Artificial Intelligence Effects: पिछले कुछ आंकड़ों के अनुसार भारतीय महिलाओं में सबसे ज्यादा मामले स्तन और गर्भाशय कैंसर के रहे हैं। इन दोनों ही कैंसर के इलाज में कई तरह की जटिलताएं आती हैं, साथ ही इनकी मेमोग्राफी में भी काफी लंबा समय लग जाता है। हालांकि अब ए.आई. के माध्यम से इन बीमारियों के बारे में पूर्वानुमान लिया जा सकेगा।
यदि एक टेस्ट से यह पता चल जाए कि भविष्य में आप किस बीमारी की चपेट में आ सकते हैं तो निश्चित रूप से कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों के खतरे से बचा जा सकता है। हालांकि, इस तरह के प्रयोग और शोध भारत में शुरू हो गए हैं, जिसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की महत्वपूर्ण भूमिका है। ए.आई. के माध्यम से होने वाले इस प्रयोग को चिकित्सा विज्ञान में ‘प्रीडिक्टिव हेल्थकेयरÓ कहा जाता है।
प्रीडिक्टिव एनालिसिस क्या है

स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में होने वाले प्रीडिक्टिव एनालिसिस और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के बारे में महिलाओं को जरूर जानना चाहिए क्योंकि यह उनकी और उनके परिवार की सेहत से जुड़ा विषय है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एक जबरदस्त आविष्कार है और इसका इस्तेमाल स्वास्थ्य सेवा क्षेत्रों के साथ अनुसंधान एवं विकास, मार्केटिंग एवं विज्ञापन और बैंकिंग इत्यादि क्षेत्रों में भी हो रहा है। आप इन दिनों जिस चैट जीपीटी की बात कर रहे हैं वो भी इसी ए.आई. की ही देन है। यद्यपि आने वाले समय में इसके कई खतरे हैं लेकिन उस विषय में आपको बाद में बताएंगे। चलिए पहले जानते हैं कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस चिकित्सा जगत में कैसे काम करता है और किन-किन गंभीर बीमारियों के बारे में यह पूर्वानुमान दे सकता है।
स्तन और सर्विकल कैंसर में लाभ
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंट के माध्यम से बनी डिवाईस से सर्विकल (गर्भाश्य ग्रीवा) और स्तन का कैंसर के बारे में पता लगाया जा सकता है। शोधकर्ताओं का अनुमान है कि ए.आई. में स्तन कैंसर की पुष्टि 2 से 3 साल पहले ही हो जाएगी। दूसरा सबसे बड़ा फायदा यह है कि ए.आई. स्तन कैंसर के लिए करवाए जाने वाला टेस्ट- मैमोग्राम की पढ़ने की गति को बढ़ाएगा। परिणामस्वरूप रेडियोलॉजिस्ट एक निश्चित अवधि में अधिक मैमोग्राम को सटीक रूप से देख सकेगा। केवल इतना ही नहीं ए.आई. ब्रेस्ट कैंसर के उन पैटर्न को भी पहचान सकता है जिसे मनुष्य यानी रेडियोलॉजिस्ट की नजरें कई बार नहीं पहचान पाती हैं। इससे कैंसर के इलाज के नये तरीके ढूंढने में भी मदद मिलेगी। इसके अलावा, ए.आई. मॉडल उन मामलों के अनुपात में भी कमी दिखाएगा जहां कैंसर की गलत पहचान की गई है।
ए.आई. के जरिये स्तन कैंसर की पुष्टि 2 से 3 साल पहले ही हो जाएगी। दूसरा सबसे बड़ा फायदा यह है कि ए.आई. स्तन कैंसर के लिए करवाए जाने वाला टेस्ट- मैमोग्राम की पढ़ने की गति को बढ़ाएगा। परिणामस्वरूप रेडियोलॉजिस्ट एक निश्चित अवधि में अधिक मैमोग्राम को सटीक रूप से देख सकेगा। केवल इतना ही नहीं ए.आई. ब्रेस्ट कैंसर के उन पैटर्न को भी पहचान सकता है जिसे मनुष्य यानी रेडियोलॉजिस्ट की नजरें कई बार नहीं पहचान पाती हैं। इससे कैंसर के इलाज के नये तरीके ढूंढने में भी मदद मिलेगी। इसके अलावा, ए.आई. मॉडल उन मामलों के अनुपात में भी कमी दिखाएगा जहां कैंसर की गलत पहचान की गई है।
ए.आई. का भारतीय अस्पतालों और लैब में प्रयोग
