार्म जब डिवाइड होता है तो कई बार मरीज के लिए असहनीय हो जाता है। कई बार वार्म बहुत ज्यादा हो जाते हैं, नाक या मुंह से बाहर आना शुरू हो जाते हैं।

लक्षण: पेट में हल्का दर्द, उल्टी, लूज मोशन, पेट फूलना, डायरिया, बुखार आना, खांसी-जुकाम, सांस लेने में तकलीफ होना, शरीर में रैशेज होना, भूख कम होना, वजन कम होना, जैसे लक्षण देखे जाते हैं।

हुक वार्म

दुनिया भर में एनीमिया बीमारी या आयरन की कमी का मुख्य कारण है। शरीर में यह वार्म मुंह के अलावा चोट लगे नंगे पैरो से चलने पर हुक वार्म का लार्वा स्किन से शरीर में पहुंच जाता है। फेफड़ों से होता हुआ धीरे-धीरे छोटी आंत की दीवारों पर चिपक जाता है जहां यह खून चूसता रहता है।

लक्षण: पेट में दर्द, भूख न लगना, हीमोग्लोबिन की कमी होने से एनीमिया होना, वजन कम होना, खांसी होना, सांस फूलना, जैसे श्वास संबंधी समस्याएं होने लगती हैं, शरीर में इचिंग, रैशेज, दाने वगैरह होना।

एंट्रोबियासिस वर्मीकुलरिस, पिनवार्म या थ्रैड वार्म

पिनवार्म मल से मुंह में फैलते हैं और ज्यादातर कोलोन और रेक्टम में रहते हैं। रात में मादा वार्म एनस या मलद्वार के आसपास की स्किन पर अंडे देने बाहर आते हैं। रात को सोते समय 6 साल से छोटे बच्चे अपने एनस को खुजलाते हैं, तो ये लार्वा उनकी उंगलियों में चिपक जाते हैं। गंदे हाथ से खाना खाने से इनकी मल में मौजूद वार्म दुबारा मुंह में चले जाते है। उनकी साइकिल घूमती रहती है।

लक्षण: मरीज को पेट दर्द, रात को नींद नहीं आती, बैचेनी रहती है, एनस एरिया में इचिंग-खुजली रहती है, जैसी समस्याएं होती हैं, उल्टी होना, कभी-कभी थ्रैड वार्म इंफेक्शन भी हो जाता है। इससे बच्चा अपने गुदा (मल द्वार) में खुजली करता रहता है।

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टेप वार्म

4 तरह के होते हैं- बीफ, पोर्क, फिश और ड्वार्फ या बौना टेपवार्म। गाय का मांस खाने वाले लोग बीफ टेप वार्म का शिकार होते हैं। यह तेनिआ सेगिनेटा नाम के वार्म से होता है। पोर्क टेप वार्म तेनिआ सोलियम वार्म से होता है। ये वार्म सफेद रिबन की तरह 50 फुट लंबे भी हो सकते हैं। दूषित पानी में रहने वाली मछली में डिफिल्लोबोथ्रियम लेटम वार्म होता है। बौना टेप वार्म हिमेनोलेपिस नाना वार्म से फैलता है, जो काफी छोटा होता है। इनके लार्वा शरीर में पहुंच कर मल्टीपल होते हैं और आंत की दीवार पर चिपक जाते हैं।
ब्लड फ्लो के साथ ये वार्म दूसरे अंगों तक पहुंच कर द्रव से भरे सिस्ट बनाते हैं जिसे सिस्टिसर्कोसिस कहा जाता है। ये सिस्ट फटने पर जानलेवा भी हो सकते हैं। इनमें से कुछ नजर में बदलाव लाते हैं, त्वचा में गांठ बनकर उभरते हैं। दिमाग में लार्वा के जाने से न्यूरो-सिस्टिसर्कोसिस बीमारी होती है। इसमें मिरगी का दौरा, सिरदर्द, उल्टी आदि हो सकते हैं। टेपवार्म से हाइडेटिड रोग भी हो सकता है। यह रोग एकिनोकोसिओसिस वार्म से होता है। वार्म मुंह से होते हुए लिवर या फेफडों में चले जाते हैं। इनमें जहरीले टॉक्सिन से भरा एक सिस्ट बनता है।

लक्षण: मरीज को खांसी, पेट दर्द, उल्टी, कमजोरी, दस्त, डायरिया, रैशेज होते हैं। टेपवार्म पाचन क्रिया में बाधा डालते हैं। आहार में मौजूद पोषक तत्वों के अवशोषण से रोकते हैं जिससे व्यक्ति का वजन कम हो जाता है।

