राजू और चोरी! भला कौन इस पर यकीन कर सकता है? बात ही कुछ ऐसी थी। शहर के सबसे बड़े वकील का लड़का। दोस्तों पर हमेशा ढेरों पैसे खर्च करने वाला राजू। भला वह चोरी करेगा? क्यों?
अगर कल तक कोई यह बात कहता, तो लोग इस पर यकीन करना तो दूर, उलटा झगड़ने लगते। पर आज…? जो अपनी आँखों से देखा, भला उस पर कैसे यकीन न करें!
राजू पूरी क्लास के आगे पसीने-पसीने खड़ा था। उसकी टाँगें काँप रही थीं। घबराहट के मारे सही शब्द तक उसे नहीं मिल रहे थे। ”सॉरी, सॉरी…सॉरी मैम!” बस यही शब्द उसके मुँह से निकले।
मैडम वंदना गोस्वामी भी हैरान थीं। और कक्षा के सारे छात्र तो जैसे भौचक्के होकर यह सारा नाटक देख रहे थे।
क्लास के बच्चे सोच रहे थे—यही राजू है न, जो दोस्तों का दोस्त था और उन पर पैसे ऐसे लुटाया करता था, जैसे पैसों की बरसात हो रही हो! दोस्तों की कोई पार्टी हो, पैसे हमेशा राजू की जेब से निकलेंगे। कहीं जाना हो, पिकनिक हो, सैर-सपाटा या खाने-पीने की दावत हो या फिर अप्पूघर में झूले झूलने का प्रोग्राम, सब बच्चे राजू से कहते। और राजू बिल्कुल बादशाहत वाली अकड़ से मुसकराते हुए जेब से सौ-सौ के नोट निकालता। देखकर सबकी आँखें फैल जातीं।
”राजू, कहाँ से लाते हो तुम इतने पैसे?” कभी कोई बच्चा डरते-डरते पूछ भी लेता था।
”मेरे पापा देते हैं। वे मुझे बहुत प्यार करते हैं।” राजू सिर झटककर कहता, तो सबकी आँखों में हैरानी भर जाती।
वही राजू आज इस तरह पकड़ा गया चोरी की शिकायत में? कोई भी इस बात पर यकीन नहीं करना चाहता था। पर यकीन भला कैसे न करता! सच तो आखिर सच था। राजू ने अनुराग का कीमती कलर बॉक्स चुराया था और उसकी चोरी पकड़ ली गई थी।
चोर! राजू चोर! क्यों, किसलिए…? लेकिन इस सवाल का जवाब अभी तक किसी को नहीं मिला।
राजू के पिता राकेश महाजन शहर के जाने-माने वकील थे। वे राजू को बहुत प्यार करते थे। उसे किसी बात की कमी नहीं होने देते थे। इधर राजू ने अपनी कोई इच्छा प्रकट की और उधर उसके पापा ने सौ-सौ के नोट उसके हाथ पर रख दिए, ”जाओ बेटा, जाकर बाजार से ले आओ।”
लिहाजा राजू के पास जितने अच्छे चाबी के खिलौने थे, उतने किसी के पास नहीं थे। राजू के पास हरे रंग की जैसी शानदार साइकिल थी, वैसी किसी के पास नहीं थी। राजू का स्कूल का बस्ता जितना बढ़िया था, वैसा किसी और बच्चे का नहीं था। राजू शान से उन्हें अपने दोस्तों को दिखाता और ऐंठकर कहता, ”है कोई जो मेरा मुकाबला कर सके?”
इसी ऐंठ ने न जाने कब राजू को चोरी सिखा दी। और धीरे-धीरे यह आदत पक्की होती गई।
एक-दो दोस्तों ने राजू को टोका भी, ”राजू, तुम यह क्यों करते हो?”
इस पर राजू हँसकर कहता, ”अरे, तुम क्या समझोगे? चोरी के अमरूदों में जो मजा है, वह बाजार से अमरूद खरीदकर खाने में कहाँ! यों भी यह एक हुनर है, हुनर…आर्ट! भला कोई है जो मुझे पकड़कर दिखाए?”
