स्तन कैंसर के बाद भी स्वस्थ जीवन संभव है, बशर्ते इसका पता जल्दी लग जाए। स्तन कैंसर अब भारतीय महिलाओं में सबसे अधिक पाया जाने वाला कैंसर बन चुका है। देश भर की कुल महिला कैंसर रोगियों में से 25-30 प्रतिशत महिलाएं स् तन कैंसर से ग्रस्त होती हैं। भारत में हर वर्ष लगभग 80,000 महिलाओं की मौत स्तन कैंसर से होती है और यह संख्या विश्व में अधिकतम है। कैंसर समाज में भावनात्मक तथा आर्थिक बोझ का एक कारण है। भारत में स् तन कैंसर के खतरे पर हाल ही में किये गये एक अध्ययन में ज्ञात हुआ है कि हर 28 में से एक महिला को अपने जीवनकाल में स्तन कैंसर होता ही है। शहरी क्षेत्रों में यह प्रतिशत थोड़ा अधिक (हर 22 में से एक) है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में जोखिम कुछ कम (हर 60 में से एक) है। स्तन कैंसर का पता यदि आरंभिक चरण में लग जाए, तो उपचार के उपरांत जीवन की संभावना अच्छी रहती है।
पश्चिमी देशों से भिन्न है भारत
भारत में यह रोग अपेक्षाकृत युवा महिलाओं (30 से 40 वर्ष के बीच) में भी पाया जाता है, जबकि पश्चिम में यह 50 वर्ष से अधिक आयु वाली महिलाओं का ही रोग है। भारत में जागरूकता तथा जांच के अभाव में रोग का पता लगने तक काफी देर हो चुकी होती है। गत दो दशकों के दौरान इस रोग की चपेट में आने की अनुमानित आयु में और भी गिरावट आई है। यानी अब लगभग 48 प्रतिशत स् तन कैंसर रोगी 50 वर्ष से कम आयु की होती हैं। रोगियों की अधिक संख्या 25 से 40 वर्ष के आयु वर्ग में है जो निश्चित रूप से बेहद निराशाजनक है। इसके कारण लगभग 60 प्रतिशत रोगियों की मौत हो जाती है क्योंकि रोग का पता ही कैंसर की तीसरी या सा चौथी अवस्था में लगता है। युवा महिलाओं में रोग अधिक आक्रामक रूप में होता है और आमतौर पर यह कीमोथेरॅपी के प्रति संवेदनशील नहीं होता, क्योंकि वे ईआर/पीआर/एचईआर 2 नेगेटिव होती हैं।
जागरूकता आवश्यक
स्तन कैंसर के प्रति सजगता कार्यक्रमों को, पोलियो की ही तरह, राष्ट्रीय कार्यक्रमों के रूप में लिया जाना चाहिये, जिससे रोग का पता आरंभिक चरण में ही लगाया जा सके, जब रोग का कोई भी लक्षण प्रकट रूप से सामने न आया हो। उस समय रोग पहले चरण में ही होता है और पांच वर्ष के उपचार के उपरांत जीवन की संभावना अधिक रहती है।
आनुवांशिक रोग
लगभग 6 से 8 प्रतिशत मामलों में स् तन कैंसर आनुवांशिक होता है यानी यह परिवार में पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ता है। जनॉटिक मैटीरियल (जिसे जर्म-लाइन म्यूटेशन के नाम से जाना जाता है) में एक प्रकार के बदलाव के कारण, व्यक्ति के जीन उसमें कैंसर के विकसित होने के जोखिम को निर्धारित करते हैं। यदि परिवार में पहले किन्हीं सदस्यों को कोई न कोई कैंसर हुआ हो, तो यह इस बात का संकेत हो सकता है कि कैंसर की प्रकृति और प्रवृत्ति आनुवांशिक है। और यह भी कि परिवार के अन्य सदस्यों पर भी कैंसर के विकसित होने का उच्च श्रेणी का जोखिम है।
जल्द पता लगाएं
स्तन कैंसर का जल्द पता लगाने का प्रमुख तरीका है स् तन सजगता कार्यक्रम, जिसमें शिक्षा, परीक्षण, मैमोग्राफी तथा ब्रेस्ट अल्ट्रासाउंड जैसी जांच शामिल हैं। इन सबके साथ-साथ जीवनशैली में सुधार भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। स्तन कैंसर से बचने के लिए कुछ खास बातों का ध्यान रखना जरूरी है, जैसे-
- स्तन-पान से स्तन कैंसर विकसित होने का जोखिम कम हो जाता है।
- अपने आहार में विषाक्त रसायनों जैसे, प्लास्टिक के बर्तनों में माइक्रोवेव किया हुआ भोजन, उच्च तापमान पर बार्बेक्यू, ग्रिल और फ्राई किया हुआ मांस, लेने से बचें।
- एस्ट्रोजॅन-युक्त गोलियों का लम्बे समय तक सेवन न करें।
- लम्बे (एक दशक से भी अधिक समय तक) समय तक कॉलेस्ट्रॉल घटाने वाली दवाओं का सेवन न करें।
- एक्टिव रहें और मोटापा घटाएं।
स्वयं करें जांच
- स्तन कैंसर की पड़ताल हेतु निम्न सात बिन्दुओं पर ध्यान दें-
- स्तन में कोई गांठ न हो- यद्यपि सभी गांठें कैंसर नहीं बनती, लेकिन इनकी जांच बहुत आवश्यक होती है।
- अगर आपके किसी एक स्तन के आकार में बदलाव आ रहा है तो तुरंत जांच करवाएं।
- अगर आपके स्तन के निप्पल अंदर की ओर धंस रहे हैं तो भी जांच अत्यंत आवश्यक है।
- बिना किसी कारण आपके स्तनों की त्वचा में सिकुडऩ आ रही है तो भी स्तनों की जांच जरूरी है।
- अगर आपके निप्पलों से रक्तस्राव हो रहा है तो तुरंत अपने डॉक्टर से परामर्श लें।
- स्तनों की त्वचा की रंगत में बदलाव होना भी स्तन कैंसर का एक लक्षण हो सकता है।
- अगर आपकी बगलों में किसी प्रकार की सूजन महसूस हो रही है तो भी डॉक्टर के पास जाकर जांच करवाएं।
(स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. रागिनी अग्रवाल से बातचीत पर आधारित)
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