ध्यान स्वयं पर लगाओ: Spiritual Thoughts
Spiritual Thoughts

Spiritual Thoughts: जीवन इसी तरह से चलता आ रहा है। कई, कई, कई जीवन कालों तक, यूं ही चलता रहेगा, जब तक कि तुम्हारी पूरी ऊर्जा स्वयं पर केंद्रित न हो जाए। जब पूरा ध्यान स्वयं पर केंद्रित हो जाता है, यह न केवल भूत को जला देता है बल्कि तुम्हारा फिसलना बंद कर देता है।

तुम एक-एक कदम रखते हुए जा रहो हो, कभी उछलते हो, कभी झटकते हो, तो कभी पीछे की तरफ गिरते हो।

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यह एक सांप और सीढ़ी का खेल है, जो चलते रहता है। जब तक वहां सांप है, तुम एक सीढ़ी चढ़ोगे और एक दूसरा सांप तुम्हें निगल जाएगा और फिर तुम्हें वापस वहीं का वहीं खड़ा कर देगा। तुम कुछ दिनों तक चढ़ते हो और पुन नीचे ऊतर आते हो। यह बस चलते रहता है। ऐसे ही वे बोर्ड बने होते हैं, है कि नहीं? तुम एक सीढ़ी पर पहुंचते हो, तुम एक सांप पर पहुंचते हो और यह बस चलते रहता है। तो यहां हम तुम्हें एक यंत्र देते हैं, जिससे तुम सभी सांपों से बच सकते हो। अगर तुम बस यह उत्तरदायित्व ग्रहण करते हो, फिर तुम्हारे बोर्ड पर कोई सांप नहीं रह जाता। तुम कोई और कर्म नहीं निर्मित कर सकते हो, यह समाप्त हो जाता है। जैसे ही तुम अपना पूरा ध्यान स्वयं पर केंद्रित करते हो, तुम देखोगे कि तुम उस हर चीज का रुाोत हो, जो यहां पर घटित हो रहा है। जैसे ही यह चेतनता तुम्हारे भीतर आती है, तुम अब कोई और कर्म निर्मित नहीं कर सकते हो, यह खत्म हो जाता है। अब बस वही जो तुम्हारे अंदर संचित है, केवल उसी से तुम्हें निपटना होता है। यह बहुत आसान है। अन्यथा, तुम एक तरफ से खाली करते हो और दूसरी तरफ से भर लेते हो। इसका कोई अंत ही नहीं होता।

जीवन इसी तरह से चलता आ रहा है। हम नहीं जानते और कब तक। कई, कई, कई जीवन कालों तक, यह यूं ही चलता रहेगा, जब तक कि तुम्हारी पूरी ऊर्जा स्वयं पर केंद्रित न हो जाए। एक बार जब पूरा ध्यान स्वयं पर केंद्रित हो जाता है, यह न केवल भूत को जला देता है बल्कि तुम्हारा फिसलना बंद कर देता है, तुम अब और नहीं फिसल करते। अब एक नई शक्ति आ जाती है, एक नई स्वच्छन्दता होती है, क्या ऐसा नहीं है? एक नए अर्थ में कुशलता आ जाती है। बस एक क्षण में, ये सभी चीजें घटित हो जाती हैं, क्योंकि फिसलना रुक जाता है। जरा उन जीवन विरोधी तत्त्वों को देखो, जो हर मनुष्य के चारों तरफ धीरे-धीरे एकत्रित हो रहे हैं। फिसलना जारी रहता है, है कि नहीं? हो सकता है कि कुछ लोग बहुत तेजी से फिसल रहे हों, कुछ थोड़ी मन्द गति से फिसल रहे हों, लेकिन जीवन के संदर्भ में तुम्हारे बचपन से आज तक, निश्चित रूप से एक क्षय हुआ है। यह एक निरन्तर क्षरण है। अधिकांश लोग जब पचास या साठ साल के हो जाते हैं, उनके सिर पर का बोझ कुछ ऐसा हो जाता है कि वह दिखता है। अधिकांश लोगों में वह बिल्कुल स्पष्ट दिखता है। कुछ लोगों में इसे छिपाने की पर्याप्त शिष्टता होती है, लेकिन यह अधिकांश लोगों में दिखता है।

एक बार जब तुम्हारे अंदर चेतनता प्रवेश कर जाती है, भूत को विसर्जित करना, भूत से होकर अपना रास्ता निकालना आसान हो जाता है। पानी लाने के लिए एक बाल्टी लेकर नदी जाना एक चीज है, एक छलनी लेकर नदी जाना और आश्रम में पानी लाने का प्रयास करना एक अलग चीज है। तुम यही अपने जीवन के साथ कर रहे हो। तुम्हारे मन छिद्रों से भरा हुआ है। तुम्हारा जीवन छिद्रों से भरा हुआ है, अब उससे तुम कुछ पकड़ना चाहते हो। तुम क्या पकड़ सकते हो? छलनी से जो भी अनाज निकलता है, उसे गिरा देते हो और तुम केवल भूसा पकड़ते हो, है कि नहीं? तुम वही पकड़ते हो, जीवन में कुछ भी सार्थक नहीं पकड़ते। तुम्हारे अंदर चाहे एक छिद्र हो या सौ छिद्र हों, इससे कोई अंतर नहीं पड़ता। जब तक कि तुम उसे बन्द नहीं कर देते, तुम पानी नहीं ला सकोगे। तुम बस खाली हाथ लौटोगे।