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भारतवर्ष एक ऐसा देश है, जिसकी पावन धरती की रज-रज में राम बसते हैं। इस आधुनिक कलयुग में राम के मंदिर, राम की भक्ति ही मनुष्य को ईश्वर से जोड़े हुए है। देश के हर कोने में आज राम के मंदिर सुशोभित हैं और व्यक्ति को राममय कर देते हैं। आइए इस विशेषांक में हम देश के प्रमुख श्री राम के मंदिरों की यात्रा करते हैं और अपने जीवन के कुछ पल ईश्वर को भेंट कर देते हैं।
अयोध्या जन्मभूमि मंदिर
अयोध्या श्री राम का जन्म स्थल है। वाल्मीकि रामायण में हमें अयोध्या का वर्णन पढ़ने को मिलता है। सरयू नदी के किनारे यह जन्मस्थान बेहद ही प्राचीन और सुंदर है। श्री राम के समय अयोध्या को कौशल देश के नाम से भी जाना जाता था। अथर्ववेद में अयोध्या का वर्णन देवताओं की भूमि के रूप में किया गया है, जो स्वयं अपने आप में किसी स्वर्ग से कम नहीं।आज अयोध्या सभी हिन्दुओं के लिए एक महत्त्वपूर्ण पावन स्थल है। परंतु दुर्भाग्यपूर्ण वहां आज तक श्री राम का जन्मस्थल मंदिर नहीं बन सका है। 1520 ई. में अयोध्या पर बाबर ने कब्जा कर लिया और श्री राम के जन्म स्थल पर एक मस्जिद का निर्माण किया। श्री राम का आज यहां एक छोटा सा मंदिर है और मस्जिद के स्थान पर भव्य मंदिर बनाना देश में राजनीति का एक मुद्दा बनकर रह गया है।सरयू नदी की अयोध्या में बहुत मान्यता है। कहा जाता है कि सरयू में स्नान करने से व्यक्ति के बड़े से बड़े पाप भी धुल जाते हैं।अयोध्या में राम भक्त हनुमान की बड़ी सी मूर्ति है जो भक्त जनों के आकर्षण का केंद्र है। गुप्तर घाट एक बेहद ही शांत मंदिर है, जहां माना जाता है कि भगवान राम ने अपने शरीर का त्याग किया था। रामकोट अयोध्या में एक प्रमुख पूजा स्थल है।
रामेश्वरम्
चार धामों में से एक रामेश्वरम् का रामायण में एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। हिन्दुओं के लिए यह एक पवित्र स्थान है। यह भारत से पम्बन पुल से जुड़ा हुआ टापू है। कहा जाता है कि रावण द्वारा सीता का हरण होने के बाद श्री राम यहां उससे युद्ध करने के लिए लंका जाने के लिए आए थे। यहीं पर उन्होंने समुद्र से मार्ग देने की प्रार्थना की थी और आसानी से प्रार्थना न सुनने पर उसे बाण से सुखाने के लिए धनुष भी उठा लिया था। रामेश्वरम् से ही हनुमान ने लंका के लिए उड़ान भरी थी और उसे स्वाहा कर माता सीता का शुभ समाचार लेकर लौटे थे।कहा जाता है कि यहीं पर श्री राम ने रावण का वध करने के बाद उस पाप से मुक्ति पाने के लिए शिव जी की अराधना की थी। जब हनुमान जी ने हिमालय से शिवलिंग लाने में विलम्ब किया तो देवी सीता ने रेत से शिवलिंग का निर्माण किया और दोनों ने उसकी पूजा-अर्चना की। बाद में जब हनुमान जी शिवलिंग लेकर लौटे और रेत से बने शिवलिंग को हटाना चाहा तो वह न हटा सके। आज भी रामेश्वरम् में वह शिवलिंग स्थापित है। रामेश्वरम् के मंदिर में श्री राम ने ग्यारह शिवलिंगों की स्थापना की।दर्भशयनम् में माना जाता है कि भगवान राम ने कुश घास पर लेटकर समुद्र के मार्ग देने की प्रतीक्षा की थी।
राम तीर्थ मंदिर