भारत के कई बड़े अस्पतालों और लैब में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का प्रयोग शुरू हो गया है, हालांकि, अभी इसे डायग्नोसिस और स्क्रीनिंग टेस्ट तक ही सीमित रखा गया है। मिसाल के तौर पर, आपकी जान-पहचान में मीना नाम की एक महिला है जिसे हाई ब्लड प्रेशर और डायबिटीज है। यह महिला सालों से इन बीमारियों की दवा ले रही है, परिणामस्वरूप इन दवाइयों का सीधा असर उसकी किडनी और लिवर दोनों पर पड़ रहा है। अब यदि किसी दिन यह महिला जानना चाहे कि उसे भविष्य में और किस-किस तरह की बीमारियां हो सकती है तो इसमें ए.आई. उसकी मदद कर सकता है। ए.आई. के माध्यम से लैब में स्क्रीनिंग टेस्ट और डायग्नोसिस होगा जिससे यह पूर्वानुमान लगाया जा सकेगा कि आने वाले समय में उस महिला को किडनी या लिवर आदि का कैंसर होने का कितना खतरा है।
मनुष्य को होने वाले फायदे

भविष्य में ऐसी संभावनाएं है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एक प्रोग्राम के रूप में आपके मोबाइल में मौजूद रहे। मान लीजिये कि आपको लंबे समय से खांसी है तो आप फोन में अपनी खांसी को रिकॉर्ड कर सकते हैं। अब अगर ए.आई. के पास पहले से कई लोगों की खांसी का रिकॉर्ड होगा तो वह आपको तुरंत बता देगा कि आपको आने वाले समय में कैंसर या फिर टीबी होने का कितना खतरा है। ठीक इसी तरह मोतियाबिंद का भी पता लगाया जा सकता है, यदि आंख की लेंस में किसी विशेष प्रकार का संकेत मिलता है या खराबी दिखती है तो इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि व्यक्ति को मोतिया बिंद होगा या नहीं।
ए.आई. कैसे काम करता है
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में उपचार और निदान की गति को तीव्र करेगा। जहां किसी बीमारी को डायग्नोस करने में महीनों लग जाते थे, अब यह काम समय पर हो सकता है। निश्चित रूप से यह किसी भी बीमारी के बारे में एक सटीक जानकारी और संकेत देने में सक्षम है, जैसे कि रक्तचाप के पैटर्न में बदलाव, सांस लेने का अनियमित पैटर्न, एसपीओ 2 स्तर, वजन में तेजी से कमी, हृदय, डायबिटीज, कोलेस्ट्रोल इत्यादि में कैंसर से संबंधित बीमारी के संकेतों का पता प्रथम या जीरो चरण में ही लागाया जा सकता है। जिस तेजी से ए.आई. को लेकर प्रयोग और शोध कार्य हो रहे हैं उससे यह अनुमान लगा सकते हैं कि आगामी समय में इसकी पहुंच यह आम आदमी तक संभव हो जाएगी। ये बहुत ही आसानी से उपलब्ध होने वाले किफायती और सटीक जानकारी देने वाले टेस्ट होंगे।
बहरहाल, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आपको एक फोटो खींच कर दे देता है और बताता है कि आपके शरीर के इस हिस्से में विशेष प्रकार के संकेत मिल रहे हैं जो अमुक बीमारी की ओर इशारा करते हैं। अब डॉक्टर का कार्य होता है मरीज को यह बताना कि क्या किसी थेरेपी, ट्रीटमेंट या फिर काउंसिलिंग और दवाइयों से इस बीमारी को रोका जा सकता है। इस प्रक्रिया में थोड़ा समय लगता है, जिसमें डॉक्टर मरीज की फैमिली हेल्थ हिस्ट्री और हेल्थ कंडीशन के बारे में जानने का प्रयास करते हैं। चिकित्सा विज्ञान में इस पूरी प्रक्रिया को ‘नेचुरल हिस्ट्री ऑफ डिजीजÓ कहते हैं। यह बीमारी के कारण और कारक दोनों पर काम करती है। दरअसल कोई भी बीमारी हमारे रिस्क फैक्टर यानी कारक के कारण होती है और जब यह कारक लंबे समय तक शरीर में रहते हैं तो दूसरी बीमारियां हमें हो सकती हैं। मोटे तौर पर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र को कई तरह के लाभ होने वाले हैं लेकिन हां, इस रोबोटिक मशीन से भविष्य में कई तरह की चुनौतियां और खतरे पैदा हो सकते हैं।
(डॉ. जुगल किशोर- जन स्वास्थ्य विशेषज्ञ, सफदरजंग अस्पताल, नई दिल्ली से बातचीत पर आधारित)