असल में राजू अपनी किसी जरूरत के लिए चोरी नहीं करता था, न वह कभी पैसे चुराया करता था। वह केवल चीजें चुराता था। किसी का बढ़िया रबर हो या रंगीन पेंसिल, खूबसूरत कलर हो या कीमती पेन या किसी की अच्छी जिल्द वाली किताब, जो भी चीज उसे अच्छी लगती, उसे लेने के लिए मचल उठता। उसे लगता, यह चीज तो मेरे पास होनी चाहिए। उसे फौरन लिए बगैर वह रह नहीं पाता था। और किसी दूसरे की चीज लेने का एक ही तरीका था—चोरी! राजू शहर के सबसे अमीर वकील राकेश महाजन का बेटा था, इसलिए कोई उस पर शक भी नहीं कर पाता था।
पहले तो राजू के लिए चोरी एक शौक जैसी चीज थी। पर धीरे-धीरे वह उसकी आदत बन गई। अब तो यह आदत इतनी पक्की हो चुकी थी कि किसी की कोई अच्छी चीज देखकर राजू के मन में फौरन उसे चुराने की इच्छा होने लगती थी। वह खुद को रोकना चाहता, तो भी रोक नहीं पाता था। फिर एक बात और थी। कभी किसी को चिढ़ाने या सताने की इच्छा उसके मन में होती, कभी किसी से बदला लेने की बेचैनी वह महसूस करता, तो उसके पास एक ही तरीका था। वह उसकी कोई कीमती चीज उड़ा लेता था। फिर उसे परेशान होकर तड़पते देखता तो मन ही मन खुश होता।
यही चक्कर तो अनुराग के साथ हुआ था। अनुराग न उसकी धौंस में आता था, न उसकी ऐंठ सहता था। एक-दो बार राजू ने अपने सैर-सपाटे और खाने-पीने की पार्टी में अनुराग को बुलाया, पर अनुराग ने विनम्रता से मना कर दिया। बोला, ”बिना मम्मी-पापा को बताए, मैं कहीं नहीं जा सकता।”
फिर अनुराग गंभीर लड़का था। राजू की घटिया बातें और घटिया मजाक उसे पसंद भी नहीं थे। राजू की अकड़-फूँ तो उसे और भी बुरी लगती थी।
राजू ने सोचा, ”क्लास में यही एक लड़का है जो मेरा रोब नहीं मानता। कभी ऐसा पाठ पढ़ाऊँगा बच्चू को कि…”
बहुत दिनों से राजू मौके की तलाश में था। आखिर एक दिन उसे मौका मिल ही गया। हुआ यह कि अनुराग के इंग्लैंड वाले चाचा उसके लिए लंदन से एक बढ़िया कलर बॉक्स लेकर आए थे। आर्ट के पीरियड में अनुराग ने वही कलर बॉक्स निकाला था और रंग भर रहा था। राजू की निगाह उस कलर बॉक्स पर पड़ी और उसने एक क्षण में ही निश्चय कर लिया, जैसे भी हो, यह कलर बॉक्स तो उड़ाना ही है।
इंटरवल में अनुराग जब पानी पीने गया, राजू ने मौका देखकर सबसे निगाहें बचाते हुए, उसके बस्ते से कलर बॉक्स निकाल लिया। उसके बाद वह चुपचाप अपनी जगह पर आकर बैठ गया।
किंतु अनुराग के दोस्त विपिन ने यह देख लिया। उसे बहुत दिनों से राजू पर क्लास की चीजें चुराने का शक था। संकोच के मारे कह नहीं पाता था। लेकिन उसने अपनी आँखों से जो देखा, उससे सब-कुछ साफ हो गया। वह समझ गया, क्लास के बच्चों की चीजें एक-एक कर क्यों गायब होती हैं? यही चोर है, यही…राजू चोर! उसने कागज पर लिखा और उसे मोड़कर अनुराग की ओर बढ़ा दिया।
पाँचवें पीरियड के बाद अनुराग और विपिन मिलकर राजू के पास गए और उसे कलर बॉक्स वापस कर देने के लिए कहा। सुनते ही राजू की भौंहों में बल पड़ गए। गुस्से में घूँसा तानकर, पैर पटकते हुए बोला, ”क्या बात करते हो? कहाँ का कलर बॉक्स? मैंने कोई कलर बॉक्स नहीं लिया। मुझ पर झूठा इल्जाम लगाया, तो अच्छा नहीं होगा, हाँ!”