राम तीर्थ मंदिर की महत्ता लव और कुश के जन्मस्थल से है। यह मंदिर उसी स्थान पर स्थित है जहां ऋषि वाल्मीकि का आश्रम था और उन्होंने माता सीता को श्री राम द्वारा त्यागे जाने के बाद उन्हें शरण दी थी।इसी स्थान पर सीता माता ने दो जुड़वां पुत्रों लव और कुश को जन्म दिया। इसी स्थान पर महर्षि वाल्मीकि ने लव और कुश को उच्च शिक्षा-दीक्षा दी और महान योद्धा बनाया।हिन्दुओं के लिए यह स्थान बेहद ही पवित्र है जहां रामायण के कुछ महत्त्वपूर्ण दृश्यों का चित्रण है।
काला राम मंदिर
काला राम मंदिर नासिक का सबसे प्रसिद्ध मंदिर है, जिसकी स्थापना 1790 में सरदार ओढ़ेकर ने की थी। यहां पर काले पत्थर की मूर्ति स्थापित है जिससे यह नाम पड़ा। मंदिर में श्री राम की मूर्ति के साथ माता सीता और लक्ष्मण की मूर्तियां हैं। मंदिर को बनवाने में 23 लाख का व्यय हुआ था और 2000 मजदूरों ने मिलकर 12 वर्षों में निर्माण कार्य को पूरा किया था।काला राम मंदिर के प्रांगण में श्री वि_ल, गणेश, हनुमान जी के भी मंदिर हैं। मंदिर 70 फुट ऊंचा है और उसके गुम्बद पर सोने का पानी चढ़ा है।
तुलसी मानस मंदिर
तुलसी मानस मंदिर वाराणसी का एक प्रसिद्ध मंदिर है। इसका निर्माण 1964 में हुआ था। सफेद संगर्ममर से बना यह मंदिर हिन्दुओं के लिए एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। कहा जाता है कि इस मंदिर के प्राचीन स्वरूप की स्थापना उसी समय हुई थी जब गोस्वामी तुलसीदासने रामचरितमानस का लेखन आरम्भ किया था।तुलसी मानस मंदिर की दीवारों पर रामायण के चित्र और दोहे अंकित हैं। ऐसी मान्यता है कि लेखन के समय तुलसीदास इसी स्थान पर रहते थे।
भद्राचलम मंदिर
भारत में राम के सबसे प्रतिष्ठित मंदिरों में से एक है भद्राचलम का मंदिर। यह मंदिर आंध्र प्रदेश के खम्मम जिले में स्थित है। यह मंदिर 17वीं सदी में संत कवि कंचरला गोपन्ना ने बनवाया था। यही गोपन्ना बाद में भक्त रामदास हुए। भद्राचलम और निकट ही विजयनगर रामायण की कथा से काफी जुड़े हुए हैं। मिथकों के अनुसार वनवास के समय राम, सीता व लक्ष्मण भद्राचलम से 35 किलोमीटर दूर पर्णशाला में रुके थे। मान्यता यह है कि आज जहां पर भद्राचलम का मंदिर स्थित है, वहीं से सीता की खोज में लंका की ओर जाने के लिए राम ने गोदावरी नदी पार की थी। कथाओं के अनुसार मेरु व मेनका के पुत्र भद्र ने यहीं राम की पूजा की थी। यह समूचा इलाका दंडकारण्य वन्य क्षेत्र में आता है जिसका उल्लेख रामायण में मिलता है। यह जगह प्राकृतिक दृष्टि से तो बहुत खूबसूरत है ही, भद्राचलम का मंदिर भी शिल्प के लिहाज से काफी समृद्ध है।
किष्किंधा
राम के युग में यानी त्रेता युग में किष्किंधा दण्डक वन का एक भाग हुआ करता था। दण्डक वन का विस्तार विंध्याचल से आरंभ होता था और दक्षिण भारत के समुद्री क्षेत्रों तक पहुंचता था। भगवान राम को जब वनवास मिला तो अपने भाई और पत्नी के साथ उन्होंने दण्डक वन में प्रवेश किया। इस वन में वाल्मीकि, अत्रि, सुतीक्ष्ण और अगस्त्य आदि कई ऋषियों से मिलते हुए वे वन के मध्य भाग में पहुंचे। यहीं पर रावण ने अपनी बहन शूर्पणखा के उकसावे पर सीता का अपहरण कर लिया। राम सीता को खोजते हुए किष्किंधा में आये। किष्किंधा उस समय वानरों का देश हुआ करता था, जिसका राजा बालि था। बालि के भाई सुग्रीव उससे भयभीत होकर ऋष्यमूक पर्वत पर रहते थे। सुग्रीव की पत्नी को अपनी पत्नी बनाने वाले बालि को मारकर राम ने सुग्रीव को वहां का राजा बनाया। बाद में जब सुग्रीव के मंत्री हनुमान ने सीता का पता लगा लिया तो सीता को मुक्त कराने के लिए राम ने वानरों की सेना लेकर किष्किंधा से कूच किया। उन्होंने रावण के राज्य लंका पर चढ़ाई करके रावण को परास्त करके सीता को मुक्त कराया।