ऑन्कोसेरिएसिस वॉल्वुलस वार्म

Stomach Worms
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यह इंफेक्शन से होने वाला अंधापन है। जो नदी किनारे पाई जाने वाली ब्लडफ्लाई मक्खी के काटने से होता है जिससे लार्वा व्यक्ति के शरीर में पहुंच जाता है। एगजामिन करने पर वार्म का माइक्रोफाइलेरिया स्किन में और आंख में दिख जाता है।

लक्षण: आंखों में लालिमा, इचिंग, सूजन, पिगमेंटेशन वगैरह होने लगती है, जिससे आंखों की रोशनी चली जाती है। इससे जांघों के बीच ग्रोइन सूजन आती है और उसमे इचिंग, दर्द रहता है।

लोआसिस

आंख को नुकसान पहुंचाने वाला एक दूसरा वार्म है। बंदर जैसे जानवरों के संपर्क में रहने वाले लोगों की स्किन से यह वार्म मरीज की स्किन में चला जाता है। इससे स्किन में सूजन आ जाती है, वार्म बार-बार आंख में घूमता रहता है। कई बार वार्म सीधा ब्रेन में चला जाता है और वहां पहुंच कर इंसेफेलाइटिस या दिमागी बुखार करता है। मल्टीपल होने पर ब्रेन में थोड़ी देर के लिए सूजन हो जाती है जिसे कालाबार सूजन कहते हैं। डायगनोज करने के लिए ब्लड में माइक्रोफाइलेरिया को चेक किया जाता है।

टॉक्सोकेरिएसिस राउंडवॉर्म

इनके लार्वा डॉग्स, कैट्स जैसे जानवरों के मल में पाए जाते हैं। मिट्टी में खेलने वाले बच्चों के हाथ-पैरों से मुंह में चले जाते हैं और मल्टीपल होकर ब्लड के माध्यम से पूरे शरीर में फैल जाते हैं। कई मामलों में जानवरों के हुकवार्म लार्वा स्किन के नीचे रेंगते हुए दिखाई देते हैं। इन्हें देख कर लगता है जैसे शरीर में दाने हो रहे हैं या रैशेज हों। ये ज्यादातर हाथ-पैरों में होते हैं। इस बीमारी को क्यूटेनिया लार्वा माइग्रेन क्रीपिंग इरप्शन कहा जाता है।

लक्षण: बुखार, कफ खांसी, जुकाम, स्पलीन या तिल्ली, लिवर, लंग्स में सूजन होना, पूरी बॉडी में इचिंग, दर्द होना जैसे लक्षण पाए जाते हैं।

उपचार

आमतौर पर अल्बेंडाजोल या मेबेंडाजोल की डोज 3 दिन तक सुबह-शाम दी जाती है। लोआसिस वार्म के लिए डायथाइलकार्बामाजीन साइट्रेट (डीईसी) और ऑन्कोसेरिएसिस वॉल्वुलस वार्म के लिए आइवरमेक्टिन मेडिसिन दी जाती है। 2 साल से छोटे बच्चों के लिए आधी टेबलेट दी जाती है। गर्भवती महिलाएं भी ले सकती हैं। एहतियातन बच्चों को हर 3-6 महीने में इन दवाइयों का एक कोर्स दिया जाता है। वार्म बाहर न निकले इसके लिए डेंपरिडोन, ऑनडस्ट्रॉन या मेट्रोलोजाइट मेडिसिन भी दी जाती है।

रखें ध्यान

  • कुछ एहतियात बरत कर इनसे आसानी से बचा जा सकता है।
  • हाइजीन का ध्यान रखें। नाखून काटें क्योंकि हाथ धोने के बावजूद इनके बीच में वार्म के लार्वा छुपे रह सकते हैं।
  • बाहर से आने पर या खेलने के बाद अच्छी तरह हाथ-पैर धोएं।
  • खुले में शौच न करें। इससे कई तरह के वार्म पनपते हैं जो मिट्टी और जल प्रदूषित करते हैं।
  • शौच के बाद साबुन से हाथ जरूर धोएं।
  • खाना खाने से पहले अच्छी तरह हाथ धोएं।
  • फल-सब्जियां अच्छी तरह धोकर खाएं।
  • देर से कटे फल-सब्जियां न खाएं।
  • पोर्क टेप वार्म से बचने के लिए कच्चा या अधपका मीट न खाएं।

(डॉ. जे. रावत. कंसल्टेंट फिजिशियन, दिल्ली)