इतने में मैडम वंदना गोस्वामी आ गईं। छठा पीरियड उन्हीं का था। क्लास टीचर भी वही थीं। अनुराग को उन्होंने कभी किसी से झगड़ते नहीं सुना था। आज उसे जोर-जोर से बोलते सुना तो पूछा, ”क्यों, क्या हुआ अनुराग?”
अनुराग ने सारी बात कह सुनाई। फिर विपिन ने कहा, ”हाँ मैडम, अनुराग बिल्कुल ठीक कह रहा है। मैंने खुद अपनी आँखों से राजू को चोरी करते देखा है।”
सुनकर मैडम एक क्षण के लिए सोच में पड़ गईं। फिर उन्होंने राजू से कहा, ”लाओ, अपना बस्ता मुझे दिखाओ राजू।”
राजू गुस्से में आगबबूला था। बोला, ”नहीं मैडम, हम कोई चोर नहीं हैं। हम क्यों दिखाएँ बस्ता?”
”तुम चोर हो या नहीं, इसी का तो फैसला करना है! लाओ, बैग मुझे दिखाओ।” कहकर मैडम ने उसका बैग पकड़ा और देखने लगीं। अचानक वे चौंक गईं। बैग की भीतर वाली जेब में कलर बॉक्स पड़ा था।
मैडम ने कलर बॉक्स निकालकर अनुराग को दिखाते हुए कहा, ”क्या यही है तुम्हारा कलर बाक्स?”
”हाँ मैडम, यही है। मेरे चाचा इंग्लैंड से लाए थे। इस पर लिखा है—मेड इन इंग्लैंड। मुझे जन्मदिन पर उन्होंने यह उपहार दिया था।”
”क्यों राजू? अब क्या कहते हो?” मैडम ने राजू की ओर देखा, तो घबराहट के मारे उसके मुँह से कोई शब्द नहीं निकला।
”ठीक है। क्लास के सामने आकर खड़े हो जाओ। ब्लैक बोर्ड के पास, ताकि सब अच्छी तरह चोर की शक्ल देख लें!” कहकर मैडम वंदना गोस्वामी अंग्रेजी का नया पाठ पढ़ाने लगीं।
उधर ब्लैक बोर्ड के पास खड़े राजू की क्लास के सब बच्चे हैरानी भरी नजरों से देख रहे थे। राजू की टाँगें काँप रही थीं। वह सिर नीचा किए खड़ा था और घबराहट के मारे उसके पूरे शरीर से पसीना छूट रहा था।
पीरियड खत्म होने के बाद मैडम ने राजू की ओर देखा। पूछा, ”अपनी गलती मानते हो राजू या तुम्हारे पापा को शिकायत लिखकर भेजूँ?”
”सॉरी मैडम, मैं आगे से कभी यह गलती नहीं करूँगा।” राजू ने कहा तो मैडम को उस पर तरस आ गया। बोलीं, ”ठीक है राजू, खुद को सुधारो, वरना…”
राजू ने दिखावे के लिए गलती भले ही मान ली थी, लेकिन अंदर ही अंदर वह गुस्से से तिलमिला रहा था। उसका इतना अपमान क्लास के बच्चों के सामने! और वह भी इस दुष्ट अनुराग और विपिन के कहने पर।
बहुत दिनों तक राजू का गुस्सा अंदर ही अंदर उबलता रहा। आखिर उसने अनुराग और विपिन से बदला लेने का निश्चय किया। अपने कुछ दोस्तों से उसने कहा, ”अनुराग और विपिन को अब मैं छोड़ूँगा नहीं। इतना पीटूँगा, इतना पीटूँगा कि…याद करेंगे!”