ऐसी ऐतिहासिक किष्किंधा को भारत के राजनैतिक नक्शे में खोजने की कोशिश करें तो सुबह से रात हो जाएगी, लेकिन इस खोज में सफलता नहीं मिलेगी। हां, वहां कनार्टक राज्य जरूर दिखेगा और कर्नाटक राज्य के अंतर्गत दो जिले कोप्पल और बेल्लारी दिखाई देंगे। बस, इन्हीं दो जिलों को किष्किंधा समझिये। किष्किंधा में घूमने के लिए कई स्थान हैं। इनमें ब्रह्मा जी का बनाया हुआ पम्पा सरोवर, हनुमान जी की जन्मस्थली आंजनाद्रि पर्वत, बालि की गुफा आदि प्रमुख हैं। चिंतामणि मंदिर, जहां से राम ने बालि के ऊपर तीर चलाया था, वो भी इसी जगह के अंतर्गत आता है। ये सब किष्किंधा के कोप्पल जिले वाले भाग में आते हैं। बेल्लारी जिले के अंतर्गत आने वाले किष्किंधा के दूसरे भाग में भगवान राम ने जहां चातुर्मास किया था, वो माल्यवंत पर्वत और हनुमान आदि वानरों ने सीता का पता लगाकर लौटते वक्त जिस वन में फल खाए थे, वो मधुवन यहां पड़ता है। इसके अलावा भी कई छोटे-बड़े मंदिर और शिवलिंग यहां स्थित हैं।
राम राजा मंदिर
यह मंदिर ओरछा का सबसे लोकप्रिय और महत्त्वपूर्ण मंदिर है। यह भारत का एकमात्र मंदिर है जहां भगवान राम को राजा के रूप में पूजा जाता है। यह मंदिर भगवान राम की मूर्ति के लिए बनवाया गया था, लेकिन मूर्ति स्थापना के वक्त यह अपने स्थान से हिली नहीं। इस मूर्ति को मधुकर शाह के राज्यकाल (1554-92) के दौरान उनकी रानी अयोध्या से लाई थीं। चतुर्भुज मंदिर बनने से पहले इसे कुछ समय के लिए महल में स्थापित किया गया। लेकिन मंदिर बनने के बाद कोई भी मूर्ति को उसके स्थान से हिला नहीं पाया। इसे ईश्वर का चमत्कार मानते हुए महल को ही मंदिर का रूप दे दिया गया और इसका नाम रखा गया राम राजा मंदिर। आज इस महल के चारों ओर शहर बसा है और राम नवमी पर यहां हजारों श्रद्धालु इकट्ठे होते हैं। वैसे, भगवान राम को यहां भगवान मानने के साथ यहां का राजा भी माना जाता है, क्योंकि उस मूर्ति का चेहरा मंदिर की ओर न होकर महल की ओर है।
ऋष्यमूक पर्वत
शांत मुद्रा में स्थित ऋष्यमूक पर्वत तक पहुंचने के लिए उसके सामने से गुजरती तुंगभद्रा नदी के शोर को पार करना पड़ता है। यह वही पर्वत है, जहां बालि से भयभीत होकर सुग्रीव अपने चार मंत्रियों के साथ रहते थे। श्राप के कारण बालि यहां नहीं आ सकता था। जब रावण सीता का हरण करके आकाश मार्ग से उन्हें ले जा रहा था, तो सीता ने इसी पर्वत पर बैठे सुग्रीव आदि अन्य वानरों को देख अपने आभूषण गिराए थे। इसी पर्वत पर हनुमान जी ने भगवान राम और सुग्रीव की मित्रता करवाई थी। किष्किंधा के अन्य पर्वतों के मुकाबले यह पर्वत थोड़ा हरा-भरा है। इसकी देह पर रोम रूपी नीम, पीपल, कीकड़ आदि के कई वृक्ष उगे हुए हैं।
बालि पर्वत
यहां मिट्टी के ढेर के भीतर से श्रीराम-श्रीराम की आवाज सुनाई देती है। बालि पर्वत पर भ्रमण करने से पहले वहां के स्थानीय लोग तीर्थ यात्रियों को यह विस्मयकारी जानकारी देकर रोमांचित कर देते हैं। भीमकाय चट्टानों को देख यही विचार मन में उठता है कि इनके बीच रहने वाला वाला बालि भी इन्हीं की तरह भीमकाय होगा। सुनसान हो चुकी इन चट्टानों को देखकर किसी के लिए यह कल्पना करना भी कठिन होगा कि कभी यहां बालि अपने परिवार और राजकर्मचारियों के साथ रहता था। यहीं पर उसका राजदरबार था, जहां से वो पूर किष्किंधा राज्य का संचालन करता था।
चिंतामणि मंदिर
चिंतामणि के निर्माण में संत सच्चिदानंद चिंतामणि का विशेष योगदान रहा है। यही वजह है, जिससे इस मंदिर का नाम चिंतामणि मंदिर पड़ा। मंदिर में एक शिवलिंग स्थापित है। सूर्य की तेज रोशनी में मंदिर की चमक बढ़ जाती है। और साथ ही बढ़ जाती है पत्थरों की तपन भी, जो श्रद्धालुओं के तलवों की अच्छी-खासी परीक्षा ले लेती है। नरसी मेहता और शिवलिंग के दर्शन के पश्चात् लोग मंदिर के उस स्थान पर जाते हैं, जिसके बारे में यह मान्यता है कि यहीं से राम ने बालि पर तीर चलाकर उसका वध किया था। जिस स्थान के बारे में यह कहा जाता है कि यहीं से राम ने बालि पर तीर चलाया था, वहां हनुमान जी के चरण चिह्न प्रतीक के रूप में स्थापित किए गए हैं। उसके ठीक सामने छेनी और हथौड़ी की मदद से तीर-धनुष का चित्र भी बना दिया है, ताकि लोगों को रामायण से संबंधित यह स्थान पहचानने में कठिनाई न आए। इस स्थल के बिल्कुल नजदीक ही एक गुफा है, जिसके बारे में ऐसा कहा जाता है कि राम, लक्ष्मण और हनुमान बालि-सुग्रीव युद्ध होने से पहले यहां बैठे थे। अभी वर्तमान में इतिहास का वह दृश्य प्रकट करने के लिए पत्थर पर राम-लक्ष्मण का चित्र बनाकर उस गुफा में रख दिया गया है।
माल्यवंत रघुनाथ मंदिर
माल्यवंत रघुनाथ मंदिर उस माल्यवंत पर्वत पर बना है, जहां भगवान राम ने चातुर्मास किया था। बालि की मृत्यु के बाद भगवान राम ने लक्ष्मण के माध्यम से किष्किंधा के राजा के रूप में सुग्रीव का राज्याभिषेक कराया। बाद में सुग्रीव से कहा कि बरसात का समय आरंभ हो चुका है। वे माल्यवंत पर्वत पर चार महीने का समय बिताएंगे। राम और लक्ष्मण दोनों पर्वत पर रहने लगे। लक्ष्मण काफी दूर से फल और पानी लाते थे, भगवान राम के लिए। एक दिन भगवान को बहुत जोर की प्यास लगी। लक्ष्मण ने सोचा कि इस समय मैं पानी लेने जाऊंगा और जब तक लेकर आऊंगा, तब तक बहुत देर हो जाएगी। भैया प्यास से व्याकुल हो जाएंगे। उसी समय लक्ष्मण ने अपने धनुष पर तीर चढ़ाया और उसे धरती की ओर चलाया। तीर चट्टानों को चीरता हुआ धरती में चला गया। थोड़ी ही देर में धरती में से पानी की धारा निकल आयी। लक्ष्मण द्वारा जो पानी का स्रोत माल्यवंत पर्वत पर फूटा था, उसे आज भी देखा जा सकता है। यह मंदिर बहुत विशाल और भव्य है। इसके प्रांगण में वर्षों से संगीत के साथ रामचरितमानस का पाठ हो रहा है, जो कि एक कठिन काम है। कठिन इसलिए कि रामचरितमानस की रचना अवधि में है। लिपि देवनागरी है। जबकि किष्किंधा कर्नाटक में पड़ता है और यहां की मुख्य भाषा कन्नड़ है। यहां हिंदी बोलने वाले थोड़े बहुत लोग तो मिल जाते हैं, लेकिन हिंदी पढ़ने वालों की संख्या तो नगण्य है। मंदिर के मुख्य कक्ष में राम, लक्ष्मण और सीता जी की मूर्तियां विराजमान हैं। यहां का सबसे बड़ा आकर्षण यह है कि यहां 33 करोड़ देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं।