किंतु खुद राजू के दोस्त उसकी बहुत सी घटिया आदतें पसंद नहीं करते थे। अनुराग बहुत भला और बुद्धिमान था। क्लास में हमेशा प्रथम आता था। पढ़ाई में दूसरों की मदद भी करता था। सभी उसे चाहते और इज्जत करते थे। इसलिए राजू के दोस्तों ने अनुराग को यह बात बता दी। कहा, ”अगले दो-तीन दिन खतरे के हैं। खूब सावधान रहना!”
अनुराग पूरी रात सोया नहीं। वह मन ही मन सोचता रहा, ”क्या करूँ, क्या न करूँ? क्या अपने पापा से कहूँसारी बात? क्या क्लास टीचर को रिपोर्ट करूँ? प्रिंसिपल से शिकायत करूँ? लेकिन बात कहीं बढ़ न जाए!”
आखिर खूब सोच-विचारकर, अगले दिन शाम को अनुराग राजू के घर गया और उसके पापा से मिला। उसने उन्हें राजू की सारी बातें साफ-साफ बताईं। कहा, ”अंकल, राजू को चोरी की गंदी आदत पड़ गई है। इसी वजह से वह पढ़ नहीं पाता। आप ही उसे रोक सकते हैं।”
राजू के पापा को अनुराग का आना बहुत अच्छा लगा। अनुराग का बात करने का ढंग भी बड़ा गंभीर और प्रभावशाली था। साथ ही, गरीब होने पर भी वह ज्यादा सफाई से रहता था। क्लास में वह हमेशा प्रथम आता ही था। उसके शब्दों में सच्चाई थी।
राजू के पापा अनुराग से बहुत प्रभावित हुए। अनुराग के सामने ही राजू को बुलाकर उन्होंने डाँटा, ”अब तुमने यह भी शुरू कर दिया राजू? पहले चोरी करते हो, फिर दूसरों को पीटते हो। सारी गंदी आदतें सीख ली हैं। अनुराग को देखो, कितना होशियार और मेहनती विद्यार्थी है यह। ऐसे बच्चों को सब पसंद करते हैं जबकि खराब आदतों के कारण तुमसे हर कोई नफरत करने लगा है।”
राजू को जब पता चला कि सब बात खुल चुकी है, तो वह बहुत शर्मिंदा हुआ। उसने अनुराग से माफी माँगी।
अनुराग ने कहा, ”कोई बात नहीं राजू। कभी-कभी गलत लोगों के साथ के कारण ऐसा हो जाता है। अब भी चाहो तो तुम खुद को बदल सकते हो।”
अनुराग की यह बात सुनकर राजू को अपने पर बहुत पछतावा हुआ।
राजू के पापा ने कहा, ”खराब लड़कों की बजाय तुम अनुराग को अपना दोस्त क्यों नहीं बनाते? कितना अच्छा विद्यार्थी है यह!”
राजू ने झट अनुराग की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाया। फिर दोनों एक-दूसरे के गले लग गए।
उस दिन से राजू बदल गया। उसके पापा अब भी कभी-कभी हँसते हुए अनुराग से कहते हैं, ”बेटे, अगर उस दिन तुम घर न आते, तो न तो मुझे यह पता चलता कि राजू के कदम कहाँ-कहाँ भटक रहे हैं और न राजू कभी पढ़ाई में इतना अच्छा निकल पाता।”
इस पर अनुराग मंद-मंद मुसकराता हुआ राजू की ओर देखता है। और कहता है, ”अरे अंकल, यह तो बहाना था हमारी दोस्ती का। अगर यह सब न होता, तो मुझे राजू जैसा प्यारा दोस्त कहाँ मिलता!”
इस पर राजू ही नहीं, उसके पापा के चेहरे पर भी एक मीठी सी मुसकान तैरने लगती है।