हत्याहरण तीर्थ
हरदोई में श्री बाबा मंदिर प्रमुख धार्मिक स्थान हैं। इस मंदिर के पास एक पुराना टीला भी है, जिसे हिरण्यकश्यप के महल का खंडहर कहा जाता है। इसी के पास श्रवन देवी का मंदिर है। कहा जाता है कि रावण वध के बाद भगवान श्री राम को ब्राह्मण हत्या का पाप लग गया। इससे मुक्त होने के लिए राम को देश भर के तीर्थों में स्नान करने को कहा गया। हत्याहरण तीर्थ में स्नान करने के बाद राम जी को ब्राह्मण हत्या के पाप से मुक्ति मिली। इसी घटना के बाद इसका नाम हत्याहरण तीर्थ पड़ा।
मुनि की रेती
मुनि की रेती तथा आसपास के क्षेत्र रामायण के नायक भगवान राम तथा उनके भाइयों की पौराणिक कथाओं से भरे पड़े हैं। यहां कई मंदिरों तथा ऐतिहासिक स्थलों का नाम राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न के नाम पर रखा गया है। यहां तक कि इस शहर का नाम भी इन्हीं पौराणिक कथाओं से जुड़ा है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान राम ने लंका में रावण को पराजित कर अयोध्या में कई वर्षों तक शासन किया और बाद में अपना राज्य अपने उत्तराधिकारियों को सौंपकर तपस्या के लिए उत्तराखंड की यात्रा की। कथा के अनुसार जब भगवान राम इस क्षेत्र में आए तो उनके साथ उनके भाई तथा गुरु वशिष्ठ भी थे। गुरु वशिष्ठ के आदर-सत्कार के लिए कई ऋषि-मुनि उनके पीछे चल पड़े, चूंकि इस क्षेत्र की बालू (रेती) ने उनका स्वागत किया, तभी से यह मुनि की रेती कहलाने लगा।
नौलखा मंदिर
जनकपुर में राम-जानकी के कई मंदिर हैं। इनमें से सबसे भव्य मंदिर का निर्माण भारत के टीकमगढ़ की महारानी वृषभानु कुमारी ने करवाया। पुत्र प्राप्ति की कामना से महारानी वृषभानु कुमारी ने अयोध्या में ‘कनक भवन मंदिर का निर्माण करवाया, परंतु पुत्र प्राप्त न होने पर गुरु की आज्ञा से पुत्र प्राप्ति के लिए जनकपुरी में 1896 ई. में जानकी मंदिर का निर्माण करवाया। मंदिर निर्माण के प्रारंभ के एक वर्ष के अंदर ही वृषभानु कुमारी को पुत्र प्राप्त हुआ। जानकी मंदिर के निर्माण हेतु नौ लाख रुपए का संकल्प किया गया था, इसीलिए उसे ‘नौलखा मंदिर भी कहते हैं। जानकी मंदिर परिसर के भीतर प्रमुख मंदिर के पीछे जानकी मंदिर उत्तर की ओर ‘अखंड कीर्तन भवन है, जिसमें 1961 ई. से लगातार सीताराम नाम का कीर्तन हो रहा है। जानकी मंदिर के बाहरी परिसर में लक्ष्मण मंदिर है, जिसका निर्माण जानकी मंदिर के निर्माण से पहले बताया जाता है।
विवाह मंडप
इस मंडप में विवाह पंचमी के दिन पूरी रीति-रिवाज से राम-जानकी का विवाह किया जाता है। जनकपुरी से 14 किलोमीटर ‘उत्तर धनुषा’ नामक स्थान है। बताया जाता है कि रामचंद्र जी ने इसी जगह पर धनुष तोड़ा था। जनकपुर में कई अन्य मंदिर और तालाब हैं। प्रत्येक तालाब के साथ अलग-अलग कहानियां हैं। ‘विहार कुंड’ नाम के तालाब के पास 30-40 मंदिर हैं।
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